तोड़ दो परंपराओं की जंजीरों को, चलो मिल कर मनायें रजो…

जमशेदपुर : तू ही जीवन, तू ही प्रेम का आधार. तू ही आदिशक्ति, तू ही नारीशक्ति, तुझमें ही है संपूर्ण संसार. चलो तोड़ दे वो नियम, परंपराएं जो बनी है

By Prabhat Khabar News Desk | June 13, 2024 12:36 AM

जमशेदपुर : तू ही जीवन, तू ही प्रेम का आधार. तू ही आदिशक्ति, तू ही नारीशक्ति, तुझमें ही है संपूर्ण संसार. चलो तोड़ दे वो नियम, परंपराएं जो बनी है बेड़ियां, बनी है दीवार…मिल कर मनाते हैं रजो का त्योहार. नारीत्व का प्रतीक है रजो. जो हर माह होने वाले मासिक धर्म के सम्मान में मनाया जाता है. बस कुछ ही दिन है रजो आने में. रजो का त्योहार यह बताती है कि मासिक धर्म बेड़ियां नहीं, बल्कि खुले आकाश में उड़ने, खुशियां मनाने का संदेश देती है. महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर अलग-अलग राज्यों में कई नियम और परंपराएं है, जो महिलाओं को उन दिनों को कई बंदिशों में बांधे रखती है. सदियों से चली आ रही परंपरा को आधुनिक समाज न केवल नकार रहा है. बल्कि इसी समाज के बीच ओड़िया समाज रजो उत्सव मनाते हुए समाज के सामने यह उदाहरण पेश कर रही है. हर माह में होने वाले मासिक धर्म, नारीत्व का सम्मान है. उसे सम्मान की नजरों से ही देखा जाये. रुढ़ीवादी सोच और परंपरा को तोड़ते हुए क्यों न इस बार रजो, सब मिल मनायें…

नारी के साथ-साथ भुदेवी की देखभाल करने का संदेश देता है रजो

वनस्ते डाकिला गजो, बरष में थोरे आसेछी रोजो…वनस्ते डाकिला गजो बरष में थोरे आसेछी रोजो…रजो को नारी उत्सव के रूप में चिन्हित किया गया है. यह महज एक फेस्टिवल नहीं है. उदारवादी सोच है. जिसे ओडिशा के राजा ने महिलाओं के सम्मान में रजो पर्व के रूप में प्रारंभ किया है. रजो संक्रांति ओडिशा में मनाया जाने वाला एक ऐसा ही अनूठा चार दिवसीय त्योहार है, जिसमें रजो धर्म की खुशियां मनायी जाती है. इस उत्सव को महिला और प्रकृति को एक साथ जोड़कर उनके मासिक धर्म की वजह से आए बदलाव के लिए मनाया जाता है. अब सवाल यह है कि जब रजोधर्म हमारी संस्कृति में इतना महत्व रखता है तो यह कब हमारे लिए छुपाने और बुदबुदाने की चीज बन गयी… आखिर क्यो? धरती माता के रजस्वला होने पर हम उत्सव मनाते हैं तो बच्चियों और औरतों की माहवारी को छूत का विषय क्यों माना जाये. माहवारी प्रकृति प्रदत्त सबसे बड़ा वरदान है जो एक नारी को जनन की शक्ति देता, जो उसे प्रकृति के समकक्ष बनाता है तो वरदान को अभिशाप मानने की यह कैसी सोच? इसी सोच को बदल कर, मिलकर रजो मनाना है.

मॉनसून का स्वागत और प्रकृति की पूजा

प्रकृति के नियमानुसार जब किसी लड़की को हर महीने मासिक धर्म होने लगता है तो यह उसके शारीरिक विकास का प्रतीक है. ठीक उसी प्रकार रजो पर्व से जुड़ी ऐसी मान्यता है कि जब पृथ्वी अस्तित्व में आयी तब धरती मां को पहले तीन दिन मासिक धर्म हुआ, इसलिए पर्व में पहले तीन दिन का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता के अनुसार इससे धरती का विकास होता है. रजो पर्व पर धरती मां की पूजा की जाती है, ताकि फसल अच्छी हो. घर में पकवान बनते हैं, आंगन में झूले बांधे जाते हैं, गांव में अब भी मेले लगते हैं, बच्चियां नये कपड़ों में भूदेवी से कम नहीं लगती है.

माहवारी के प्रति कुंठित सोच को बदलती है रजो का त्योहार : पूनम महानंद

मेरी जड़ें ओडिशा से है और ओडिशा सहित कई अन्य प्रदेशों में किसी बच्ची के पहली बार रजस्वला होने पर उत्सव मनाने का प्रचलन है. पहली माहवारी पर उसे नये कपड़े और उपहार दिये जाते हैं. बच्ची के ननिहाल से विशेष भेंट आती है और पूरे गांव को भोज पर आमंत्रित किया जाता है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी भी होती है. आज से कई वर्षों पहले प्रारंभ किये गये यह त्योहार को अगर सही तरीके से समझा जाये तो मासिक धर्म आम प्रक्रिया है. जिसमें महिलाएं किसी बंदिश में रखने की बजाय, खुल कर जीने का संदेश देती है. यह त्योहार यह भी बताती है कि रजोस्वला नारी को समाज, परिवार और पुरुषों की सहायता की जरूरत है. जहां पुरुष इस उत्सव के आयोजन में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं तो वहीं पिता से, भाई से छुपाने की जरूरत क्यों है. यह सब सोचने पर मजबूर कर देती है कि रुढ़िवादी सोच तब था या अब है. त्योहार का आनंद तभी है जब आम जीवन में महिलाओं को उन दिनों में उतनी सहजता के साथ जीवन जीने का आनंद मिल सके. जब वे अपने मासिक धर्म के कष्ट को सहने और छुपाने की बजाय अपनों से बांट सकें.

देवी और प्रकृति के रजोस्वला होने पर मनता है रजो उत्सव : सस्मिता पात्रा

एक्सएलआरआइ कैंपस में रहनेवाली सस्मिता पात्रा साहित्यकार हैं. सस्मिता बताती हैं कि वर्षों पहले से ओडिशा में रजो संक्रांति मनता है. रजो, देवी एवं प्रकृति के रजोस्वला होने का प्रतीक है. मानसिक और शारीरिक स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए इस दौरान महिलाओं को घर के कामकाज से मुक्त रखा जाता है. महिलाएं खुशियां मनाती हैं. शृंगार करती हैं. अच्छे-अच्छे खानपान, फल व अन्य चीजें खाती हैं. सखियों के साथ झूला झूलती हैं. यह जो कुछ भी है इसके पीछे यही संदेश दिया जाता है कि मासिक धर्म एक सामान्य और सहज प्रक्रिया है. इसे समझने और इसको लेकर खुलकर बात करने की जरूरत है. इस दौरान महिलाओं के जीवन को सहज और सरल बनाने में घर की अन्य महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की अहम भूमिका है. समय के साथ समाज की सोच बदल रही है. वर्षों पहले गांव इलाकों में महिलाओं को एक कमरे में रखा जाता था. एक तरह से कहें तो परिवार और समाज से बिल्कुल अलग रखा जाता था. क्योंकि उस समय महिलाएं शिक्षित नहीं थीं और न ही उन्हें हाइजीन के बारे में जानकारी थी. अब महिलाएं जागरूक हो चुकी हैं, अब स्थिति बेहतर है. लेकिन संकोच आज भी है.

तब होता था रजो घर, रजो बिछोना : विजयालक्ष्मी दास

समाजसेवी विजयालक्ष्मी दास बताती हैं कि समय के साथ रजो उत्सव का भी रूप बदला है. पहले घर तक ही सीमित था. बाद में मुहल्ले में मना. फिर मुहल्ले से निकल कर बड़े रूप में सामूहिक आयोजन होने लगा. जैसे-जैसे रजो का दायरा बढ़ा. सोच भी बदली. लोगों ने खुल कर बात करनी शुरू की. लेकिन इसमें कई साल लग गये. पहले एक ही घर में महिला को एक कमरे में रख दिया जाता था. जो पुरुषों को देख तक नहीं सकती थीं. फिर मुहल्ले में आयोजन हुआ तो पुरुषों की भी भागीदारी बढ़ी. मां को भी अपने दिनों में बंदिशों का सामना करना पड़ा. उस समय रजो घर बनता था, जहां सभी महिलाएं एक साथ रहती थीं. रजो बिछोना में सोती थी. मेरे समय स्थिति थोड़ी और बेहतर हो गयी. उस समय रजो उत्सव, उत्सव की तरह ही मनना शुरू हुआ. बेटी के समय रजो एडवांस हो गया. यानी यह भी कह सकते हैं कि उसके समय पीरियड एक सामान्य और सहज प्रक्रिया मान लिया गया. बेरियों से निकल बेटियां आसमान को छूने लगी. ऐसे में रजो तीन दिन की जगह एक दिन में सिमट गया. अब आनेवाली पीढ़ी यानी नतनी का है. यह पीढ़ी थोड़ी असमंजस में है. जो परंपरा को मानती तो है पर उसमें बंधना नहीं चाहती है. क्योंकि इस पीढ़ी की बच्चियां शिक्षा और करियर को इससे ज्यादा अहमियत देती है.

कमरे से निकल कर खेल के मैदान में दौड़ लगा रहीं हैं बेटियां : मनोलिशा दास

कदमा मरिन ड्राइव निवासी मनोलिशा दास बताती हैं कि कभी वो जमाना था, जब मासिक धर्म के नाम सुनते ही महिलाओं को एक कमरे कैद कर दिया जाता था. अब लड़कियां माह के उन दिनों में भी खेल के मैदान में दौड़ लगा रही हैं. समय के साथ सोच बदल रही है. कभी वो समय भी था जब दादी-परदादी के समय में पीरियड को लेकर कई अवधारणाएं थी. सादा लिबाज, सादा खाना, एकांत में रहना. उस समय रजो त्योहार भी सीमित था. महिलाएं हल्दी लगाती थीं. काजल, आलता लगाती थी. पहली बार रजोस्वला होने पर परिवार में उत्सव मनता था. दायरा सीमित था. अब महिलाएं खुल कर सार्वजनिक रूप में इस उत्सव को मनाती हैं. बेटी जब पहली रजोस्वला हुई तो घर में बहुत उत्साह के साथ इसे मनाया गया. खासतौर पर उसके पिता की इसमें अहम भूमिका रही. अच्छी बात यह है कि जब वह खेल के मैदान में होती है और ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है तो सबसे पहले अपने पिता से संपर्क करती हैं. यही होना चाहिए. रजो त्योहार यही संदेश देता है. समाज की परंपरा के अनुसार पहली बार रजोस्वला होनेवाली कन्या को सातवें हल्दी स्नान कराया जाता है. काजल, आलता लगवाया जाता है. पीढ़ा पर बैठा कर उसकी पूजा की जाती है. गुड़ का खीर बनता है जो सभी में बांटा जाता है.

नियम और परंपराएं महिलाओं के हित में बनी : प्रतिभा महंती

शिक्षाविद प्रतिभा महंती मानती हैं कि पहले के समय में जो भी नियम और परंपराएं बनाये गये वो सारे महिलाओं के हित को सोच कर ही बनाये गये थे. लेकिन बाद में इसे महिलाओं के लिए बेड़ियां बना दी गयी. पहले लोग संयुक्त परिवार में रहते थे. लोग ज्यादा थे कामकाज भी ज्यादा थी. तो उन दिनों में महिलाओं को आराम करने के लिए दिया जाता था. लेकिन खानपान का विशेष ध्यान रखा जाता था. बाद में मासिक धर्म को कु प्रथा, कु संस्कारों से जोड़ दिया गया. जो महिलाओं के लिए बाधा बन गयी. वर्षों पहले रजो उत्सव को ओडिशा के राजा द्वारा प्रारंभ किया गया, ताकि महिलाएं उन दिनों को आनंद और उत्साह के साथ बीता सके. इस समय मीठा पान, ठंडई के अलावा तरह-तरह के पीठा खाने की परंपरा है. जो शरीर को स्वस्थ भी रखता है और मासिक धर्म से होनेवाली पीड़ा को कम करता है. क्योंकि इस समय धरती मां रजोस्वला होती है. रजो उत्सव धरती मां और नारी के सम्मान में मनता है.

तीन दिनों तक घर संभालेंगे पुरुष, महिलाएं करेंगी आराम

तीन दिनों के रजो उत्सव के दौरान घर संभालेंगे पुरुष और महिलाएं करेंगी आराम. शहर के कई जगहों पर रजो उत्सव का आयोजन किया जायेगा. उत्कल एसोसिएशन साकची में 14 जून को महिला मंडल द्वारा रजो उत्सव मनाया जायेगा. जहां महिलाएं झूला झूलेंगी. मीठे पान से लेकर पीठा का आनंद उठायेंगी. साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेंगी. उत्कल बांधव समिति द्वारा इस साल रजो उत्सव में मीना बाजार लगाया जायेगा. महिलाओं द्वारा रजो के गीत पर नृत्य पेश किया जायेगा. झूला झूल कर महिलाएं इस दिन को आनंद और उत्साह के साथ मनायेंगी.

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