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UP News : भोजपुरी अभिनेता ‘निरहुआ’ ’42 बलिया विद्रोह ‘ पर फिल्म बनाएंगे, जानें क्या है इसके पीछे की वजह

आजमगढ़ से भाजपा सांसद ‘निरहुआ’ ने शनिवार की रात्रि जिला मुख्यालय पर संवाददाताओं से कहा, ‘बचपन से ही बलिया के बागीपन को सुनता आया हूं. स्वतंत्रता आंदोलन में बलिया की ऐतिहासिक भूमिका रही है.

बलिया : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद और भोजपुरी फिल्म अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने कहा है कि वह स्वतंत्रता आंदोलन में बलिया की भूमिका को उजागर करने के लिए 1942 के बलिया विद्रोह पर एक फिल्म बनाएंगे. आजमगढ़ से भाजपा सांसद ‘निरहुआ’ ने शनिवार की रात्रि जिला मुख्यालय पर संवाददाताओं से कहा, ‘बचपन से ही बलिया के बागीपन को सुनता आया हूं. स्वतंत्रता आंदोलन में बलिया की ऐतिहासिक भूमिका रही है. असंख्य वीरों ने अपनी आहुति दी थी तथा देश को आजादी मिलने से पांच साल पहले ही बलिया को आजाद करा दिया था. ”

19 अगस्त 1942 को बलिया ‘आजाद’ घोषित किया

उन्होंने कहा कि वह स्वतंत्रता आंदोलन में बलिया की भूमिका से प्रभावित हैं और ‘बलिया की क्रांति’ पर आधारित फिल्म बनायेंगे. साल 1942 में, भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के कुछ दिनों बाद कई स्थानीय लोगों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया और साथी क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए जिला जेल पर धावा बोल दिया था. स्‍वतंत्रता सेनानी चित्तू पांडे की अगुवाई में आधिकारिक स्वतंत्रता से पांच साल पहले 19 अगस्त 1942 को बलिया को ‘आजाद’ घोषित कर दिया था. यह क्रांति लंबे समय तक नहीं चली और जल्द ही इसे अंग्रेजों ने दबा दिया. उन्होंने बलिया पर वापस नियंत्रण हासिल करने के लिए सैनिक टुकड़ी को भेजा था.

शेर-ए-बलिया चित्तू पांडेय के नेतृत्व में अंग्रेजों से लड़ी लड़ाई

शेर-ए-बलिया चित्तू पांडेय के नेतृत्व में जेल में बंद सेनानियों ने फाटक तोड़कर खुद को आजाद कर जिलाधिकारी की कुर्सी पर कब्जा कर खुद को कलेक्टर नामित कर दिया था. क्रांतिकारी चित्तू पांडेय ने 22 अगस्त 1942 तक यहां की सरकार भी चलाई, जिसे ब्रिटिश हुकूमत को सीधी चुनौती माना गया और पूरे देश में इसकी चर्चा हुई. इसके बाद 23 अगस्त की रात अंग्रेजों ने दोबारा यहां कब्जा कर लिया. बलिया की आजादी की गूंज लंदन तक गूंजी थी. इस लड़ाई में 84 लोग शहीद हो गए. इस आजादी की लड़ाई के बाद पूरे देश में बल मिल गया. इस आजादी को पूरा जिला बलिया बलिदान दिवस के रूप में हर वर्ष 19 अगस्त को उक्त आंदोलन में जान गंवाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर मनाता है.

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इस तरह फैली आजादी की चिंगारी 

11 अगस्त को बलिया में आजादी का जुलूस निकला. 12 अगस्त को बलिया व बैरिया में विशाल जुलूस निकला. 13 अगस्त को बनारस से बलिया पहुची ट्रेन से आये छात्रों ने चितबड़ागांव स्टेशन को फूंक दिया. 14 अगस्त को मिडिल स्कूल के बच्चों के जुलुस को सिकंदरपुर में थानेदार द्वारा बच्चों को घोड़ो से कुचला गया. 14 अगस्त को ही चितबड़ागांव, ताजपुर, फेफना में रेल पटरियों को उखाड़ दिया गया. वही बेल्थरा-रोड में मालगाड़ी को लूट कर पटरियों को उखाड़ दिया गया. इसके बाद बलिया रेल सेवा से पूरी तरह से कट गया. 19 अगस्त 1942 को बैरिया थाना से अंग्रेजों का जैक उतार कर फेंक दिया गया था और जांबाज क्रांतिवीरों ने गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच थाने पर तिरंगा फहरा दिया था. इसमें 19 क्रांतिकारी अंग्रेजों की गोलियों से छलनी होकर शहीद हो गए और तीन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की यातना से जेल में दम तोड़ दिया था.

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बलूच फौज के साथ कमिश्नर नेदर सोल आया प्रभारी डीएम बनकर

23 अगस्त की रात में ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल हैलेट ने बनारस के कमिश्नर नेदर सोल को बलिया का प्रभारी जिलाधिकारी बना कर बलूच फौज के साथ भेज दिया. जिसने बनारस के तरफ से रेल पटरियों को बिछाते हुए बलिया आते ही कत्लेआम मचा दिया, 23 अगस्त को ही दोपहर में बक्सर की ओर से जलमार्ग से मार्क स्मिथ के नेतृत्व में और 24 अगस्त की सुबह आजमगढ की ओर से कैप्टन मुर के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज बलिया पहुंच गयी.

ब्रिटिश फौज ने चलाया दमन चक्र, सभी नेता जेल में डाले

ब्रिटिश फौज का भारी दमन चक्र शुरू हो गया, इस दौरान 84 लोग शहीद हुए और बलिया पर फिर ब्रिटिश का शासन हो गया. समस्त नेता फिर जेल में डाल दिये गए. गांव-गांव दमन का चक्र चलना शुरू हुआ जो 1944 तक चलता रहा. बीबीसी रेडियो ने बाकयदा बलिया पर फिर से कब्जे का ऐलान किया, जो ये बताने के लिए काफी था कि इस बगावत ने ब्रिटिश हुकूमत की दुनियाभर में कितनी किरकिरी कराई थी. लेकिन बलिया के क्रांतिकारियों ने इतिहास बना चुके थे.

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