Moradabad 1980 Riots: उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जनपद में 1980 में हुए दंगे की रिपोर्ट मंगलवार को विधानसभा में पेश की जाएगी. करीब 43 वर्ष बाद प्रदेश सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने जा रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में विगत मई माह में कैबिनेट जस्टिस सक्सेना आयोग की कमेटी वाली इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे चुकी है.
मुरादाबाद में भड़की हिंसा के इस मामले में तब 83 लोगों की मौत हुई थी और 113 लोग घायल हुए थे. योगी आदित्यनाथ सरकार रिपोर्ट को विलंब से रखे जाने का कारण भी सदन को बताएगी. 3 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में ईद की नमाज के बाद दंगे भड़के थे. स्थानीय दुकानों पर हमले किए गए. जवाबी हमले के बाद स्थिति बेकाबू हो गई थी.
उत्तर प्रदेश की तत्कालीन वीपी सिंह की सरकार ने इस मामले की जांच जस्टिस सक्सेना आयोग को सौंपी थी. उन्होंने इस मामले की रिपोर्ट वर्ष 1983 में सरकार को सौंप दी थी. हालांकि, रिपोर्ट आने के 40 वर्ष बाद भी कई पार्टियों की सरकारों ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की. घटना के बाद से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका.
इस दंगे में दो समुदाय के लोग आमने सामने आ गए थे. उनके बीच हिंसा भड़कने के बाद पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी जिससे कई लोगों के मारे जाने की बात कही गई. इसके बाद मुरादाबाद में करीब एक माह तक कर्फ्यू लगा रहा. उस दौरान दंगे में मरने वाले लोगों की संख्या 250 से अधिक बताई गई, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई थी.
जस्टिस सक्सेना आयोग ने मुरादाबाद दंगे की जांच कर 20 नवंबर, 1983 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. हालांकि, दंगे के 43 साल बीत जाने के बाद भी अब किसी सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं दिखाई. इस दौरान मुरादाबाद दंगे के पीड़ित न्याय से लेकर मुआवजे तक के लिए दर-दर भटकते रहे. अब प्रदेश सरकार इसे सदन में पेश करने जा रही है, जिससे मामले का पूरा सच उजागर होगा.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आयोग ने मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शमीम अहमद खां, उनके कुछ समर्थकों और दो अन्य नेताओं को लोगों को भड़काने का दोषी पाया था. वहीं जांच रिपोर्ट में कुछ संगठनों को क्लीन चिट भी दी गई, बताया गया कि इनके खिलाफ हिंसा भड़काने में कोई भूमिका के प्रमाण नहीं मिले.
इसके साथ ही आयोग ने पीएसी, पुलिस और जिला प्रशासन को भी आरोपों से मुक्त कर दिया था. आयोग ने जांच में पाया कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग में नहीं, बल्कि भगदड़ से हुई थी. रिपोर्ट में ये भी जिक्र किया गया था कि सियासी दल धर्म विशेष को वोट बैंक के रूप में न देखें. सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के दोषी पाए जाने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.
इस बीच विधानसभा में मंगलवार को भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) के राजस्व क्षेत्र पर अनुपालन लेखा परीक्षा प्रतिवेदन पेश किया जाएगा. राज्य सरकार के वित्त पर सीएजी की रिपोर्ट रखी जाएगी. इसके अलावा बाणसागर नहर परियोजना तथा चौधरी चरण सिंह लहचुरा डैम आधुनिकीकरण परियोजना को लेकर भी सीएजी रिपोर्ट सदन में रखी जाएगी.