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अंजाम तक नहीं पहुंचती स्वास्थ्य विभाग में लापरवाही के मामलों की जांच

वरीय संवाददाता, धनबाद.

जिला स्वास्थ्य विभाग का काम करने का तरीका अलग है. यहां लापरवाही मामलों में सिर्फ जांच कमेटी गठित होती है, शायद ही कभी जांच अंजाम तक पहुंची

वरीय संवाददाता, धनबाद.

जिला स्वास्थ्य विभाग का काम करने का तरीका अलग है. यहां लापरवाही मामलों में सिर्फ जांच कमेटी गठित होती है, शायद ही कभी जांच अंजाम तक पहुंची हो. अधिकतर मामलों में जांच रिपोर्ट फाइलों तक में सिमटकर रह जाती है, कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. इतना ही नहीं जांच कमेटी गठित कर आरोपी कर्मियों व अधिकारियों को संरक्षण देने का खेल भी चलता है. अधिकारी व स्वास्थ्य कर्मियों की लापरवाही से जुड़े जैसे ही कोई मामला में प्रकाश में आता है, जिला स्वास्थ्य विभाग उसे दबाने के चक्कर में लग जाते हैं. यही वजह है कि हाल के कुछ माह में अधिकारी, स्वास्थ्यकर्मी पर लापरवाही का आरोप लगा. इसके अलावा 108 एंबुलेंस का संचालन करने वाली एजेंसी पर लापरवाही बरतने के कारण नवजात की मौत होने की बात सामने आयी. सभी मामलों में अधिकारी, स्वास्थ्यकर्मी व 108 एंबुलेंस का संचालन करने वाली एजेंसी के खिलाफ शिकायत दर्ज की गयी. स्थानीय स्तर पर सीएस ने सभी मामलों में जांच कमेटी बनायी. बावजूद अबतक किसी भी मामले की जांच पूरी नहीं हो सकी है.

पांच माह से नियोनेटल एंबुलेंस में नवजात की मौत मामले की जांच लंबित :

कतरास छाताटांड़ चार नंबर की रहने वाली सुमित्रा देवी ने 13 दिसंबर को बच्चे को जन्म दिया था. प्रसव के बाद बच्चे को सांस लेने में परेशानी आ रही थी. उसे एसएनएमएमसीएच रेफर कर दिया गया. रात में बच्चे को एनआइसीयू के वार्मर पर रखा गया, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं होता देख 16 दिसंबर को उसे रांची रेफर कर दिया गया. नियोनेटल एंबुलेंस से नवजात को रांची ले जाया जा रहा था. लेकिन, एंबुलेंस में ऑक्सीजन की कमी के कारण नवजात की मौत हो गयी. बाद में एंबुलेंस के चालक ने मृत शिशु को करकेंद सीएचसी में उतारकर भाग गया. इस मामले में सुमित्रा देवी ने जिला प्रशासन समेत स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को शिकायत की थी. सिविल सर्जन डॉ चंद्रभानु प्रतापन के निर्देश पर 108 एंबुलेंस के नोडल डॉ विकास राणा को मामले की जांच सौंपी गयी. उन्होंने जांच शुरू की. 108 एंबुलेंस का संचालन करने वाली एजेंसी से पक्ष रखने को कहा गया है. पांच माह में एजेंसी द्वारा अपना पक्ष नहीं रखा गया है. नतीजा मामले की जांच लंबित है.

नर्सों के कारण 10 बच्चों के एमटीसी छोड़ने के मामले की जांच अधूरी :

26 अप्रैल को सदर अस्पताल के कुपोषण उपचार केंद्र में 10 बच्चों को बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए भर्ती कराया गया था. एजेंसी टाटा स्टील फाउंडेशन के द्वारा सभी बच्चों को भर्ती कराया गया था. तीन मई को एजेंसी ने रातों रात सभी बच्चों की छुट्टी कराकर घर ले गये. आरोप लगाया कि एमटीसी की नर्स बच्चों के साथ गलत व्यवहार करती थीं, उन्हें पोषणयुक्त भोजन नहीं दिया जाता था. इस संबंध में एनजीओ द्वारा सदर अस्पताल के नोडल पदाधिकारी से लिखित शिकायत की गयी है. इस मामले में भी सीएस ने सदर अस्पताल के नोडल डॉ राजकुमार सिंह को जांच की जिम्मेवारी सौंपी है. यह जांच भी अबतक अधूरी है.

दवा एक्सपायर मामले में कमेटी ने जांच से किया इनकार :

चार अप्रैल को बलियापुर सीएचसी अंतर्गत सालपतरा स्वास्थ्य उपकेंद्र में हजारों रुपये की दवा रखे-रखे एक्सपायर होने का मामला प्रकाश में आया. 24 अप्रैल को सिविल सर्जन डॉ चंद्रभानु प्रतापन के निर्देश पर तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गयी. टीम में जिला कुष्ठ निवारण पदाधिकारी डॉ मंजू दास व डॉ विकास राणा शामिल थे. चार मई को जांच कमेटी जांच को सालपातरा स्वास्थ्य उपकेंद्र पहुंची. पाया कि कुछ दिन पहले केंद्र से दवा हटा ली गयी है. इसकी जानकारी जांच कमेटी में शामिल चिकित्सकों ने सीएस को दी. मामला तूल पकड़ता देख स्वास्थ्य यूनियनों के दबाव में चिकित्सकों ने मामले की जांच से इनकार कर दिया. इसके बाद से मामले की जांच लंबित पड़ी हुई है.

सिविल सर्जन धनबाद चंद्रभानु प्रतापन ने कहा :

नवजात की मौत मामले में एंबुलेंस का संचालन करने वाली एजेंसी ने अबतक अपना पक्ष नहीं रखा है. कई बार उसे पक्ष रखने का रिमाइंडर दिया गया है. जल्द ही जवाब नहीं मिलने पर स्वास्थ्य विभाग आगे की कार्रवाई करेगा. एमटीसी मामले में अबतक सदर अस्पताल के नोडल द्वारा जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी गयी है. रिपोर्ट मिलने के बाद खुद मामले की जांच करूंगा. सालपतरा में दवा एक्सपायर करने के लिए कोई चिकित्सक तैयार नहीं हो रहा है. मामले की जांच के लिए जिन चिकित्सकों को नियुक्त किया गया था, उन्होंने जांच करने से इनकार कर दिया है.

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