Artificial Rain: क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के जरिए कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) कराने के प्रयासों में आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) को मिली सफलता के बाद एक और अच्छी खबर है. आईआईटी कानपुर को अब इसके लिए आधिकारिक तौर पर मंजूरी मिल गई है. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक अब अपनी इस उपलब्धि का लाभ देश के विभिन्न हिस्सों में आवश्यकता के मुताबिक दे सकेंगे. इससे खेती किसानी से जुड़ी समस्या दूर होने के साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को भी मदद मिलेगी. आईआईटी कानपुर ने क्लाउंड सीडिंग के लिए अपनी हर परीक्षण उड़ान को सफल साबित किया है और हजारों फीट की ऊंचाई से एक पाउडर गिराने के बाद कृत्रिम बादल बनाने में कामयाब हो चुका है. ये कृत्रिम बादल धरती पर बारिश कराने में सक्षम होते हैं और ऐसा लगता कि मानों वास्तव में प्राकृतिक तरीके से बारिश हुई हो. अब आईआईटी कानपुर जहां जितनी जरूरत हो उतनी बारिश करने में पूरी तरह से सक्षम है. सरकार के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से उसे इसकी इजाजत भी मिल गई है. इस मंजूरी के बाद अब देश में जहां भी जरूरत होगी वहां कृत्रिम बारिश करना आसान होगा.
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से कृत्रिम बारिश की इजाजत मिलने के बाद आईआईटी कानपुर ने इस संबंध में वन पर्यावरण पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अवगत करा दिया है. इससे न सिर्फ खेती में मदद मिलेगी बल्कि हवा की गुणवत्ता में सुधार के जरिए वायु प्रदूषण को भी नियंत्रित किया जा सकेगा. बताया जा रहा है कि क्लाउड सीडिंग के माध्यम से बारिश करने की दिशा में आईआईटी कानपुर ने कुछ साल पूर्व काम करना शुरू किया था. तब से इस दिशा में सात प्रयोग किए गए, जिनमें पांच बार प्रयोग पूरी तरह से सफल रहे और टेस्टिंग मानकों पर पूरी तरह से खरे उतरी.
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इस प्रोजेक्ट से जुड़े प्रोफेसर महेंद्र अग्रवाल के मुताबिक डीजीसीए से मिली मंजूरी के बाद अब हम इस क्षेत्र में काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. उन्होंने बताया कि हमारे पास तकनीक तो थी लेकिन एयरक्राफ्ट नहीं था हमने आईआईटी कानपुर के पास उपलब्ध सेस्ना एयरक्राफ्ट को अब इस काम के लिए दुरुस्त कर लिया है. उत्तर प्रदेश सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के निदेशक अनिल यादव के मुताबिक तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण प्रदेश को इस तकनीक की बेहद जरूरत है. इसके जरिए अब कई कार्यों में मदद मिल सकेगी.
आईआईटी कानपुर ने कृत्रिम बारिश कराये जाने के लिए इस परियोजना पर छह साल पहले से ही काम करना शुरू किया था. इसका नेतृत्व आईआईटी कानपुर के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग ने किया. इस तरह प्रदूषण और सूखे से निजात दिलाने को आईआईटी कानपुर की कोशिशें कामयाब हुई हैं.
बारिश के परीक्षण के लिए एक विशेष विमान और उपकरणों की जरूरत पड़ी. 2020 में अमेरिका से उपकरण मंगाए गए पर लॉकडाउन के कारण आपूर्ति नहीं हो सकी. इसके बाद 2021 में आईआईटी कानपुर की टीम अमेरिका से सारे उपकरण लेकर यहां पहुंची, जिन्हें अमेरिकी एयरक्राफ्ट सेस्ना में लगाने को अनुमति मांगी गई. इसके बाद 5000 फीट की ऊंचाई पर ये प्रयोग सफल रहा. इस परीक्षण के दौरान तय मानकों के अनुसार फ्लेयर का इस्तेमाल करके एजेंटों को फैलाया गया, जिससे बादल बनाए गए.