Shardiya Navratri 2023: राजधानी लखनऊ में पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व वाले कई देवी मंदिर हैं. इन प्राचीन मंदिरों में नवरात्रि पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है. इनमें पुराने लखनऊ के चौक स्थिति बड़ी काली मंदिर बेहद अहम है. चौक की तंग गलियों से होकर सीढ़ी चढ़ते हुए इस मंदिर में प्रवेश करना अपने आप में एक ही एक अलग एहसास कराता है. कहा जाता है कि ये भारत का एकमात्र ऐसा देवीस्थल है, जहां मां लक्ष्मी और नारायण के स्वरूप में बड़ी काली जी की पूजा होती है. इस मंदिर की बेहद मान्यता है. मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने 2400 वर्ष से अधिक पूर्व की थी. हजारों वर्षों बाद भी इस मंदिर का स्वरूप वैसा ही है. गर्भगृह में विराजमान देवी मां के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ पूरे साल उमड़ी रहती है. नवरात्रि में तो यहां पैर रखने की जगह भी मुश्किल से मिलती है. इस मंदिर का संचालन बोधगया मठ से होता है. मान्यता है कि जो भी भक्त 40 दिन आकर यहां माता के दर्शन करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है.
मंदिर में अष्टधातु मूर्ति बेहद प्राचीन और खास है. यह मूर्ति देखने में अर्धनारीश्वर है. इसमें भगवान ने धोती और जनेऊ पहन रखी है और उनके माथे पर बिंदी और श्रृंगार किया जाता है. लक्ष्मी नारायण की इस मूर्ति को नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन ही भक्तों के दर्शन के लिए निकाला जाता है. इस तरह श्रद्धालु साल में केवल चार बार चैत्र और शारदीय नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि को इस मूर्ति के दर्शन कर पाते हैं.
इस वर्ष भी श्रद्धालु इस दिव्य विग्रह के दर्शन का इंतजार कर रहे हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि मां काली के महामंत्र को जिस भक्त ने साध लिया, उसके सभी कष्टों और दुखों का अंत हो जाता है. साथ ही नवरात्रि में मां काली के मंत्र को उनके मंदिर में जाकर विग्रह के सामने जपने से विशेष लाभ होता है, इसलिए श्रद्धालु अष्टमी-नवमी का खासतौर से इंतजार कर रहे हैं.
इसके बाद ही मूर्ति हर बार की तरह मंदिर के गर्भगृह में रख दी जाएगी. मान्यता है कि अष्टधातु की इस मूर्ति के सामने जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी होती है. इस वजह से नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को बड़ी संख्या में यहां भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं. इसके साथ ही मान्यता है कि बड़ी काली जी को स्नान कराए गए जल के प्रयोग मात्र से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है.
यह जल मंदिर परिसर में बने एक कुंड में एकत्र होता है, यहां आने वाले भक्त माता के दर्शन करने के बाद कुंड के जल का सेवन करते हैं और आंखों पर लगाते हैं. इस जल को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से शरीर निरोगी बनता है. यहां दूर-दूर से भक्त मां के दर्शन करके अपने मन की मुरादें पाते हैं. साथ ही भक्त यहां बच्चों का मुंडन संस्कार करवाने भी आते हैं.
कहा जाता है कि मुगल आक्रांता जब हर जगह मंदिर तोड़ रहे थे, तब वह इस काली मंदिर में भी हमला करने वाले थे. इस वजह से मंदिर के पुजारी ने मां काली की मूर्ति को एक कुएं में डाल दिया था, जिससे कि मुगल मूर्ति को खंडित नहीं कर सकें. इसके कुछ समय बाद उन्हीं पुजारी के सपने में आया कि वह मूर्ति कुएं से निकाली जाए. हैरानी वाली बात है, जब लोगों ने मूर्ति को निकाला तो उसका अलग स्वरूप मिला. कुएं में काली मां की मूर्ति डाली गई थी, जबकि निकली विष्णु और लक्ष्मी जी की मूर्ति. तब से उसी मूर्ति की पूजा अर्चना होने लगी.