शीशागाछी मेला ग्राउउ में मां जगदम्बे की होती है पूजा अर्चना

ऐतिहासिक मेला ग्राउंड धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है, प्रशासन मौन पौआखाली. शारदीय नवरात्र में आदिशक्ति मां जगदम्बा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व दुर्गापूजा को लेकर नगर में

By Prabhat Khabar News Desk | October 5, 2024 8:28 PM

ऐतिहासिक मेला ग्राउंड धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है, प्रशासन मौन पौआखाली. शारदीय नवरात्र में आदिशक्ति मां जगदम्बा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व दुर्गापूजा को लेकर नगर में भारी उत्साह और उमंग का माहौल है. सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में अहले सुबह और शाम को पूजा आरती के लिए भक्तों का तांता लगना शुरू है. प्रथम दिन शैलपुत्री और दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी तृतीया चंद्रघंटा की पूजा संपन्न होने के साथ ही आज चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा आराधना में भक्तगण मग्न दिखे. नगर में इसके अलावे शीशागाछी स्थित ऐतिहासिक मेला ग्राउंड में दशकों पूर्व से कच्चे मकान का बना हुआ माता का एक छोटा सा मंदिर है जिसमें प्रतिमा स्थापित कर शारदीय नवरात्र में मां आदिशक्ति जगदम्बा की पूजा आराधना की जाती है. यहां पूर्व में पूजा का संपूर्ण भार मेला ठेकेदार पर हुआ करता था परंतु करीब डेढ़ दशक से पूजा का भार स्थानीय व्यवसायी रामशंकर साह उठाते हैं जिसमें वहां के स्थानीय लोगों का भरपूर सहयोग रहता है. जानकारों के मुताबिक ब्रितानी हुकूमत के दौरान बंगाल से सटे इस रियासत का पृथ्वी चंद्र लाल कभी राजा हुआ करता था. कालांतर में पौआखाली उनका राजस्व उगाही का मुख्य कार्यालय (कचहरी) हुआ करता था, जहां राजा का आना जाना और ठहराव भी होता था. कहते हैं कि राजा पृथ्वी चंद्र लाल ने ही दुर्गा मंदिर के लिए जमीन दान में दी थी. इतना ही नहीं मंदिर के आसपास एक बड़ा सा भूभाग का कुछ अन्य हिस्से को दशहरा मेला आयोजन के लिए सरकार को दान में दे दिया था जिस भू-भाग को बिहार सरकार ने सैरात की भूमि बताकर सन 1971 ई से लेकर अबतक दुर्गापूजा उत्सव के अवसर पर मेले आयोजन के लिए डाक प्रक्रिया करवाते आ रहे हैं. किंतु दुर्भाग्य से अब यहां का मेला आयोजन इतिहास के पन्नों में सिमटने के कगार पर है. दरअसल पौआखाली ऐतिहासिक मेला ग्राउंड के एक बड़े भू-भाग पर राजा पृथ्वी चंद्र के वंशजों ने रैयती संपत्ति का दावा पेश कर बाज्बता कागजी प्रक्रिया के तहत अपना अधिकार जमा लिया है जिसपर ईट की दीवार भी खड़ी कर दी गई है. इस कारण मेला ग्राउंड की बची खुची जमीन मामूली हिस्से में सिमटकर रह गई है, जिसपर किसी भी तरह का आयोजन हो पाना अब मुश्किल सा दिख रहा है. इस ऐतिहासिक ग्राउंड में सिर्फ मेला आयोजन ही नही बल्कि धार्मिक जलसा, राजनीतिक सभा, शैक्षणिक सेमिनार, खेलकूद का भी आयोजन हुआ करता था. गौरतलब हो कि किसी जमाने में पौआखाली ऐतिहासिक मेला ग्राउंड में तीन तीन महीने तक मेला आयोजन हुआ करता था किंतु समय के साथ साथ इसके अवधि सीमित होती चली गई और हाल के डेढ़ दो दशकों से दशहरा पर एक दिवसीय मेले का आयोजन होने लगा है. हां डाक के माध्यम से यहां चालू वित्तीय वर्ष में भी एक महीने के लिए मेला आयोजन हुआ था. परंतु विडंबना और बेहद अफसोस की बात कि एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पहचान स्थापित करने वाले पौआखाली मेला ग्राउंड के अस्तित्व को बचाने और उसका संरक्षण करने के लिए तमाम जिम्मेदार लोग खामोश हैं.

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