लखनऊ: जलवायु संकट एक बाल अधिकार संकट है. जलवायु परिवर्तन (Climate Change) बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और भविष्य को प्रभावित करता है. लेकिन दैनिक जीवन की साधारण क्रियाओं से इसमें बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. जलवायु परिवर्तन का बच्चों पर प्रभाव विषय पर आयोजित मीडिया वर्कशॉप में यह जानकारी यूनिसेफ (UNICEF) के वॉश (WASH) स्पेशलिस्ट नगेंद्र प्रताप सिंह ने दी.
नगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि एक औसत वैश्विक व्यक्ति नहाने, कपड़े धोने आदि में एक दिन में 2.5 लीटर पानी बर्बाद करता है. इसलिए यदि सिर्फ उत्तर प्रदेश के सभी लोग इस पानी को रोजाना बचाएं, तो हम प्रति वर्ष 2.20 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बचा सकते हैं. जो लगभग उत्तर प्रदेश के सभी लोगों की पीने के पानी की वार्षिक आवश्यकता को पूरा कर सकता है.
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शिक्षा विभाग, यूपी सरकार और यूनिसेफ (UNICEF) के प्रयासों को साझा करते हुए, यूनिसेफ के एजुकेशन स्पेशलिस्ट ऋत्विक पात्रा ने कहा की मीना मंच (MEENA Manch)और पावर एंजेल्स के छात्रों-छात्राओं ने पिछले साल जलवायु पर मांगों का एक चार्टर अधिकारियों से साझा किया था. उन्होंने कहा कि इसमें उभरते मुद्दों को शामिल करने के लिए राज्य शिक्षा पाठ्यक्रम को संशोधित करने की आवश्यकता है. जलवायु परिवर्तन एक ऐसे ही महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है. शिक्षकों को ‘करके सीखने'( Learning By Doing) पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.
यूनिसेफ की कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट निपुण गुप्ता ने कहा कि बच्चे केवल जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का शिकार ही नहीं हैं, वे जलवायु परिवर्तन से उभरने के लिए चेंज एजेंट (Change Agent) भी हो सकते हैं. वे आंदोलन का नेतृत्व कर सकते हैं और अपने परिवारों और समुदायों को पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार जलवायु परिवर्तन के प्रति नीतिगत प्रतिबद्धताओं में एक निर्णायक भूमिका निभा रही है और सबसे बड़ा राज्य होने के नाते उत्तर प्रदेश की भूमिका अहम है.