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ब्लैक स्पॉट को शॉर्ट व लाॅग टर्म कार्य से किया जाता है दूर

ठाकुरगंज. सड़क हादसों के बाद अकसर ब्लैक स्पॉट की चर्चा शुरू हो जाती है कि यह ब्लैक स्पॉट है. यहां पर आए दिन हादसे होते रहते लेकिन यह जानना

ठाकुरगंज. सड़क हादसों के बाद अकसर ब्लैक स्पॉट की चर्चा शुरू हो जाती है कि यह ब्लैक स्पॉट है. यहां पर आए दिन हादसे होते रहते लेकिन यह जानना जरूरी है कि ब्लैक स्पॉट कैसे चिन्हित करते है. इसकी प्रक्रिया क्या है, कब से ब्लैक स्पॉट चिन्हित होना शुरू हुआ है. इन्हें खत्म करने का तरीका क्या होता है. देश में पहली बार ब्लैक स्पॉट की पहचान 2011 में शुरू हुई और 2014 तक 789 ब्लैक स्पॉट की पहचान की गई थी. इसमें नेशनल हाईवे, राज्य हाईवे व जिले की प्रमुख सड़के शामिल थी.

क्या हे ब्लैक स्पॉट

ऐसी 500 मीटर की वो रोड, जहां पर तीन सालों में 5 भीषण हादसे, जिसमें 5 गंभीर रूप से घायल हुए हों या मौत हुई या फिर अलग-अलग हादसों में तीन वर्षों में 10 मौतें हुई हों. उसे ब्लैक स्पॉट मान लिया जाता है.

ब्लैक स्पॉट को खत्म करने की प्रक्रिया

ब्लैक स्पॉट दो तरह से खत्म किए जाते हैं. पहला शॉर्ट टर्म यानी मामूली उपाय कर इन्हें जल्दी खत्म किया जाता है या दूसरा लांग टर्म, इस तरह ब्लैक स्पॉट खत्म करने में समय लगता है.

शार्ट टर्म

शार्ट टर्म में खत्म होने वाले ब्लैक स्पॉट में संकेतक लगाना, जेब्रा क्रासिंग बनाना, मार्किंग रोड, साइड रोड पर ब्रेकर, सफेद पट्टी खींचना, सोलर लाइट और हाईमास्ट लाइट लगाना होता है, जिससे ब्लैक स्पॉट खत्म हो जाता है.

लांग टर्म

इसमें स्टडी करने के बाद सर्विस रोड, मेजर जंक्शन, पेडेस्ट्रियन अंडरपास, व्हीकल अंडरपास, फ्लाईओवर, फुट ओवर ब्रिज का निर्माण किया जाता है, इस वजह से ऐसे ब्लैक स्पॉट को खत्म करने में समय लगता है.

इस तरह ब्लैक स्पॉट खत्म माना जाता है

स्पॉट पर किए गए निर्माण कार्य या बदलाव करने के बाद अगले 3 साल तक मोनिटर किया जाता है कि वहां पर हादसों की संख्या जीरो हुई या फिर कम हुई है. अगर ऐसा होता है तो उस ब्लैक स्पॉट को खत्म मान लिया जाता है. इसके लिए एनएनएचआई के आंकड़ों को पुलिस के आंकड़ों से मिलान करती है.

ठाकुरगंज में नहीं चिन्हित किए गए ब्लैक स्पॉट

इस मामले में एनएच 327 ई का निर्माण कर रही एजेंसी के सूत्र बताते है कि अभी तक इस मामले में कोई दिशा निर्देश नहीं मिला है , हालांकि उन्हें यह भी कहा कि जब अवैध कट या व्यस्त हाइवे को घेरने की प्रक्रिया शुरू की जाती है तो आम नागरिकों के द्वारा विरोध शुरू हो जाता है.

एनएच पर कई इलाके डेंजर जोन

वहीं पिछले रिकॉर्ड को देखा जाए गलगलिया से पौआखाली के बीच कई ऐसे स्थान है जहां पिछले वर्षों में कई सड़क दुर्घटना हुई हैं. चाहे सियालदांगा का इलाका हो या पिपरिथान से बालूवाडी के बीच का इलाका या पावर हाउस से मैगल पुल का क्षेत्र या बात करे पेटभरी से पौआखाली के बीच के इलाके की इन इलाकों में कई दुर्घटनाओं ने लोगों की जिंदगी बर्बाद कर दी है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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