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शिव साक्षात् ऊॅं स्वरूप है और शक्ति उसकी अभिव्यक्ति : स्वामी निरंजनानंद

प्रतिनिधि, मुंगेर. पादुका दर्शन संन्यास पीठ में सोमवार से चातुर्मास अनुष्ठान का श्रीगणेश हुआ. इसके तहत रामचरित मानस का मास-परायण और श्रावणी मंत्र साधना आयोजित हो रहा है. साथ ही

प्रतिनिधि, मुंगेर. पादुका दर्शन संन्यास पीठ में सोमवार से चातुर्मास अनुष्ठान का श्रीगणेश हुआ. इसके तहत रामचरित मानस का मास-परायण और श्रावणी मंत्र साधना आयोजित हो रहा है. साथ ही स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का विशेष सत्संग शृंखला का शुभारंभ भी हुआ. मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु नर-नारी मौजूद थे. स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने गुरु चरित्र नामक इस सत्संग शृंखला में ब्रह्मविद्या गुरुओं की परंपरा पर प्रकाश डाला. उन्होंने सबसे पहले ब्रह्म तत्व की व्याख्या प्रारंभ की जो ऊॅं नमो ब्रह्मादिभ्यो ब्रह्मविद्यासंप्रदायकर्तभ्यो… के मंत्र में वर्णित आदि गुरु है. अर्थात आकाश के समान अनंत और सर्वव्यापक है. वहीं आकाश तत्व ऊॅं के रूप में प्रकट होता है. वहीं शिव तत्व है, वही परमात्मा और परम ब्रह्म है. शिव परिवार इस ऊॅं तत्व के विविध आयामों का प्रतिनिधित्व करता है. महागणपति ऊॅं के प्रतीक है तो कार्तिकेय ऊॅं के अर्थ समझाने वाले गुरु. उन्होंने कहा कि शिव साक्षात ऊॅं स्वरूप है और शक्ति उनकी अभिव्यक्ति. शिव के वाम अंग से नारायण उत्पन्न हुए और उनकी नाभि से ब्रह्मा. आदि गुरु शिव् के आगे इन्होंने ही ब्रह्मविद्या परंपरा को आगे बढ़ाया. जिन्हें नारायण पद्माभवं से इंगित किया गया. उन्होंने ब्रह्मविद्या परंपरा के अन्य ऋषियों और गुरुओं का उल्लेख किया. जिसमें वशिष्ठ, शैति, पराशर, व्यासदेव, शुकदेव, शंकराचार्य, पद्मपाद, सुरेश्वराचार्य, हस्तामलक अचार्य का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि इसी परंपरा में इस युग के उच्चतम गुरु स्वामी शिवानंद, स्वामी सत्यानंद के नाम आते है. उन्होंने दोनों गुरुओं की स्तुति शिव सत्य पंचकर्म के माध्यम से किया.

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