कानपुर. उत्तर प्रदेश के कानपुर में कभी हफ्ते भर होली चलती थी. लेकिन अब सिर्फ परेवा और गंगा मेला पर रंग जमकर बरसता है. ब्रज की लट्ठमार और फूलों की होली अगर देश-विदेश में प्रसिद्ध है, तो कनपुरिया होली के रंग भी कुछ कम नहीं है. दो दशक पहले तक यहां रंग और पिचकारी लगभग एक हफ्ते तक चलती थी और मुख्य बाजार होली से गंगा मेला तक बंद रहते थे. अब हफ्ते भर रंग चलना तो बंद हो गया है, लेकिन मुख्य बाजार अभी भी परंपरागत रूप से होली से लेकर गंगा मेला तक बंद रहते हैं. अब होली के दिन तो रंग खेला ही जाता है, इसके बाद 5 से 7 दिन के अंतराल में पड़ने वाले अनुराधा नक्षत्र के दिन भी जमकर रंगबाजी होती है. इस दिन यहां रंगों से भरा ठेला निकलता है.
गंगा मेला पर निकलने वाला रंगों का ठेला वर्ष 1942 से लगातार निकल रहा है. यह आजादी की क्रांति से जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि शहर के गंगा मेला की गूंज देश-दुनिया में है. इसका इतिहास ऐतिहासिक है. वर्ष 1942 पर जब स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था, तब शहर के तत्कालीन कलेक्टर ने होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके विरोध में अनेक युवकों ने होली खेली तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. इसके बाद स्वतंत्रता आंदोलन और तेज हो गया. मजबूर होकर अंग्रेजी हुकूमत को पकड़े गए युवकों को जेल से छोड़ना पड़ा. जिस दिन उनकी रिहाई हुई, उस दिन अनुराधा नक्षत्र था.
पूरे शहर में जमकर रंग चला और लोगों ने सरसैया घाट में स्नान किया. तब से होली के बाद अनुराधा नक्षत्र पर गंगा मेला आयोजित किया जाता है. आज भी हजारों शहरवासी सरसैया घाट के किनारे पहुंचते हैं. शाम को यहां राजनीतिक दलों, समाजसेवी संस्थाओं और प्रशासन व पुलिस के कैंप लगाये जाते हैं. गंगा मेला किस दिन होगा, इसकी घोषणा हटिया होली महोत्सव समिति के संरक्षक मूलचंद सेठ करते हैं. इस बार गंगा मेला 13 मार्च को है. हालांकि अब महानगरीय संस्कृति से गंगा मेला पर रंगों की धूमधाम पुराने मोहल्लों तक सीमित रह गई है. लेकिन शाम को होली मिलन में आज भी पूरा शहर उमड़ता है.
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शहर का विस्तार भले ही 25 किलोमीटर तक हो गया हो, लेकिन रंगारंग होली की परंपरा का लुत्फ उठाने के लिए लोगों के कदम आज भी बरबस हटिया, घंटाघर, नयागंज, बिरहानारोड, हूलागंज, दानाखोरी, जनरलगंज, हालसीरोड, मेस्टन रोड, किदवई नगर, सिविल लाइन आदि इलाकों की तरफ खिंचे चले आते हैं. इन इलाकों में ऐसा रंग बरसता है कि रंगबिरंगी टोपियां, पिचकारी, रंगे पुते चेहरे में लोग अपनों को ही नहीं पहचान पाते हैं.