Lucknow : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सीतापुर नेशनल हाइवे (Lucknow-Sitapur National Highway) पर 30 किमी चलने के बाद माल रोड पर आगे बढ़ते हैं तो लोग और वाहनों की आवाजाही कम नजर आती है. जैसे- जैसे आगे बढ़ते हैं, सड़क पर आवागमन घटता और बाढ़ का पानी बढ़ता नजर आता है. लखनऊ-सीतापुर नेशनल हाइवे से जुड़े इस मार्ग पर करीब पांच किमी आगे बढ़ने पर पुलिस कर्मी केके भारती और सिद्धार्थ और कुछ ग्रामीण बैठे नजर आते हैं. इनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं. यह अधिकांश महिला-पुरुष रक्षाबंधन के बाद अपने घर को लौट रहे हैं.
बाढ़ के पानी से घिरे अपने गांव बहादुरपुर-सुल्तानपुर में जाने के लिए नाव का इंतजार कर रहे इन ग्रामीणों की आपसी बातचीत में बाढ़ का पानी कब उतरेगा और यह रास्ता कब खुलेगा इसी का अंदाज लगाकर एक दूसरे से बयां कर रहे थे. ग्रामीणों की आपसी चर्चा के बीच जब “प्रभात खबर” ने बाढ़ के हालात पर बात शुरू की तो फिर सभी की भाव भंगिमा ऐसी हो गईं मानों हमने उनके किसी जख्म पर नमक डाल दिया हो. गुस्सा था, उस व्यवस्था से तो बाढ़ राहत के बड़े-बड़े दावे कर रही थी. मीडिया की उन रिपोर्टों को लेकर जो ‘आल इज वेल ‘ बता रही हैं.
सुल्तानपुर ग्राम पंचायत के गांव सुल्तानपुर और बहादुरपुर में जाने का एकमात्र साधन नाव है. चारों तरफ पानी से घिरी इस पंचायत की आबादी करीब तीन हजार है. प्रशासन की ओर से केवल तीन नाव उपलब्ध कराई हैं. सुल्तानपुर ग्राम पंचायत के सदस्य और पंचायत की जल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष नौमी लाल बताते हैं ” रास्ता बंद है, औरतन का निकरे मा वौ दिक्कत भई, रक्षाबंधन रहे, अब का कीन जाए, कई औरतें आ रहीं जा रहीं, प्रशासन कछु नहीं करिस . अउर साहब तीन नावें मिली दुई गांवन के अंदर, जनसंख्या बहुत ज्यादा हमरे वहां “. कोई लेखपाल आई वीडीओ आई तबतौ हम ब्वालब, हम अपन घर बचाई की वीडीओ को बुलाई. पूरा नुकसान हो गया साहब 90 परसेंट नुकसान हो गया है, आठ दिन से धान बूड़ा है, लेखपाल देख लें, हम लोग मर जाब अब.” यह कह कर नौमी लाल एक सांस में बता देते हैं कि बाढ़ के कारण गांव में कैद ग्रामीण किस तरह परेशान हैं.
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार से जो मदद मुहैया कराई जा रही है. वह तो गांव तक पहुंच रही है ? हमारे इस सवाल पर एक ग्रामीण कहते हैं ” फर्जी लिख लैगे साहब, कुछ नहीं दिहिन साहब, लेकिन अबकी दिहिन जाए, यह हमरी सरकार से गुजारिश है “. इसी बीच एक नाव से करीब नौ लोग उतरते हैं.मुश्किल से छह लोग सवार हो सकें नाव इतनी छोटी थी, और उसमें कोई सेफ्टी के उपकरण या किट आदि भी नहीं थी. खेवैया कोई पेशेवर व्यक्ति नहीं था. गांव के ही लोग उसे खे रहे थे. यानि जिसके रिश्तेदार या परिवार के लोग आ जा रहे थे वही लोग नाव किसी तरह खेकर उनको पार लगा रहे थे.
गांव के अंदर की स्थिति का जायजा लेने “प्रभात खबर” की टीम जब नाव पर सवार हुई तो हमारे साथ सवार हुए नौमी लाल इशारे कर बताते हैं कि नाव धान की खड़ी फसल के ऊपर चल रही है. पानी इतना अधिक है कि खेत गहरी झील में तब्दील हो गए हैं. गांव की तरफ नाव बढ़ती है तो गांव के किनारे तरकारी की बेल नजर आती हैं. खेत में बांस गाढ़कर उनके ऊपर किसानों ने बेल चढ़ाई थी लेकिन अब बांस डूंठ की तरह नजर आ रहे थे. सब्जियों की बेल गल गयीं थी. नाव बहादुरपुर गांव के किनारे लगती है. करीब 40 मिनट में हम पार लगे थे. नाव जहां रुकी थी उसी मुहाने पर कुछ महिलाएं हमें सरकारी अधिकारी समझकर अपनी समस्या बताने लगती हैं. इससे पहले वह जायजा लेने में देरी होने का शिकायत करती हैं, बाद में उनको पता चलता है कि हम सरकारी अधिकारी नहीं है, तो समस्या को उन तक पहुंचाने का अनुरोध करने लगती है.
नम आंखों से यह कहते हुए बहादुरपुर निवासी सावित्री देवी की आंखें डबडबा जाती हैं. वह कहती है कि उन्होंने अपनी और बटाई पर धान की खेती की थी. करीब बीस बीघा में खड़ी फसल बर्बाद हो गई है. जितनी भी जमां पूजी थी वह बटाई वाले खेत में फसल की बुवाई में खर्च हो गई. बाढ़ के पानी के कारण आसपास मजूदी भी नहीं मिल रही है. अब कल क्या खाएंगे यह सोचकर ही डर लगता है. उनके पास ही खड़ी गांव के एक अन्य बुजुर्ग महिला का भी दु:ख सावित्री की तरह का है. उनके परिवार के पास कुल तीन बीघा जमीन है. उनके खेत की फसल भी बर्बाद हो गई है.
बाढ़ के पानी के कारण केवल संपर्क मार्ग नहीं कटा है, जीवन ठहर गया है. सीमा इस एक वाक्य में बाढ़ से प्रभावित हुए जीवन का सार कह देती हैं. वह कहती हैं कि गांव के अधिकांश घरों में भले पानी नहीं घुसा है लेकिन सब ठप हो गया है. 15 दिन से कोई स्कूल नहीं जा पा रहा है. सीमा बीए कर रही हैं करीब 10 किमी दूर उनका कॉलेज है. कक्षा आठ के बाद लड़के- लड़कियों को इटौंजा स्थित कॉलेज पड़ता है. दो गांव के बीच केवल तीन नाव होने से सुबह उनमें बैठने को लेकर मारामारी रहती है. किसी विवाद- परेशानी से बचने के लिए उनके परिवार ने निर्णय लिया है कि रास्ता खुलने तक वह स्कूल नहीं जाएंगी.
सुल्तानपुर, बहादुरपुर, लासा, अकडरिया कला खुर्द में सैकड़ों एकड़ में फैले खेत डूब गए हैं जिसकी वजह से धान-सब्जी आदि की फसल बर्बाद हो गई है. किसान अपनी खेती को हुए नुकसान की वीडियो बनाकर सुरक्षित रख रहे हैं ताकि सरकार सर्वे कराए तो वह प्रमाण के रूप में दिखा सकें. स्थानीय प्रशासन ने अलर्ट जारी किया है. चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है. हालांकि, जानमाल के नुकसान की कोई रिपोर्ट नहीं आई है.बाढ़ प्रभावति इन गांवों के लोगों से अभी तक किसी सरकारी अधिकारी कर्मचारी ने संपर्क नहीं साधा है. गांव वालों के अन आरोप की पुष्टि इस बात से हो रही थी कि ग्राम पंचायत सचिवालय में केवल पंचायत सहायक को छोड़कर कोई भी विभाग से अधिकारी- कर्मचारी नहीं था. सभी के कमरे में ताला लटका था.
सरकार के रिकार्ड में प्रदेश के 21 जनपदों के 721 ग्राम बाढ़ से प्रभावित हैं. सरकार ने बाढ़ के कारण जिन किसानों की फसलें बर्बाद हुई है, सरकार उनका सर्वे कराकर समय पर मुआवजा उपलब्ध कराने की कार्रवाई को आगे बढ़ा रही है. सुल्तानगंज ग्राम पंचायत बाढ़ प्रभावित घोषित हुई है कि नहीं, ग्रामीणों को इसमें भी संशय है. नाम न छापने की शर्त पर ग्राम पंचायत सदस्य ने बताया कि दूसरों से पता चला है कि सुल्तानपुर, बहादुरपुर में आई बाढ़ को झील का जल स्तर बढ़ना मान लिया गया है. इसी कारण पशुओं के लिए हरा चारा, बाढ़ राहत सामिग्री आदि का वितरण नहीं हुआ है.
गोमती नदी की गिनती पूरी तरह से उत्तर प्रदेश की नदी है. इसका उद्गम और विलय दोनों ही स्थल यूपी में हैं.गोमती पीलीभीत के दलदली क्षेत्र से निकलती है. यहां से यह शाहजहांपुर, खीरी, सीतापुर, लखनऊ, सुल्तानपुर, एवं जौनपुर आदि ज़िलों में बहती हुई गाजीपुर के निकट गंगा नदी में मिल जाती है. गोमती बेसिन के लखनऊ खंड में दाहिनी ओर मलीहाबाद तहसील का कुछ भाग, बायीं ओर महोना , लखनऊ तहसील का मध्य भाग और मोहनलालगंज तहसील का उत्तर-पूर्वी भाग शामिल है. यह क्षेत्र अनेक झीलों और तालाबों से युक्त है. रेठ नदी इस क्षेत्र में निकलती है और पूर्व दिशा में बाराबंकी जिले से होकर बहने के बाद अंततः गोमती के बाएं किनारे पर मिल जाती है.