कोलकाता.
भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन (आइजेएमए) ने राष्ट्रीय राजधानी में 32वीं स्थायी सलाहकार समिति (एसएसी) की बैठक में कई प्रमुख मुद्दों पर जोर दिया, जिनमें जूट बैग की घटती मांग के कारण क्षेत्र के समक्ष पेश होने वालीं चुनौतियां भी शामिल हैं. चीनी व प्लास्टिक उद्योग निकायों के प्रतिनिधियों जैसे प्रमुख हितधारकों ने बैठक में हिस्सा लिया. एसएसी केंद्र सरकार को जूट (पटसन) पैकेजिंग सामग्री के अनिवार्य उपयोग और खाद्यान्न व चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए पैकेजिंग मानदंडों पर सिफारिशें करती है. आइजेएमए अधिकारियों ने बताया कि जूट आयुक्त कार्यालय (जेसीओ) ने इस क्षेत्र को समर्थन देने की आवश्यकता पर बल दिया. इस उद्योग पर चार करोड़ किसान और 3.5 लाख जूट मिल श्रमिक के निर्भर होने का अनुमान है. चीनी उद्योग निकायों के प्रतिनिधियों ने जूट की बोरियों की कीमत व गुणवत्ता के बारे में चिंता जाहिर की और सरकार से चीनी के लिए जूट की बोरियों की दरें तय करने का आग्रह किया.बैठक में मौजूद उद्योग जगत के सूत्रों ने बताया : उन्होंने यह भी कहा कि कुछ पेय पदार्थ बनाने वालीं बड़ी कंपनियों जैसे प्रमुख खरीदार पर्यावरण संबंधी लाभों के बावजूद जूट की बोरियों के उपयोग को लेकर अनिच्छा दिखा रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि प्लास्टिक उद्योग के प्रतिनिधियों ने जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम (जेपीएमए) में प्लास्टिक की थैलियों को लेकर ‘निराशाजनक भाषा’ को हटाने की मांग की.
आइजेएमए के डिप्टी चेयरमैन ऋषभ कजरिया ने कहा : जूट उद्योग 55 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है, जिससे 50,000 से अधिक श्रमिक प्रभावित हो रहे हैं. 2024-25 तक जूट के बोरों की मांग घटकर 30 लाख गांठ रह जाने का अनुमान है. आइजेएमए ने एसएसी से 2024-25 में खाद्यान्न व चीनी पैकेजिंग में 100 प्रतिशत आरक्षण मानदंड लागू करने के लिए तत्काल सरकार के हस्तक्षेप का भी आग्रह किया.अधिकारियों ने बताया कि बैठक में जिन अन्य प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की गयी, उनमें प्रयुक्त जूट बोरियों के उपयोग पर नीतियों को संशोधित करना, जीइएम पोर्टल मूल्य निर्धारण सीमा के कारण वित्तीय बाधाओं को दूर करना, सब्सिडी वाले जूट आयात की जांच शुरू करना और श्रम कानूनों व मजदूरी समझौतों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना शामिल हैं.
उन्होंने बताया कि जूट उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान देता है, लेकिन कच्चे जूट की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) स्तर से नीचे आने के कारण उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है