Lucknow: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत के दो साल की सजा सुनाने के बाद जहां करारा झटका लगा है, वहीं उनकी सदस्यता पर तलवार लटक गई है. अगर इसके खिलाफ अपील पर सेशंस कोर्ट भी सजा बरकरार रखता है तो राहुल गांधी की सदस्यता पर खतरा मंडरा सकता है.
अमेठी की सीट गंवाने वाले राहुल गांधी इस समय केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद हैं. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर उनके एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ने की चर्चा होती रही है. लेकिन, कोर्ट का फैसला उनके अरमानों पर पानी फेर सकता है. देश और उत्तर प्रदेश की सियासत में कई ऐसे सांसद और विधायक रहें हैं, जिनको अदालत के फैसले के बाद अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी
कोर्ट से सजा का ऐलान कई माननीयों के लिए जोरदार सियासी झटका साबित हुआ. उत्तर प्रदेश के कई नेताओं के राजनीतिक करियर पर इसका असर पड़ा. दरअसल अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या इससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता चली जाती है.
यूपी की सियासत में कानून का चाबुक चलने के बाद माननीय की सदस्यता जाने का अनोखा मामला रामुपर से रहा. जहां आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम ने कोर्ट के फैसले के बाद अपनी विधानसभा सदस्यता गंवाई. आजम खान को साल 2019 के हेट स्पीच मामले में बीते वर्ष रामपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया. उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी. आजम खान ने विधानसभा चुनाव में जेल में रहते हुए रामपुर सदर से जीत दर्ज की थी. इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. बाद में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में ये दोनों सीटें भाजपा के खाते में चली गईं.
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मुजफ्फरनगर की खतौली से विधायक रहे विक्रम सैनी को भी सजा के कारण अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी. विक्रम 2013 में दंगे में शामिल होने के दोषी पाए गए थे. तब वह जिला पंचायत सदस्य थे. इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. विक्रम सैनी जब जेल से छूट कर आए तो भाजपा ने उन्हें खतौली से अपना उम्मीदवार बनाया. विक्रम सैनी ने भारी मतों से जीत दर्ज की और फिर 2022 के चुनाव में भी वह विजयी रहे. हालांकि विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द होने के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में यह सीट रालोद के मदन भैया ने जीत दर्ज की.
हमीरपुर से भाजपा विधायक अशोक कुमार सिंह चंदेल की सदस्यता जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत वर्ष 2019 में चली गई थी. 19 अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट ने उन्हें हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सजा सुनाई थी. अशोक चंदेल हमीपुर में वर्ष 2007 में राजीव शुक्ला के भाई- भतीजों समेत 5 लोगों की हत्या में दोषी पाए गए थे. इस चर्चित हत्याकांड में उनके साथ ही 11 अन्य लोगों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सजा सुनाईत्र इसके बाद उनकी विधायकी खत्म होने की अधिसूचना जारी कर दी गई.
उन्नाव में नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म केस में बांगरमऊ से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई. विधानसभा के प्रमुख सचिव की ओर से सजा के ऐलान के दिन 20 दिसंबर 2019 से ही उनकी सदस्यता खत्म किए जाने का आदेश जारी किया गया था.
समाजवादी पार्टी से वर्ष 2017 में रामपुर के स्वार विधानसभा सीट से विधायक बने अब्दुल्ला आजम की सदस्यता भी रद्द हो चुकी है. 16 दिसंबर 2019 को उनका चुनाव शून्य करार देते हुए निर्वाचन रद्द कर दिया गया था. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 107(1) के तहत चुनाव रद्द हो गया. उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया.
एमबीबीएस सीट घोटाले में कांग्रेस के सांसद रशीद मसूद की सदस्यता चली गई थी. रशीद कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे थे. राज्यसभा सांसद रहते उन्हें एमबीबीएस सीट घोटाले में दोषी पाया गया. वर्ष 2013 में कोर्ट ने चार साल की सजा सुनाई. घोटाले के समय रशीद मसूद केंद्र में स्वास्थ्य राज्य मंत्री थे. इस मामले में 1990-91 के शैक्षिक सत्र में केंद्रीय पूल से त्रिपुरा के लिए आवंटित सीटों पर दूसरे राज्यों के छात्रों को एमबीबीएस के प्रथम वर्ष में दाखिला दिलाकर फर्जीवाड़ा किया गया था.
धोखाधड़ी के एक केस में समाजवादी पार्टी के सांसद मित्रसेन यादव को अपनी सांसदी गंवानी पड़ी थी. वर्ष 2009 में फैजाबाद सीट से सपा सांसद मित्रसेन यादव के खिलाफ धोखाधड़ी का एक मामला साबित हुआ. कोर्ट ने उन्हें सात साल की सजा सुनाई. इसके बाद उनकी सांसदी चली गई. वर्ष 2015 में मित्रसेन यादव का निधन हो गया.
फर्जी मार्कशीट केस में अयोध्या के गोसाईंगंज से भाजपा विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी की सदस्यता चली गई थी. साकेत कॉलेज के प्राचार्य यदुवंश राम त्रिपाठी की याचिका पर कोर्ट ने उनके खिलाफ पांच साल की सजा सुनाई. इस मामले में खब्बू तिवारी को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी.
दरअसल देश में लोक जनप्रतिनिधित्व कानून के आने के बाद से अब तक कई सांसद-विधायकों को अपना पद गंवाना पड़ा है. इसका कारण 10 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से लिली थामस बनाम भारत संघ मामले में एक बड़ा फैसला माना जाता है. कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर कोई विधायक, सांसद या विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और उसे कम से कम दो साल की सजा होती है, तो ऐसे में वह तुरंत सदस्यता से अयोग्य हो जाएगा.
उत्तर प्रदेश की बात करें तो ये उन शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है, जहां विधायक और मंत्री पर सबसे ज्यादा आपराधिक केस दर्ज हैं. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश की 18वीं विधानसभा के लिए चुने गए कुल 403 विधायकों में से करीब आधे विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुतसबिक उत्तर प्रदेश सरकार में कम से कम बारह मंत्रियों पर हत्या, अपहरण, बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आपराधिक आरोप हैं. ऐसे में सदस्यता रद्द होने के मामले भविष्य में भी सामने आने से इनकार नहीं किया जा सकता है.