Khudiram Bose: खुदीराम बोस, स्वतंत्रता संग्राम के वीर की साहसिक कहानी
Khudiram Bose: यह लेख खुदीराम बोस की प्रेरणादायक जीवन यात्रा को उजागर करता है, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी.
Khudiram Bose: खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. जब वे बहुत छोटे थे, उनके माता-पिता का निधन हो गया. इसके बाद उनकी बड़ी बहन ने उनकी जिम्मेदारी उठाई और उन्हें पाल-पोष कर बड़ा किया. खुदीराम ने अपने जीवन की शुरुआत में ही यह तय कर लिया था कि वे अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ेंगे.
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ
स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही खुदीराम ने राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. वे प्रतिरोध जुलूसों में शामिल होते और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नारे लगाते. उनका उत्साह और जोश इतना था कि उन्होंने नौवीं कक्षा की पढ़ाई भी छोड़ दी और सीधे क्रांतिकारी आंदोलन में कूद पड़े.
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बंगाल का विभाजन हुआ
1905 में बंगाल का विभाजन हुआ और पूरे क्षेत्र में उथल-पुथल मच गई. खुदीराम ने उस समय रिवोल्यूशनरी पार्टी के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने का निर्णय लिया. वे एक ठौर चाहते थे, जहां से इस लड़ाई को सही तरीके से लड़ा जा सके.
पुलिस को चकमा
28 फरवरी 1906 को खुदीराम पकड़े गए, लेकिन वे पुलिस को चकमा देकर भाग निकले. 16 मई 1906 को पुलिस ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया, लेकिन कम उम्र होने की वजह से उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया. लेकिन यह ब्रिटिश पुलिस की चूक थी, खुदीराम उस उम्र में भी पूरी तरह से जान चुके थे कि उन्हें क्या करना है.
किंग्सफोर्ड एक ब्रिटिश अधिकारी
6 दिसंबर 1907 को नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक बम विस्फोट की घटना को अंजाम देने के बाद खुदीराम और उनके साथी क्रांतिकारी खबरों में आ गए. उस समय किंग्सफोर्ड नामक एक ब्रिटिश अधिकारी बहुत ही सख्त और बेरहम माना जाता था. उसने भारतीयों पर बहुत जुल्म किए थे और उसकी क्रूरता से तंग आकर क्रांतिकारी दल ने उसे मारने की योजना बनाई.
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बम से हमला
खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों की पूरी जांच की और उसकी बग्घी पर बम से हमला किया. लेकिन उस बम हमले में किंग्सफोर्ड की पत्नी और बेटी की मौत हो गई, और खुदीराम और प्रफुल्ल को इसका बहुत अफसोस हुआ. फिर भी, वे बम विस्फोट के बाद भागने में सफल रहे. एक दुकान पर पुलिस को उनपर शक हुआ और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इस दौरान प्रफुल्ल ने खुद को गोली मार ली.
1908 को फांसी
खुदीराम ने गिरफ्तारी के बाद साफ तौर पर कहा कि उन्होंने किंग्सफोर्ड को सजा देने के लिए बम फेंका था. ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी सजा तय की और 11 अगस्त 1908 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. लेकिन खुदीराम के चेहरे पर फांसी के समय भी मुस्कुराहट थी, जो उनकी बहादुरी और अडिग विश्वास को दर्शाती है.
खुदीराम बोस को फांसी कब? और क्यों हुई थी
खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को फांसी दी गई थी. उन्हें मुजफ्फरपुर में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या की कोशिश के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई. बम विस्फोट में किंग्सफोर्ड की पत्नी और बेटी मारी गईं, जिससे खुदीराम को दोषी ठहराया गया