लखनऊ: युवाओं को इंटरनेट डिसऑर्डर अपनी चपेट में ले रहा है. अस्पतालों के मानसिक रोग विभाग में इलाज के लिये आने वाले ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है. इंटरनेट डिसऑर्डर युवाओं पर बिलकुल ड्रग्स की तरह असर कर रहा है. रिसर्च में पता चला है कि इंटरनेट डिसऑर्डर दिमाग पर वैसे ही बदलाव ला रहा है, जैसा कि शराब या ड्रग्स लेने के कारण होते हैं.
शोध में पता चला है कि इंटरनेट का नशा दिमाग के उसी हिस्से को प्रभावित करता है, जिस हिस्से पर ड्रग्स और शराब असर करती है. इस बदलाव को पता लगाने के लिये युवाओं का फंक्शनल एमआरआई किया गया. केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में ही डिसऑर्डर के 5 से 6 मरीज पहुंच रहे हैं. कोरोना के बाद से इस तरह के मरीजों की संख्या बढ़ी है.
केजीएमयू के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. पवन गुप्ता के अनुसार कई तरह के इंटरनेट एडिक्शन युवाओं में दिखे हैं. इसमें ऑनलाइन गेमिंग, शॉपिंग, पोर्न, सेक्सुअल चैट, सोशल मीडिया आदि प्रमुख है. 40 से 80 घंटे तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले इस एडिक्शन की चपेट में माने जाते हैं.
इंटरनेट एडिक्शन के शिकार युवाओं की फंक्शन एमआरआई में पता चला कि मस्तिष्क के स्ट्राइटल न्यूक्लियर डोपामिनर्जिक सिस्टम प्रभावित होता है. यह सिस्टम डोपामिन हार्मोन रिलीज करता है, जो इंसान के मूड को नियंत्रित करता है. इससे एक ही कार्य को बार-बार करने का मन करता है. इससे रोजमर्रा की जीवन शैली प्रभावित है.
गूगल पर इंटरनेट डिसऑर्डर टेस्ट किया जा सकता है.
इसमें कई प्रश्न पूछे जाते हैं, जिसके आधार पर एडिक्शन की स्थिति तय होती है.
यदि बच्चा या युवा दिन भर मोबाइल फोन में व्यस्त रहे
बात-बात में चिड़चिड़ापन
एकाग्रता खोना
पढ़ाई में मन न लगना
देर रात तक जागना
काउंसलिंग
दोस्तों और परिवार के साथ ज्यादा समय व्यतीत करना
मोबाइल-टैब को बिना जरूरत इस्तेमाल न करना
गंभीर मामलों में मरीजों को भर्ती करना पड़ता है.
जरूरत पड़ने पर दवाएं भी दी जाती हैं.