लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और प्रयागराज के असिंचित कृषि क्षेत्र को सिंचित कर पैदावार बढ़ाने के लिए बनी बाणसागर नहर परियोजना को पूरा होने में इतना समय लग गया कि बजट प्रस्तावित लागत से करीब 11 गुना अधिक खर्च हो गया. वर्ष 1977-78 में 330.19 करोड़ में मंजूर हुई इस परियोजना के निर्माण में 3420.24 करोड़ खर्च हुए. इसके बाद भी परिणाम यह है कि इस सिंचाई परियोजना से पोषित 25 में से 21 गांवों में गेंहू का उत्पादन 55 फीसदी तक घट गया है. चना की खेती करने वाले नौ गांवों में 50 फीसदी तक पैदावार कम हो गई है. यह खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) की रिपोर्ट में किया गया है. उप्र विधान सभा के मानसून सत्र में सदन की पटल पर यह रिपोर्ट रखी जा चुकी है.
उत्तर प्रदेश के पठारी क्षेत्र के बेलन घाटी में स्थित मीरजापुर एवं प्रयागराज जिला में आने वाली करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि खेती के लिए बहुत उपजाऊ है परन्तु यहां सिंचाई के पानी की कमी थी. यहां के किसान अक्टूबर एवं नवम्बर महीनों में बारिश नहीं होने से खरीफ एवं रबी फसल की उपज नाममात्र को ले पा रहे थे. सिंचाई संसाधनों का दोहन एवं सिंचाई से कृषि उत्पादन को बढावा देने के लिए घाटी के भीतर सिंचाई सुविधाओं का विस्तार के लिए मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में सोन नदी पर निर्मित बाणसागर बांध से पानी लाने के लिए 1977 में योजना तैयार की गई थी. बाणसागर बांध से पानी लाकर यूपी के मिर्जापुर जिला के अदवा और जरगो बांध तथा प्रयागराज जिला के मेजा बांध को नहरों के जरिए लिंक कर असिंचित क्षत्रों में सिंचाई के लिए 330.19 करोड़ की मंजूर हुए थे. योजना को 10 अगस्त 1978 को अनुमोदित कर बाणसागर नहर परियोजना नाम दिया गया. 15 जुलाई 2018 को मिर्जापुर के चनईपुर गांव में एक कार्यक्रम आयोजित कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका शुभारंभ किया.
कैग (CAG) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है बाणसागर नहर परियोजना में 14 साल की देरी के कारण लागत तो दस गुना बढ़ गयी. सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि कुल 2.32 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सघनता बढ़ानी वाली यह परियोजना उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के दोनों लक्ष्य पर सफल नहीं हुई. 3420.24 करोड़ खर्च करने के बाद गेंहू और चना दोनों का उत्पादन 55 फीसदी तक कम हो गया. बाणसागर नहर परियोजना की नौ नहर प्रणालियों से सिंचाई सघनता 85 फीसदी से बढ़ाकर 150 फीसदी की जानी थी. डेढ़ लाख हेक्टेयर के करीब अतिरिक्त क्षेत्र को सिंचित करना था. सदन में पेश रिपोर्ट को आधार मानें तो कैग ने इस परियोजना के 92 गांवों के उत्पादन के तुलनात्मक आंकड़ों के लिए 34 गांवों का डाटा देखा. 25 गांवों में गेंहू और नौ गांवों में चने का उत्पादन के आंकड़े वर्ष 2018-19 और 2020-21 को आधार मानकर देखे गए.
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तुलनात्मक आंकड़ों के आधार कैग की रिपोर्ट बताती है कि जिन 25 में गेहूं के उत्पादन की तुलना की गई उसमें से 21 गांवों में वर्ष 2018-19 के मुकाबले साल 2020-21 में गेंहू का उत्पादन 04 से 55 फीसदी तक कम हो गया था. हालांकि चार पांच गांव में पांच से 53 फीसदी तक बढ़ोत्तरी भी दर्ज हुई. वहीं 09 गांव में चने के उत्पादन में 50 प्रतिशत तक की गिरावट आई. कैग की रिपोर्ट में कृषि विभाग द्वारा अरहर , सब्जी, मक्का मटर, तिलहन, आदि का ब्यौरा न देने की भी बात कही गई है. चौंकाने वाला एक अन्य खुलासा यह भी है कि बाणसागर नहर परियोजना को 34008 मिलियन घन फीट की जल आपूर्ति मिलनी थी लेकिन वास्तविकता में पानी की आपूर्ति अधिकतम नौ प्रतिशत ही रही. यानि बाणसागर बांध से यूपी को केवल पांच से नौ फीसदी की जल आपूर्ति मिली. फसल चक्र की बात करें तो रबी में सिंचाई सघनता 83 प्रतिशत की जगह 38 तथा खरीफ में सिंचाई सघनता 67 फीसदी के लक्ष्य के मुकाबले 34 प्रतिशत रही. यानि रबी में 45 और खरीफ में 33 फीसदी तक सिंचाई सघनता की कमी रहने से उत्पादन और उत्पादकता प्रभावित रहा.
एशिया की सबसे बड़ी बाणसागर नहर परियोजना की कुल लंबाई 171 किलोमीटर है. मिर्जापुर और इलाहाबाद के असिंचित क्षेत्रों के करीब 1.70 लाख किसानों इससे लाभान्वित हो रहे हैं. मिर्जापुर में 75 हजार 309 हेक्टेयर और इलाहाबाद में 74 हजार 823 हेक्टेयर भूमि सिंचित होने का दावा है. इस परियोजना के निर्माण के लिए मध्य प्रदेश ने 50 फीसदी, उत्तर प्रदेश ने 25 फीसदी और बिहार ने 25 फीसदी वित्तीय सहायता देना स्वीकार किया था. जनता सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 14 मई 1978 को इसकी आधारशिला रखी थी. इस परियोजना के लिए 1977 के मूल्य के आधार पर 1978 में 322.30 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे. परियोजना का काम दस साल में पूरा किया जाना था, लेकिन वित्तीय अभाव में परियोजना का काम लटकता गया. हालांकि मध्य प्रदेश ने अपने हिस्से का काम 2006 में पूरा कर लिया था.
सोन नदी पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की बहुउद्देशीय बाणसागर नहर परियोजना का मुख्य बांध मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के देवलोंद गांव के पास स्थित है. मुख्य बांध की कुल लंबाई 1020 मीटर है, जिसमें से 671.72 मीटर पक्की धार वाला बांध है. बांध में जल निकासी के लिए 50 और 60 फुट के रेडियल क्रेस्ट गेट लगाए गए हैं. मध्य प्रदेश में परियोजना का डूब क्षेत्र 58400 हेक्टेयर है, जिससे 336 गांव प्रभावित हुए. इनमें से 79 गांव पूरी तरह से डूब गए हैं, जबकि 257 गांव आंशिक तौर पर डूबे हैं. इस बाणसागर परियोजना से मध्य प्रदेश में 1.54 लाख हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 1.50 लाख हेक्टेयर और बिहार राज्य में 94 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा सकती है.
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बाणसागर बांध:
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बाणसागर बांध का निर्माण मध्य प्रदेश के शहडोल जनपद के देवलोन में हुआ है.
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उत्तर प्रदेश सरकार ने बांध की लागत के 25% को मध्य प्रदेश को अंशदान के रूप में प्रदान किया है.
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मध्य प्रदेश सरकार ने 15.240 किमी संयुक्त पोषक नहर का निर्माण किया है.
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इन नहरों की लागत का अंशदान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकारों द्वारा किया गया है.
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बाणसागर पोषक नहर:
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इस नहर की कुल लंबाई 494 किमी है और डिस्चार्ज 46.46 क्यूमेक है.
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मिट्टी के कार्य, सुरंग का निर्माण, और पक्के कार्य पूर्ण किए गए हैं.
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यह नहर 2013 से 700 क्यूसेक क्षमता तक का संचालन कर रही है.
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अदवा मेजा लिंक नहर:
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इस नहर की कुल लंबाई 600 किमी है और डिस्चार्ज 46.46 क्यूमेक है.
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नहर के निर्माण और लाइनिंग कार्य पूर्ण हो चुके हैं।
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2018 से यह नहर मेजा जलाशय में 1640 क्यूसेक क्षमता से पानी पुनर्निर्वहण कर रही है.
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मेजा जिरगो लिंक नहर:
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इस नहर की कुल लंबाई 130 किमी है और डिस्चार्ज 16.43 क्यूमेक है.
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नहर का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है.
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इस नहर का संचालन 2021 के जुलाई माह से जिरगो जलाशय में 200 क्यूसेक पानी पुनर्निर्वहण कर रहा है.
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मेजा कोटा फीडर चैनल:
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इस नहर की कुल लंबाई 577 किमी है और डिस्चार्ज 9.21 क्यूमेक है.
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समस्त कार्य पूर्ण हो चुके हैं और संचालन पूर्ण क्षमता से हो रहा है.
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राजवाहे एवं अल्पिकाएं:
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परियोजना के अंतर्गत बेलन नहर प्रणाली, टोंस नहर प्रणाली, यमुना नहर प्रणाली, जिरगो नहर प्रणाली, और बरौधा नहर प्रणाली के मुख्य नहरों का पुनरोद्धार पूरा हो चुका है.
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इनके साथ ही रानीबारी राजवहा और उपरौध राजवहा प्रणालियों को पानी प्रदान किया जा रहा है.
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