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वर्ल्ड नो टोबैको डे : तंबाकू के सेवन से गला, फेफड़ा और लिवर कैंसर का खतरा
डाॅ आरिका वोहरा फिजिसियन, संटोम अस्पताल, रोहिणी, नयी दिल्ली तंबाकू चाहे किसी भी रूप में लें, उसका असर शरीर के मुख्य अंगों पर पड़ता है. ओरल तंबाकू स्लायवा या थूक के साथ मुंह से अंदर जाता है. कई मामलों में मुंह के कैंसर के टिशूज फैल जाते हैं और हमारी सांस की नली ट्रेकिया से […]
डाॅ आरिका वोहरा
फिजिसियन, संटोम अस्पताल, रोहिणी, नयी दिल्ली
तंबाकू चाहे किसी भी रूप में लें, उसका असर शरीर के मुख्य अंगों पर पड़ता है. ओरल तंबाकू स्लायवा या थूक के साथ मुंह से अंदर जाता है. कई मामलों में मुंह के कैंसर के टिशूज फैल जाते हैं और हमारी सांस की नली ट्रेकिया से होता हुआ लंग्स तक पहुंचता है. निकोटिन, कार्बन मोनोआॅक्साइड जैसे विषैले पदार्थों के पार्टिकल्स सांस की नली और फेफड़े में जम जाते हैं.
इससे फेफड़े का कैंसर हो सकता है. सांस की नली सिकुड़ जाती है. इस स्थिति को क्राॅनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) कहते हैं. गले में खराश रहती है, सूखी खांसी की शिकायत रहती है, सांस लेने में तकलीफ होती है, है. आगे टीबी, ब्रोंकाइटिस, लिवर सिरोसिस जैसी समस्याएं हो जाती हैं.
हार्ट अटैक की बढ़ती है संभावना : तंबाकू से हार्ट की कोरोनरी आर्टरीज सिकुड़ जाती है, जिससे हार्ट में ब्लड की सप्लाई बाधित होती है और हार्ट अटैक का खतरा होता है. हाइ काेलेस्ट्राॅल और हाइ बीपी मरीजों में स्मोकिंग से यह खतरा अधिक होता है.
क्या है उपचार : तंबाकू की तलब को शांत करने के लिए केवल निकोटिन च्यूइंगगम और इ-सिगरेट बनाये गये हैं, पर वे भी उतने ही खतरनाक हैं. अंतर बस इतना है कि वे पैसिव स्मोकर को हानि नहीं पहुंचाते. तंबाकू छोड़ने की प्रक्रिया में व्यक्ति को पेट दर्द, सिर दर्द, बैचेनी आदि होती है. दृढ़ इच्छाशक्ति से ही इस पर काबू पाया जा सकता है.
बातचीत : रजनी अरोड़ा
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