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महुआ चुनने के लिए जंगल में लगायी जा रही आग, दर्जनों प्रजाति के औषधीय पौधे हो रहे नष्ट

लोहरदगा के पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों में आग लगने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. विगत एक पखवारे से जंगलों में लगी आग सैकड़ों एकड़ में फैल चुकी है. इसके कारण छोटे पौधे झुलस रहे हैं. औषधीय पौधे तथा वन्य जीवों के अस्तित्व पर उखरा उत्पन्न हो गया है.

लोहरदगा, संजय कुमार. जिले के पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों में आग लगने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. विगत एक पखवारे से जंगलों में लगी आग सैकड़ों एकड़ में फैल चुकी है. इसके कारण छोटे पौधे झुलस रहे हैं. औषधीय पौधे तथा वन्य जीवों के अस्तित्व पर उखरा उत्पन्न हो गया है. आग की बड़ी लपटों ने बड़े पेड़ों को भी अपनी चपेट में ले लिया है. बढ़ी संख्या में औषधीय पौधे जलकर खाक हो रहे हैं. जहां दिन में जंगलों से धूंआ उठता दिखाई देता है वहीं, रात का दृश्य मानो ऐसा लगता है जैसे वनों से आच्छादित पहाड़ियों ने सुर्ख लाल रंग की चमकीली माला पहनी हो.

इन इलाकों के जंगलों में फैली है आग

जिले के सैकड़ों एकड़ जंगल आग से प्रभावित है. सूत्रों की माने तो जिले के किस्को प्रखंड क्षेत्र के देवदरिया, पाखर, तलसा, खरिया, कुंभीखाड़, जोभीपानी, रामगढ़वा, हड़गड़ा, मसूरियाखाड़, जोबांग, कुडू प्रखंड के दोबांग, बोदा, चूल्हापानी, सेन्हा प्रखंड के मुर्की, पेशरार के इचवाटाड़, बुलबुल, झमटबार, लावापानी, मुंगो, शाहीघाट, तुरियाडीह पहाड़, बुधनीपहाड़, पाखर पहाड़ आदि इलाकों के जंगलों में आग लगायी गयी है.

आग लगाए जाने से दर्जनों औषधीय पौधों हो रहे हैं नष्ट

जिले के विभिन्न जंगलों में आग लगाए जाने से दर्जनों प्रजातियों की औषधीय पौधें नष्ट हो रहे हैं. नष्ट होने वाले औषधीय पौधों में आंवला, हर्रा, बहेरा, सतावर, चुलबुलिया घास, सीदहा आदि शामिल है. आंवला, हर्रा, बहेरा, सतावर के पेड़ से विभिन्न बीमारियों के लिए दवाएं बनायी जाती है तो चुलबुलिया घास के द्वारा आदिवासी समुदाय के लोग हड़िया दारू आदि बनाते हैं. वहीं, सीदहा का प्रयोग शादी ब्याह के समय रस्म अदायगी में किया जाता है. ऐसे बेशकिमती पौधों को जलाने वाले कौन हैं, इस पर प्रशासन मौन है.

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क्यों लगायी जाती है आग

महुआ पेड़ गिरने के बाद हरी पत्त्यिों के बीच नहीं छिपे और रात में जंगली जानवरों एवं विषैले जीवों का भी भय न हो, इसके लिए महुआ चुनने वाले गांव के लोग जंगलों में आग लगा देते हैं. इसके अलावा मार्च-अप्रैल के महीनों में शिकारी जंगली जीवों के आने जाने के रास्ते के अगल बगल आग लगा कर उनके रास्ते बंद कर देते हैं, ताकि वे भटकें और शिकारियों का काम आसान हो. लकड़ी से कोयला बनाने वाले लोग भी आग लगाकर छोड़ देते हैं जो कई बार जंगल में आग लगने का कारण बनती है.

जागरूकता लाने पर दिया जाएगा जोर

वन विभाग के कर्मियों का कहना है कि पतझड़ के मौसम में जंगलों में पत्तियां गिर जाती है. अकसर महुआ चुनने के क्रम में ग्रामीण पत्तों में आग लगा देते हैं, हवा चलने से यह आग तेजी से जंगलों में फैलती है. इस निमित्त वन विभाग द्वारा पोस्टर एवं पैंपलेट के अलावा नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से भी ग्रामीणों के बीच जागरूकता लाने का अभियान चलाया जाता रहा है. वर्तमान में इस अभियान को और गति दी जाएगी.

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