अवैध जांच घर व क्लिनिक पर कार्रवाई को लेकर परिवाद दायर
राघोपुर. जिले में संचालित विभिन्न अवैध प्राइवेट हॉस्पिटल, नर्सिंग होम, प्राइवेट क्लिनिक, जांच घर, अल्ट्रासाउंड एवं अन्य प्राइवेट स्वास्थ्य संस्थान पर लगाम लगाने के लिए सीमा जागरण मंच के घनश्याम
राघोपुर. जिले में संचालित विभिन्न अवैध प्राइवेट हॉस्पिटल, नर्सिंग होम, प्राइवेट क्लिनिक, जांच घर, अल्ट्रासाउंड एवं अन्य प्राइवेट स्वास्थ्य संस्थान पर लगाम लगाने के लिए सीमा जागरण मंच के घनश्याम पांडेय ने जिला लोक शिकायत निवारण में परिवाद दायर किया है. उन्होंने अपने दायर परिवाद में कहा है कि जिला अंतर्गत ऐसे विभिन्न प्रकार के अवैध स्वास्थ्य संस्थानों का संचालन हो रहा है, जहां मरीजों का शोषण किया जा रहा है. कहा है कि आये दिन ऐसी घटना घटित होते रहती है, जहां अवैध स्वास्थ्य संस्थानों के संचालक द्वारा मरीजों के मौत के बाद खानापूर्ति कर मामला को दबा दिया जाता है. कहा है कि ऐसे उक्त सभी संस्थान स्वास्थ्य विभाग की मिली भगत से संचालित किया जा रहा है, जिसके कारण न तो आज तक संपूर्ण जांच हो सकी है और न ही संपूर्ण सूची अनुसार कार्रवाई हुई है. कहा कि पूर्व में कोशी प्रमंडल के तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त गोरखनाथ द्वारा सुपौल, सहरसा एवं मधेपुरा के जिलाधिकारी को आदेश दिए जाने के बावजूद न तो गैरकानूनी तरीके से संचालित स्वास्थ्य संस्थान एवं प्राइवेट क्लिनिक संचालक से कोई हलफनामा लिया गया और न ही डॉक्टरों द्वारा किराए पर बेची जा रही अपनी डिग्री, पुर्जा एवं साइन बोर्ड की शिनाख्त ही की गयी. कौन से चिकित्सक कितना समय किस क्लिनिक में देते हैं, इस संबंध में भी उनसे कोई लिखित नहीं लिया गया. ऐसे प्राइवेट स्वास्थ्य संस्थान में नित्य दलालों एवं आशा कार्यकर्ता की मिलीभगत से खासकर प्रसूता महिलाओं के परिजन को झांसा में लाकर सरकारी अस्पताल से पेसेंट को प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराकर अपना कमीशन वसूल कर लेते हैं. उन्होंने मांग किया है कि ऐसे अवैध स्वास्थ्य संस्थानों पर नकेल कसते हुए विस्तृत एवं निष्पक्ष गैर विभागीय गठित टीम से जांच करवाकर उचित आदेश निर्गत किया जाय, ताकि मानव जीवन की रक्षा संभव हो सके. मालूम हो कि श्री पांडेय द्वारा पूर्व में भी कई बार ऐसे अवैध स्वास्थ्य संस्थानों के खिलाफ आवाज उठाया गया, साथ ही राघोपुर प्रखंड क्षेत्र में भी कई ऐसी घटना सामने आई है, जिसमें मरीज की मौत के बाद परिजनों पर दबाव बनाकर मामला को मैनेज कर लिया जाता है और जानकारी के बावजूद विभाग चुप्पी साधे बैठी रहती है. कुछेक मामलों में विभाग द्वारा जांच भी बैठाया गया, लेकिन जांच भी सिर्फ खानापूर्ति तक ही सीमित रह गयी.
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