लखनऊ: देश में हर साल 2 लाख से ज्यादा अंगदान की आवश्यकता है. लेकिन उपलब्धता 10 प्रतिशत से भी कम है. इसलिये जरूरत है कि अंगदान को बढ़ाया जाए. पूरे भारत में लोगों को किडनी, लिवर, हृदय, कॉर्निया और फेफड़े के प्रत्यारोपण की अत्यधिक आवश्यकता है. इसलिए नेशनल आर्गन डोनर्स डे के दिन अंगदान को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
भारत में प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले रोगियों और उपलब्ध अंगों के बीच एक बड़ा अंतर है. एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रति वर्ष लगभग 2 लाख मरीज़ों की लिवर फेल्योर या लिवर कैंसर से मृत्यु हो जाती है. जिनमें से लगभग 10-15% को समय रहते लिवर प्रत्यारोपण से बचाया जा सकता है. भारत में वार्षिक रूप से लगभग 25-30 हजार लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन केवल 1,500 प्रत्यारोपण ही हो पा रहे हैं. इसी तरह भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख व्यक्ति हार्ट फेल से पीड़ित होते हैं, लेकिन हर वर्ष केवल 10-15 हृदय प्रत्यारोपण ही किए जाते हैं.
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राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार 1995 के बाद से केवल 2,546 लोगों ने अपनी मृत्यु के बाद अपने अंगों को दान करने का विकल्प चुना. जबकि 34,094 लोगों ने जीवित रहते हुए अपने अंगों को दान करने का विकल्प चुना. सन 2015 से उत्तर प्रदेश राज्य में अंगदान का परिदृश्य 32 मृत दाताओं और 1,876 जीवित दाताओं का है.
अंग और ऊतक दान के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के साथ अब यह स्पष्ट है कि एक व्यक्ति के अंगदान से 8 लोगों की जान बच सकती है. ऊतक दान से लगभग 75 व्यक्तियों के जीवन में सुधार होता है. इसके साथ ही अंग दाताओं की कमी के कारण प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले रोगियों की प्रतीक्षा सूची में भी वृद्धि हुई है.
उत्तर प्रदेश के शासनादेश के तहत यूपी में मानव अंगों और ऊतकों को हटाने, भंडारण और प्रत्यारोपण की प्रणाली को औपचारिक बनाने के लिए राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण कार्यक्रम के अंतर्गत (NOTTO), राज्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (SOTTO UP) की स्थापना अस्पताल प्रशासन विभाग के तत्वावधान में संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज लखनऊ में की गई है. SOTTO UP पूरे राज्य में अंग दाता पूल को बढ़ाने के लिये इस दिशा में जागरूकता सेमिनार और प्रतिज्ञा अभियान आयोजित करने करता है.
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पीएम नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात के 99वें एपिसोड में अंगदान पर चर्चा की थी. उन्होंने बताया था कि अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिये पूरे देश के लिये पॉलिसी बनायी गयी है. इसमें से डोमिसाइल की शर्त को हटा लिया गया है. इससे देश के किसी भी राज्य में जाकर मरीज अंग प्राप्त करने के लिये पंजीकरण करा सकता है.
अंगदान दो तरह से होता है, एक जीवित व्यक्ति से अंगदान (Live Donor) और दूसरा ब्रेन डेड व्यक्ति से अंगदान. जीवित व्यक्ति अपनी मर्जी और परिवार के सहयोग से अंगदान करता है. जबकि ब्रेन डेड मरीज के अंगदान के लिये पूरी तरह से उसके परिवार की सहमति जरूरी होती है. अंगदान करने वाला व्यक्ति एचआईवी, कैंसर, हृदय और फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित नहीं होना चाहिए.
सबसे पहले अमेरिका में 1954 को ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया गया था, अमेरिका के डॉ. जोसेफ मरे ने 1990 में जुड़वां भाइयों रोनाल्ड ली हेरिक और रिचर्ड हेरिक की किडनी ट्रांसप्लांट की थी. इसके लिये डॉ. जोसेफ को फिजियोलॉजी और मेडिसिन में नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.
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सरकार ने मृतदाता (Brain Dead) अंग प्राप्त करने के लिए रजिस्ट्रेशन की पात्रता के लिए 65 वर्ष की ऊपरी आयु सीमा को हटा दिया है. अब किसी भी आयु का व्यक्ति मृत दाता अंग प्राप्त करने के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकता है. इसके अलावा अंग दान के लिए सूचना, टेली-परामर्श और समन्वय के लिये टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 1800114770 पर संपर्क कर सकते हैं. वेबसाइट-www.notto.gov.in पर भी अधिक जानकारी ली सकती है.
ब्रेन डेथ एक ऐसी अवस्था है, जिसमें मस्तिष्क पूरी तरह से डेड हो जाता है लेकिन शरीर के अंग काम करते हैं. इस स्थिति में मरीज को सांस लेने और हृदय संबंधी कार्यप्रणाली को बनाए रखने के लिए कृत्रिम सहायता (वेंटिलेटर) पर रखा जाता है. ब्रेन डेथ आमतौर पर किसी दुर्घटना में सिर पर लगी बड़ी चोट या बड़े मस्तिष्क रक्तस्राव (स्ट्रोक) के बाद हो सकती है. इस स्थिति से उबरना संभव नहीं होता है. मरीज को ब्रेन डेथ विशेष रूप से नियुक्त 4 डॉक्टरों की समिति घोषित करती है. इसमें न्यूरोसर्जन, न्यूरोलॉजिस्ट, एनेस्थेटिस्ट और अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक शामिल होते हैं. ब्रेन डेथ घोषित करने से पहले कई परीक्षण किए जाते हैं. मस्तिष्क मृत्यु (Brain Death) की स्थिति में शरीर के सभी अंगों का दान करना संभव है.