लखनऊ: अस्पतालों की ओपीडी में फेफड़े की टीबी के मरीजों की भीड़ लगी रहती है. इनका इलाज भी टीबी मानकर किया जाता है. क्योंकि आमतौर पर मरीज खांसी के साथ खून आने की शिकायत के साथ डॉक्टर के पास आते हैं. लेकिन लेकिन इनमें फेफड़े के कैंसर के मरीज भी होते हैं. क्योंकि फेफड़े की टीबी और कैंसर के लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं.
केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग के हेड प्रो. वेद प्रकाश बताते हैं कि टीबी के धोखे में कैंसर फेफड़े में फैलता रहता है. यदि समय पर इसकी पहचान न हो तो पूरे फेफड़े को अपनी गिरफ्त में ले लेता है. जिससे मरीज का इलाज कठिन हो जाता है. केजीएमयू के श्वसन तंत्र से जुड़े विभागों में ही हर महीने 20 से 30 मरीज फेफड़े के कैंसर के पहुंच रहे हैं.
केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के डॉ. अजय वर्मा बताते हैं कि फेफड़े की टीबी के मरीज को यदि दो-तीन सप्ताह के इलाज में फायदा न मिले तो उसकी अन्य जांचें कराना जरूरी है. केजीएमयू में जो भी फेफड़े के कैंसर के मरीज इलाज के लिये पहुंचते हैं, उनमें से 60 फीसदी टीबी का इलाज करा रहे होते हैं. जबकि 30 फीसदी कोई अन्य बीमारी और 10 फीसदी फेफड़े के कैंसर का इलाज करा रहे होते हैं.
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के ग्लोबल आंकोलाजी जर्नल में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक साल 2000 से 2019 के बीच भारत में कैंसर से 1.28 करोड़ से भी अधिक लोगों की मौत हुई है. भारत सरकार के नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (एनसीआरपी) के आंकड़ों को देखें तो साल 2020 से 2022 के बीच देश में कुल 23,67,990 लोगों की मौत कैंसर के कारण हु्ई है. इस पर नजर डालें तो पता चलेगा कि देश में पिछले 22 सालों के दौरान डेढ़ करोड़ से भी अधिक लोग सिर्फ कैंसर की वजह से मर गये.
फेफड़े का कैंसर होने पर कई तरह के लक्षण हो सकते हैं. इसमें खांसी और छाती में दर्द प्रमुख हैं.
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सांस लेने में कठिनाई होना
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अधिक समय तक खांसी रहना
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खांसी में खून आना
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सांस लेने में कठिनाई होना
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हर समय थकाना महसूस होना
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शरीर का वजन कम होना
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भूख न लगना
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आवाज बैठ जाना
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सिर में दर्द
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हड्डियों में दर्द