Lucknow News: राजधानी के प्रमुख चौराहों पर एक बैनर लोगों को ध्यान अपनी ओर खींच रहा है. बैनर में साल 2009-10 से बकाया भुगतान की राशि नहीं मिलने का जिक्र किया गया है. मामला लखनऊ नगर निगम का है. मजेदार बात यह है कि टैक्स के साथ तकरीबन 10 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं मिल पाने के कारण राजधानी के 400 ठेकेदार परेशान हैं. जिम्मेदार कोई कदम नहीं उठा रहे हैं.
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प्रभात खबर को बैनर में दर्ज कॉन्ट्रेक्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महामंत्री वीरेंद्र सिंह ने बताया कि साल 2009-10 में किए गए कार्यों का भुगतान नहीं हो सका है. भुगतान की कुल धनराशि करीब 10 करोड़ रुपए है. पूरे मामले में करीब 400 ठेकेदारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इस बारे में जब भी मेयर से शिकायत की जाती है तो वो जल्द ही भुगतान करवाने का आश्वासन देकर मामले को टाल देती हैं. मगर, बकाया धनराशि जस की तस खड़ी है. उसका कोई पुरसाहाल लेने वाला नहीं है.
महामंत्री वीरेंद्र सिंह ने बताया कि हर सरकार में एसोसिएशन की ओर से भुगतान पाने का प्रयास किया गया. मगर आज तक सफलता नहीं मिली है. ऐसे में उन्होंने बताया कि गुरुवार के साथ ही उनकी समयसीमा भी पूरी हो चुकी है. संगठन ने शनिवार से राजधानी में चल रहे विकास कार्यों को बंद कर प्रदर्शन करने की ठानी है. नगर आयुक्त से भी मदद की अपील की गई. लेकिन, कुछ हासिल नहीं हुआ.
नगर निगम परिवार के सभी सम्मानित ठेकेदार भाइयों से नम्रतापूर्वक निवेदन किया जाता है कि हम सभी के पारिवारिक त्योहार को देखते हुए यदि दीपावली से पहले 20 अक्टूबर तक सामूहिक भुगतान नहीं किया जाता है तो हम समस्त कार्य जो कि पैच मरम्मत और पार्कों आदि किसी भी प्रकार का हो, का पूर्ण रूप से बंद करके दिनांक 22 अक्टूबर से धरने पर बैठने का कार्य करेंगे.
ठेकेदार एसोसिएशन नगर निगम लखनऊ की ओर से चौराहों पर लगाए गए बैनर
अब यह जानना जरूरी है कि एसोसिएशन से जुड़े ठेकेदार किस तरह का निर्माण कार्य करते हैं. शहर में नाली, सड़क, खड़ंजा आदि का कार्य नगर निगम ठेकेदारों के जरिए ही सम्पन्न कराता है. बकौल वीरेंद्र सिंह आश्चर्य की बात यह है कि निर्माण कार्य में लगे करीब चार से पांच करोड़ रुपए की जीएसटी का भुगतान पंजीकृत ठेकेदार अपने पास से पहले ही कर चुके हैं. अब न तो जिम्मेदारों के जरिए उन्हें टैक्स की रकम मिल रही है और न ही मूलधन की कोई गुंजाइश दिख रही है. एसोसिएशन के मुताबिक बीते कई बरसों से लंबित पड़ी भुगतान की राशि को लेकर एसोसिएशन प्रयासरत है. इनमें से कई ठेकेदार तो धन के अभाव में काम छोड़ने तक को मजबूर हो गए हैं. मगर भुगतान का कोई नाम ही नहीं लिया जा रहा है.
(रिपोर्ट: नीरज तिवारी, लखनऊ)