Lucknow: सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ की लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट को बरकरार रखने का फैसला किया है. यह फैसला इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि वह बतौर विधायक अब यूपी में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जमीन तैयार करने में जुटेंगे. यही नहीं बीजेपी के नेताओं के जिन सवालों का जवाब वह चुनावी जनसभा में नहीं दे पाए थे, उसका पलटवार भी करेंगे. साथ ही योगी आदित्यनाथ सरकार को चुनौती भी पेश करेंगे.
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी 2017 के मुकाबले मजबूत होकर उभरी है. इस चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है और सीटें भी बढ़ी हैं. ऐसे में अखिलेश यादव यूपी में मजबूत विपक्ष के रूप में स्वयं को सामने रखकर कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखना बड़ी चुनाैती होगा. क्योंकि लगातार 10 साल सत्ता से बाहर रहने पर कार्यकर्ता निराश होने लगता है और वह सत्ता की तरफ झुकता चला जाता है. इसलिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी उन्हें इस कड़ी चुनौतियाें का सामना करना पड़ेगा.
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के विधानसभा की सदस्यता बरकरार रखने के फैसले से यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि वह यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभाएंगे. यदि वह ऐसा करते हैं तो 13 साल बाद ऐसा मौका आएगा, जब कोई पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष के रूप में सदन में बैठेगा. इससे वह बीजेपी से आमने-सामने की लड़ाई लड़ सकेंगे.
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यूपी की राजनीति के बीते वर्षों को खंगालें तो पाएंगे कि वर्ष 2009 के बाद अखिलेश यादव ऐसे दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री होंगे, जो नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहेंगे. इससे पहले अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव सदन में नेता प्रतिपक्ष थे. इससे वह सदन व सड़क दोनों पर ही तत्कालीन सत्ता के जनविरोधी फैसलों के खिलाफ जमकर आवाज उठाते थे.
अखिलेश यादव ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा है. इसमें उन्होंने जीत भी हासिल की. इससे पहले वह विधान परिषद के सदस्य के रूप में मुख्यमंत्री रहे थे. मैनपुरी समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है. करहल की जनता ने अखिलेश यादव पर विश्वास जताते हुए उन्हें विधानसभा पहुंचाया है. माना जा रहा है कि इसीलिए वह 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी की कोई साख को वापस पाने के लिए नेता प्रतिपक्ष के रूप में मुख्य भूमिका में रहना चाहते हैं.
अखिलेश यादव के लिए यूपी में समाजवादी पार्टी के बढ़े वोट बैंक को सहेज कर रखना भी बड़ी चुनौती है. विधानसभा चुनाव 2022 में उन्हें जो 32 प्रतिशत वोट मिले हैं, उसे 2024 के लोकसभा चुनाव तक संभालना भी बहुत जरूरी है. 2019 चुनाव में बसपा से गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी को 5 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी. विधानसभा चुनाव की तरह ही सपा को लोकसभा में अधिक से अधिक सीटें जिताना उनकी चुनौती को बढ़ा रहा है.
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