23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Independence Day 2023: वो तारीखें जो बनी इतिहास का अमिट हस्ताक्षर, इनके बिना अधूरा है स्वतंत्रता आंदोलन

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. इस दौरान लोग आजादी के महानायकों के शौर्य को नमन कर रहे हैं. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर कई ऐसी तारीख हैं, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नों का अमिट लेख बन चुकी हैं.

Independence Day 2023: उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रमों को लेकर हर भारतवासी में बेहद उत्साह देखने को मिल रहा है. आजादी की लड़ाई में शहीद हुए हमारे पूर्वजों को नमन करते हुए उनकी शहादत को देशवासी याद कर रहे हैं. वहीं अगर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर नजर डालें तो कई तारीखें ऐसी हैं जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई हैं.

इनका जिक्र किए बिना आजादी की लड़ाई की दास्तान अधूरी है. इन तारीखों में कहीं देश की आजादी से जुड़े बड़े आंदोलनों की शुरुआत हुई तो कहीं ये बदलाव की अहम वजह बनी. आइए जानते इन घटनाओं के बारे में और किसने इसमें मुख्य भूमिका निभाई.

भारत में अंग्रेजों के आधिपत्य की बात करें तो 1757 में प्लासी का युद्ध अहम माना जाता है, इसकी जीत ने भारत में अंग्रेजी शासन की नींव रखी. यही वो समय था जब अंग्रेज भारत आए और करीब 200 साल तक राज किया. वहीं 1848 में लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान अंग्रेजों का शासन स्थापित हुआ था. सबसे पहले उत्तर-पश्चिमी भारत अंग्रेजों के निशाने पर रहा और उन्होंने अपना मजबूत अधिकार 1856 तक स्थापित कर लिया था. इसका नतीजा था 1857 का विद्रोह. यह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहला संगठित आंदोलन कहलाया, जिसे गदर की लड़ाई भी कहा जाता है. उत्तर प्रदेश में इस लड़ाई की जुड़े कई स्थान आज भी आजादी के रणबांकुरों के शौर्य की गवाही देते हैं.

Also Read: Independence Day: निर्मोही अखाड़े के कारण लक्ष्मीबाई का शव नहीं ले पाए अंग्रेज, लड़ाई के दौरान तैयार की चिता
1857 का विद्रोह

यह विद्रोह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है. 1857 की क्रान्ति की शुरुआत ’10 मई 1857′ को मेरठ में हुई थी. 34वीं नेटिव इन्फैंट्री के एक सिपाही मंगल पांडे ने एक सिपाही विद्रोह के रूप में इस आंदोलन को मेरठ में शुरू किया गया था, जो नई एनफील्ड राइफल में लगने वाले कारतूस के कारण हुआ था. कहा जाता है कि ये कारतूस गाय और सूअर की चर्बी से बने होते थे, जिसे सैनिक को राइफल इस्तेमाल करने के लिए मुंह से हटाना होता था और ऐसा करने से सैनिकों ने इनकार कर दिया था. यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला. नाना साहिब, तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल आदि इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

Allan Octavian Hume, Dadabhai Naoroji और Theosophical Society के सदस्य Dinshaw Wacha ने मार्च 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया था. यह एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य में उभरने वाला पहला आधुनिक राष्ट्रवादी आंदोलन था. पार्टी ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ शर्तों को रखना और बातचीत करना शुरू किया और तब से आंदोलनों को व्यवस्थित किया. यह आंदोलन केवल 72 प्रतिनिधियों के साथ शुरू हुआ था. 1947 में स्वतंत्रता आंदोलन के अंत तक कांग्रेस 15 मिलियन से अधिक सदस्यों के साथ एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरी थी.

बंगाल का विभाजन

बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा 19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड कर्जने ने की. विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हुआ था. विभाजन के कारण उत्पन्न उच्च स्तरीय राजनीतिक अशांति के कारण 1911 में दोनों तरफ की भारतीय जनता के दबाव की वजह से बंगाल के पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्से पुनः एक हो गए थे.

महात्मा गांधी का आगमन

दक्षिण अफ्रीका में औपनिवेशिक साम्राज्य के खिलाफ लड़ने के बाद, गांधीजी 1915 में भारत आए थे. उन्होंने भूमि कर जैसे दमनकारी औपनिवेशिक कानूनों के विरोध में किसानों और मजदूरों का आयोजन करना शुरू किया. गांधी जी 1921 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलनों का नेतृत्व किया. इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका सर्वोपरि रही है. उन्होंने अहिंसा, महिलाओं के अधिकारों का प्रचार किया, अस्पृश्यता और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच कमजोर नीतियों के खिलाफ विरोध किया था.

जलियांवाला बाग कांड

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने निहत्थे, बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों पर गोलियां चला दी, जिसमें वे मारे गए. हजारों लोगों घायल हो गए थे. यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था, तो वह घटना यह जघन्य हत्याकांड ही था. इसने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के स्वर को बदल दिया. भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को जन्म दिया. रवींद्रनाथ टैगोर ने इस नरसंहार के खिलाफ विरोध किया और knighthood की उपाधि को लौटा दिया.

खिलाफत आंदोलन

खिलाफत आन्दोलन भारत में मुख्यत: अल्पसंख्यकों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आंदोलन था. इस आंदोलन का उद्देश्य (सुन्नी) इस्लाम के मुखिया माने जाने वाले तुर्की के खलीफा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था. सन् 1924 में मुस्तफा कमाल के खलीफा पद को समाप्त किये जाने के बाद यह स्वत: समाप्त हो गया था. इस आंदोलन को एक राजनीतिक स्तर तब प्राप्त हुआ जब मुसलमानों ने कांग्रेस के साथ उपनिवेशवादियों के खिलाफ हाथ मिला लिए थे.

दिल्ली विधानसभा बम विस्फोट

1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली केंद्रीय विधानसभा में राजनीतिक कारणों से धुएं वाले बमों को फेंका. उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि उनको गिरफ्तार किया जाए ताकि वे कानूनी मुकदमे के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने तर्क प्रस्तुत कर पाए.

असहयोग आंदोलन-नमक कानून

इस आंदोलन के दो चरण 1921-1924 और 1930-1931 थे. ब्रिटिश सरकार द्वारा निष्पक्ष व्यवहार नहीं होता देख 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरु किया. यह आंदोलन 1922 तक चला और सफल रहा. नमक आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने मार्च 1930 में अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से 388 किलोमीटर समुद्र के किनारे बसे शहर दांडी तक की थी. अंग्रेजों के एकछत्र अधिकार वाला कानून तोड़ा और नमक बनाया था. रावी अधिवेशन, 1929 के लाहौर में रावी नदी के तट पर हुए कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग की गई थी.

चौरी चौरा कांड

चौरी चौरा घटना, 1922 को ब्रिटिश भारत के गोरखपुर जिले में हुई थी और इसको पूर्व स्वतंत्र भारत की सबसे प्रमुख घटनाओं में से एक माना जाता है. इसी दिन चौरी चौरा थाने के दारोगा गुप्तेश्वर सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे वालंटियरों की खुलेआम पिटाई शुरू कर दी. इसके बाद सत्याग्रहियों की भीड़ पुलिसवालों पर पथराव करने लगी. जवाबी कार्यवाही में पुलिस ने गोलियां चलाई. जिसमें लगभग 260 व्यक्तियों की मौत हो गई. पुलिस की गोलियां तब रुकीं जब उनके सभी कारतूस समाप्त हो गए. इसके बाद सत्याग्रहियों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होनें थाने में बंद 23 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया. इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने ‘असहयोग आंदोलन’ वापिस ले लिया था.

आजाद हिंद फौज-इंडियन नेशनल आर्मी का गठन

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा राष्ट्रीय सेना या आजाद हिंद फौज का गठन किया गया था. नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में, इसका लक्ष्य ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता को सुरक्षित करना था, लेकिन, समर्थन और अन्न की कमी के कारण आंदोलन फीका पड़ गया था. साथ ही 1940 में द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड की भागीदारी ने ब्रिटिश साम्राज्य को कमजोर कर दिया था.

भारत छोड़ो आंदोलन

8 अगस्त 1942 में गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन को शुरु किया. इसका लक्ष्य ब्रिटिश शासन से पूरी तरह आज़ादी हासिल करना था और ‘करो या मरो’ का नारा दिया. यह आंदोलन ‘अगस्त क्रान्ति’ के नाम से भी जाना जाता है. भारत को अगस्त 1947 में शासकों, क्रांतिकारियों और उस समय के नागरिकों की कड़ी मेहनत, त्याग और निस्वार्थता के बाद स्वतंत्रता हासिल हुई.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें