रांची. गुवाहाटी से आये नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ प्रफुल्ल शर्मा ने कहा कि ग्लूकोमा (काला मोतियाबिंद) की समस्या दूर करने में वाल्व सर्जरी ज्यादा कारगर साबित हो रही है. पहले सामान्य विधि से ग्लूकोमा की सर्जरी होती थी, लेकिन अब अहमद वाल्व सर्जरी से जाती हुई रोशनी को रोका जा सकता है. वह रविवार को रिम्स ट्रॉमा सेंटर में क्षेत्रीय नेत्र संस्था रिम्स और ग्लूकोमा सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित कार्यशाला में डॉक्टरों को जानकारी दे रहे थे. उन्होंने कहा कि इस सर्जरी में कई चुनौती भी है, जिसकी बारीकी को समझना होगा. कोलकाता से आये डॉ दीपांजन पॉल ने कहा कि ग्लूकोमा की जांच के लिए अब नयी तकनीक आ गयी है. हालांकि, ओसीटी से जांच की सुविधा अब छोटे शहरों में भी है. इसलिए इसकी सही पहचान जरूरी है.
ग्लूकोमा मोतियाबिंद अंधापन का सबसे बड़ा कारण
रिम्स नेत्र विभाग के अध्यक्ष डॉ सुनील कुमार ने कहा कि ग्लूकोमा मोतियाबिंद अंधापन का सबसे बड़ा कारण है. इसके लक्षण काफी देर से दिखायी देते हैं और तब तक आंख की काफी रोशनी चली जाती है. जो रोशनी चली जाती है, वह वापस नहीं लौटती है. ऐसे में 50 साल के बाद सभी को आंखों की स्क्रीनिंग करानी चाहिए. पारिवारिक समस्या, मोटा चश्मा लगा हो और किसी वजह से स्टेरॉयड की दवा चली हो, तो उनको ग्लूकोमा का खतरा रहता है. वहीं, पीजी और डीएनबी विद्यार्थियों को हैंड्स ऑन ट्रेनिंग देकर प्रशिक्षित किया गया. रिम्स निदेशक डॉ राजकुमार ने ग्लूकोमा की बीमारी और रोकथाम के बारे में बताया. मौके पर डीन डॉ विद्यापति, अधीक्षक डॉ हिरेंद्र बिरुआ, डॉ भारती कश्यप, डॉ दीपक लकड़ा, डॉ राहुल प्रसाद आदि मौजूद थे.
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