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सहारनपुर हिंसा से CAA के विरोध प्रदर्शन तक, जानें भीम आर्मी चीफ कैसे बने यूपी की विपक्षी राजनीति का बड़ा चेहरा

वर्तमान में अंबेडकरवादी राजनीति के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक चंद्र शेखर आज़ाद बुधवार को देवबंद में गोली लगने से घायल हो गए थे. वे हाल के वर्षों में यूपी की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं.

लखनऊ. आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भीम आर्मी प्रमुख चंद्र शेखर आज़ाद पर हमला ऐसे समय में हुआ है जब वह अगले साल होने वाले संसदीय चुनावों से पहले पार्टी का विस्तार करने के लिए काम कर रहे हैं. वर्तमान में अंबेडकरवादी राजनीति के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक चंद्र शेखर आज़ाद बुधवार को देवबंद में गोली लगने से घायल हो गए थे. वे हाल के वर्षों में यूपी की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं. भीम आर्मी प्रमुख पर हमला ऐसे समय हुआ है जब वह पश्चिम यूपी और पड़ोसी राज्यों में अपनी पार्टी का आधार बढ़ाने और अगले साल के संसदीय चुनावों के लिए तैयार करने पर काम कर रहे हैं.

सपा- रालोद से गठबंधन को बढ़ रहे कदम

चंद्र शेखर आज़ाद राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) नेतृत्व के करीबी हैं. महज तीन साल पुरानी आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी (एसपी) और आरएलडी के गठबंधन का हिस्सा बनने की स्थिति में दिख रही है. अप्रैल में, युवा नेता ने अंबेडकर जयंती पर मध्य प्रदेश में अंबेडकर के जन्मस्थान महू में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के साथ मंच साझा किया था.यूपी के सहारनपुर जिले के छुटमलपुर क्षेत्र से कानून में स्नातक,आज़ाद उन लोगों में से थे जिन्होंने दलितों और अन्य हाशिए के समूहों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए भीम आर्मी यानि भारत एकता मिशन की स्थापना की थी. भीम आर्मी ने धीरे-धीरे खुद को दलित हितों को लेकर ‘एक दबाव समूह ‘ के रूप में स्थापित किया यानि यह समूह दलितों के खिलाफ दुर्व्यवहार और हिंसा का मुखर विरोध करता था. भीम आर्मी की गतिविधियों का एक सामाजिक पहलू भी है. भीम पाठशाला में बच्चों के लिए स्कूल के बाद मुफ्त ट्यूशन केंद्र चलाया जाता है.

आजाद का चेहरा शब्बीरपुर हिंसा के बाद एकदम चमका

2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में ठाकुरों और दलितों के बीच हिंसा के बाद आज़ाद सुर्खियों में आए थे. गांव के दलितों ने राजपूत शासक महाराणा के सम्मान में एक समारोह में भाग लेने के लिए जा रहे ठाकुरों के जुलूस में तेज संगीत बजाए जाने पर आपत्ति जताई थी. इस मामले को लेकर हिंसा हुइ थी. 25 दलितों के घरों को आग लगा दी गई थी. बाद में भीम आर्मी के बल पर दलितों ने घटना के चार दिन बाद अपने उत्पीड़न को लेकर आवाज मुखर की थी. चंद्र शेखर आज़ाद पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा. उन पर मामला दर्ज किया गया. इसके बाद उन्हें भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्हें अगले महीने हिमाचल प्रदेश से गिरफ्तार किया गया और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत आरोपित किया गया. बाद में यूपी सरकार द्वारा एनएसए के तहत आरोप रद्द कर उनकी शीघ्र रिहाई का आदेश दिया. सितंबर 2018 में जेल से रिहा होने के बाद आज़ाद की छवि को बल मिला. इस पूरे प्रकरण ने भीम आर्मी प्रमुख को दलित युवाओं के एक मुखर नेता के रूप में मजबूत किया.

मायावती को गुरू और खुद को कहते हैं एकलव्य

दिल्ली में रविदास मंदिर के विध्वंस के खिलाफ, और राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन अधिनियम और शाहीन बाग में प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ प्रदर्शन किया. दो महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में उनकी प्रोफ़ाइल में और वृद्धि हुई. जैसे-जैसे पश्चिम यूपी के बाहर उनकी लोकप्रियता बढ़ी, आज़ाद ने राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश में अपने संगठन की उपस्थिति को मजबूत करना शुरू कर दिया. कई मौकों पर,उनके समर्थकों ने उन्हें बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती के विकल्प के रूप में पेश किया. 2019 में, आज़ाद की बढ़ती अपील के बीच, मायावती ने “उत्तर प्रदेश में भीम के नाम पर चल रहे एक संगठन” का उल्लेख किया – आज़ाद का एक स्पष्ट संदर्भ – और आरोप लगाया कि इस संगठन का बीआर अंबेडकर के आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है. ये टिप्पणियां ऐसे समय में आई थीं जब भीम आर्मी ने अलवर में एक दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शन से सुर्खियां बटोरीं. पिछले साल द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में आज़ाद ने कहा था कि वह मायावती को अपना “गुरु” मानते हैं .उन्होंने कहा कि वह “एकलव्य” की तरह उनसे सीखने की कोशिश कर रहे हैं.

जयंत  के साथ मिलकर  जाट- दलित गठजोड़ बना रहे 

पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले आजाद समाज पार्टी के नेता ने अखिलेश से मुलाकात की थी, जिससे दोनों के बीच गठबंधन की अटकलें तेज हो गई थीं. हालांकि वार्ता विफल रही और आज़ाद ने सपा प्रमुख पर उनका अपमान करने का आरोप लगाया. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ा, लेकिन चौथे स्थान पर रहे. महू की घटना ने अखिलेश को करीब ला दिया. दोनों नेताओं के बीच एक तरह की समझ बनती दिख रही है. पिछले साल विधानसभा उपचुनाव के दौरान, आज़ाद ने रामपुर में एक रैली में अखिलेश के साथ मंच साझा किया था, लेकिन सपा यह सीट भाजपा से हार गई.एलडी और आज़ाद के बीच घनिष्ठ संबंधों के बारे में पूछे जाने पर, आरएलडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “दोनों के पास पश्चिमी यूपी का सामान्य कार्य क्षेत्र है. दलित और जाट इलाके में दोनों पार्टियों के लिए मजबूत आधार बना सकते हैं. हाल के महीनों में आरएलडी ने राजस्थान में जो कई कार्यक्रम आयोजित किए, उनमें चंद्र शेखर ने जयंत चौधरी के साथ मंच साझा किया. फिलहाल, चंद्र शेखर की पार्टी यूपी में आरएलडी की सहयोगी है. उन्होंने खतौली विधानसभा उपचुनाव में हमारे उम्मीदवार के लिए घर-घर जाकर प्रचार किया, जिसमें हमने भाजपा को हराया.

आजाद समाज पार्टी की लोस चुनाव की तैयारी तेज

आज़ाद समाज पार्टी ने पिछले महीने शहरी स्थानीय निकाय के दौरान पश्चिम यूपी की विभिन्न सीटों पर रालोद उम्मीदवारों का भी समर्थन किया था. आज़ाद समाज पार्टी आज़ाद ने तीन नगर पंचायत अध्यक्ष पद और पाँच नगरपालिका पार्षद पद जीते, और उसके 12 उम्मीदवार नगर पालिका परिषदों और 10 सदस्यों को नगर पंचायतों के लिए निर्वाचित हुए. रालोद नेता ने कहा, ”लेकिन लोकसभा चुनाव के बारे में अभी तक कुछ भी तय नहीं हुआ है.” सूत्रों ने कहा कि आजाद समाज पार्टी एमपी, राजस्थान, यूपी, पंजाब और बिहार में लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और जुलाई से लोकसभा क्षेत्रों के प्रभारी नेताओं के नामों की घोषणा शुरू कर देगी.

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