ओबरा. बुधवार को ओबरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की पड़ताल की गयी, तो अस्पताल की बाहरी व्यवस्था के परे चीजे नजर आयी. ऐसा लगा कि यह अस्पताल सिर्फ भगवान भरोसे चल रहा है. यहां व्यवस्थाओं की कमी तो है ही डॉक्टरों और कर्मचारियों का अभाव है. जिस अस्पताल में हर दिन 150 से 200 इलाज के लिए पहुंचते है वहां अगर कुव्यवस्था का दौर चल रहा है, तो समझा जा सकता है कि मरीजों का इलाज कैसे होता होगा. अस्पताल के भवन को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि यह बेहतर अस्पताल नहीं है, लेकिन इसके भीतर प्रवेश करते ही कुव्यवस्थाओं की परतें खुलनी शुरू हो जाती है. आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां ड्रेसर तक नहीं है. किसी भी घटना-दुर्घटना में घायल या जख्मियों के जख्मों का ड्रेसिंग ड्रेसर नहीं, बल्कि चतुर्थवर्गीय कर्मचारी करते है. डॉक्टरों व कर्मचारियों का भी घोर अभाव है. यहां डॉक्टरों का 13 पद है, जिसमें तीन फीजिशियन, एक आयुष, एक डेंटल सहित पांच डॉक्टर पदस्थापित है. इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि यहां फार्मासिस्ट का पद तीन है, लेकिन एक भी पदस्थापित नहीं है. ओटी असिस्टेंट के दो पद में दोनों खाली है, जबकि स्टाफ नर्स के 16 पदों में सिर्फ चार पदस्थापित है. सीएचसी में एक भी महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है. हर दिन काफी संख्या में महिलाएं यहां इलाज कराने पहुंचती है. दुर्भाग्य की बात यह है कि महिलाओं का इलाज पुरुष डॉक्टर करते है. वैसे भी औरंगाबाद जिला पिछड़े जिलों में शामिल है, तो ऐसे में महिलाएं पुरुष डॉक्टरों के समक्ष खुलकर अपनी बात रख नहीं सकती. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में वर्ष 2020 के बाद एक भी सिजेरियन नहीं हुआ है. हालांकि, अस्पताल को सिजेरियन का लक्ष्य मिलते रहा है. पता चला कि हर माह 10 सिजेरियन डॉक्टरों को करना है, लेकिन जब डॉक्टर ही नहीं है, तो सिजेरियन करेगा कौन. ताज्जुब की बात तो यह है कि इस अस्पताल में एनेस्थेसिया (मूर्छित) का डॉक्टर नहीं है. सिजेरियन के दौरान मरीज को मूर्छित करना पड़ता है, लेकिन न मूर्छित डॉक्टर है न सर्जन. सीएचसी पर लाखों मरीजों का भार है. प्रखंड मुख्यालय से लेकर प्रखंड के लगभग गांवों से मरीज यहां इलाज कराने पहुंचते है. पास में हाइवे होने के कारण घटना-दुर्घटना होती रहती है और घायल-जख्मी पहुंचते रहते है. जिस अस्पताल पर लाखों लोगों का भार है उस अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था नहीं है. ए-क्सरे की सुविधा है, लेकिन सप्ताह में महज तीन दिन. समझा जा सकता है कि इस अस्पताल का मालिक भगवान ही है. प्रारंभ वर्ष के जुलाई माह में सीएचसी में लगभग चार हजारों मरीजों का इलाज हुआ. किसी दिन 100, किसी दिन 150 तो किसी दिन 200 मरीजों का इलाज हुआ. अधिकांश लोग रेफर कर दिये गये. घटना-दुर्घटना की स्थिति में यह अस्पताल रेफर सेंटर बन जाता है. सिर्फ प्राथमिक उपचार के नाम पर यहां दुर्घटनाओं में जख्मी हुए लोगों को लाया जाता है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुव्यवस्थाओं को दूर करने का प्रयास भी नहीं कर पा रहे है. बस एक ही रट लगी रहती है कि संसाधन के अनुसार कार्य हो रहा है. सच कहा जाये, तो यहां मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया जाता है.
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