लखनऊ. उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट के पूर्व जज एसएन शुक्ला के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के मामले में दो संस्था व एक रियल एस्टेट कंपनी भी CBI की जांच के दायरे में है. CBI अमेठी के शिव शक्ति धाम ट्रस्ट, फैजाबाद की एक शैक्षणिक संस्था के अलावा निवेशकों के करोड़ों रुपये हड़पने वाली शाइन सिटी इंफ्रा प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड के साथ पूर्व जज एसएन शुक्ला के रिश्तों की छानबीन भी कर रही है. CBI जांच में सामने आया है कि अमेठी स्थित शिव शक्ति धाम ट्रस्ट से लाखों रुपये सुचिता तिवारी के खाते में भेजे गए थे. वहीं फैजाबाद की ट्रस्ट ने वर्ष 2015 से वर्ष 2017 के बीच सुचिता तिवारी के खाते में 2.84 लाख रुपये भेजे थे. फैजाबाद की ही शैक्षणिक संस्था वर्ष 2015 से वर्ष 2020 के मध्य सुचिता तिवारी को साढ़े आठ लाख रुपये से अधिक दिए थे.
सीबीआई जांच में सामने आया है कि पूर्व जज की इस काली कमाई को इन संस्थाओं की मदद से सफेद किया गया था. वहीं शाइन सिटी के हिमांशु कुमार के जरिए पूर्व जज ने शिव शक्ति धाम ट्रस्ट को 80 लाख रुपये का भुगतान कराया था. लखनऊ के अर्थ इंफ्रा लैंड डेवलपर्स के जरिए भी वर्ष 2018 में लखनऊ में एक भूखंड खरीदे जाने की बात सामने आई है. CBI ने दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच-टू ने पूर्व जज एएन शुक्ला, सुचिता तिवारी व साईंदीन तिवारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया है. जांच में यह भी पाया गया है कि उन्होंने परिवार वालों के नाम पर आय के ज्ञात स्त्रोत से 2.54 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति अर्जित की है.
Also Read: होली पर उत्तर प्रदेश- बिहार के लोगों के लिए खुशखबरी, रेलवे ने चलाई स्पेशल ट्रेन, इन आसान तरीकों से करें बुकिंग
आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई जांच के घेरे में आए पूर्व जज एसएन शुक्ला पहले भी चर्चा में रहे हैं. जानकारी के अनुसार यह संपत्ति वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच अर्जित की गई थी. तब वह न्यायमूर्ति थे. इससे पूर्व भी CBI ने वर्ष 2019 में हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के तत्कालीन जज एसएन शुक्ला व अन्य के विरुद्ध एक केस दर्ज किया था. उन पर रिश्वत लेकर लखनऊ के एक मेडिकल कालेज के पक्ष में फैसला सुनाने का आरोप लगा था. वर्ष 2014 में डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में प्रो. निशीथ राय की बतौर प्रथम कुलपति सीधे नियुक्ति की थी. तब पूर्व जज एसएन शुक्ला विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के सदस्य थे। वर्ष 2015 में विश्वविद्यालय में कई नियुक्तियां की गईं थीं. एक असफल प्रतिभागी ने हाई कोर्ट में नियुक्तियों को चुनौती दी थी. कोर्ट ने उसे अपनी बात राज्यपाल से कहने का निर्देश दिया था.