केस-1 राजधानी लखनऊ के ठाकुरगंज में शाहरुख नाम के युवक ने फांसी के फंदे पर लटक कर आत्महत्या कर ली. युवक हुसैनाबाद के शिवपुरी का रहने वाला है. उसने पंखे से लटक कर अपना जीवन खत्म कर लिया. परिजनों ने काकोरी स्थित राम प्रसाद बिस्मिल कॉलेज के शिक्षक पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है.
केस-2 कानपुर के अहिरवां स्थित 6.29 करोड़ रुपए की जमीन हड़पे जाने से आहत चकेरी गांव निवासी किसान 52 वर्षीय बाबू सिंह यादव ने ट्रेन से कटकर जान दे दी. खुदकुशी से पहले उसने मुख्यमंत्री के नाम एक सुसाइड नोट भी लिखा है. इसमें अपनी मौत का जिम्मेदार स्थानीय नेता को बताया. परिजनों ने आरोप लगाया कि इस नेता ने मार्च में चेक देकर जमीन की रजिस्ट्री कराई, इसके तुरंत बाद कोई खामी बताकर चेक वापस ले लिया. रुपए नहीं देने पर कोर्ट में वाद दाखिल किया गया. इस बीच नेता ने जमीन किसी और को बेच दी.करोड़ों की जमीन हाथ से निकल जाने से आहत बाबू सिंह ने खुदकुशी कर ली.
केस-3 कासगंज में पिछले वर्ष के मुताबिक इस वर्ष 8 माह में होने वाले आत्महत्या के मामलों में इजाफा दर्ज किया गया है. जनपद की सदर कोतवाली क्षेत्र में ही आठ माह में 9 लोग आत्महत्या कर चुके हैं. सोरोंजी थाना क्षेत्र में 4 लोगों ने आत्महत्या की, जबकि ढोलना थाना क्षेत्र में 4 लोगों ने आत्महत्या की. इसी तरह सहावर में 5, अमांपुर में 5, पटियाली में 5 और सिढ़पुरा में 4 लोगों ने आत्महत्या की. यह आंकड़ा पिछले वर्ष के मुकाबले अधिक है. पिछले वर्ष कुल 31 लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि इस वर्ष अभी तक 37 लोग आत्महत्या कर चुके हैं. इन आत्महत्याओं की वजह डिप्रेशन, कर्ज, गृहक्लेश, कार्य में विफलता आदि हैं.
केस-4 कस्बे के कटका रोड पर 36 वर्षीय सूरज साहू ने घर के अंदर गमछे से फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली. सूरज प्लंबर का काम करता था. वह शराब का लती था. पुलिस व फोरेंसिक टीम ने शव को नीचे उतारकर जांच की. सूरज के खुदकुशी करने की वजह परिजन नहीं बता सके हैं. इसी तरह गोरखपुर के सेमरा नंबर 24 वर्षीय रामप्रवेश उर्फ मनोज का शव कमरे में मिला. उसके गले में बेडशीट से बना फंदा लिपटा मिला, जिसका आधा हिस्सा पंखे की कुंडी से लगा था. मामला प्रेम प्रसंग का बताया जा रहा है.
ये मामले सिर्फ उदाहरण हैं. हकीकत में हमारे आसपास हर रोज बड़ी संख्या में लोग खुदकुशी कर रहे हैं. इनमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं से लेकर युवा शामिल हैं, जो विभिन्न कारणों से मौत को गले लगा रहे हैं. खुदकुशी करने वालों में महिलाओं की संख्या भी ज्यादा है. देखा जाए तो दुनियभर में खुदकुशी के मामलों में बीते कुछ वर्षों में काफी इजाफा हुआ है. इसके पीछे तनावपूर्ण जीवनशैली अहम कारण है. इस वजह से इंसान कई प्रकार की मानसिक समस्याओं से ग्रसित हो रहा है और आखिरकार उसमें इस कदर उलझ जाता है कि उसे आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं नजर आता.
खासतौर से कोराना संक्रमण काल के बाद लोगों की नौकरी पर जिस तरह से संकट आया, उसने युवाओं से रोजगार छीन लिया. ऐसे में बेरोजगारी आत्महत्या की अहम वजह है. इसके अलावा पारिवारिक तनाव, प्रेम संबंध, आधुनिक जीवनशैली में जरूरतों के पूरा नहीं होने से अवसाद आदि कारणों से छात्र और युवा खुदकुशी कर रहे हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारी की वजह से 2018 से 2020 तक 9,140 लोगों ने आत्महत्या की है. साल 2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या की है. 2014 की तुलना में 2020 में बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. खास बात है कि वर्ष 2018 से 2020 तक बेरोजगारी से अलग दिवालियापन और कर्ज की वजह से आत्महत्या करने वालों में भी इजाफा हुआ है. ऐसे मामलों में इन तीन सालों में कुल 16,091 लोगों ने आत्महत्या की है. साल 2019 में दिवालियापन और कर्ज़ के चलते आत्महत्या करने वाली की संख्या 5,908 है. जो तीन सालों में सबसे ज्यादा है.
लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति रोकने और उनमें जागरूकता फैलाने के लिए हर साल वर्ल्ड सुसाइड प्रीवेंशन डे मनाया जाता है. इस बार की थीम “एक्शन के जरिए से आशा उदागर करना” (“Creating Hope Through Action”) है. मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक जिस तरह से बीते कुछ वर्षों में खुदकुशी के मामलों में इजाफा हुआ है, उसमें जरूरी है लोगों को समझाया जाए कि आत्महत्या के अलावा जीवन में और भी बेहतर विकल्प हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, हर 4 मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है. हर साल लगभग 8 लाख से ज्यादा लोग अवसाद यानी डिप्रेशन में आत्महत्या कर लेते हैं, जिसमें अकेले 17 प्रतिशत की संख्या भारत की है जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं.
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक बच्चों और युवाओं के व्यवहार में अचानक परिवर्तन नजर आने पर परिवार के सदस्यों को सतर्क हो जाना चाहिए. अगर बच्चा अचानक गुमसुम रहने लगे तो बड़े बुजुर्ग प्यार से समझाकर उसका तनाव दूर करने की कोशिश करें. छात्रों को ये समझाना चाहिए कि किसी परीक्षा में फेल होना जीवन में फेल होना नहीं है.
परिवार, दोस्त और करीबी समझें अपनों की परेशानी
इसी तरह नौकरी की तलाश कर रहे घर के युवा को भी मॉरल सपोर्ट की जरूरत है, उन्हें समझाना चाहिए कि लगातार प्रयास से एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी, नकारात्मक विचारों से दूर रहना सबसे ज्यादा अहम है. परिवार की बेटियों के भी व्यवहार में अचानक बदलाव नजर आने वाले उसका कारण तलाशें, जिससे युवा भटके नहीं. इन सबके अलावा अगर आत्महत्या जैसा ख्याल लगातार आए तो अपनी दोस्तों, परिवार या थेरेपिस्ट से मदद लेनी चाहिए.
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स्ट्रेस से डील करने की कोशिश करें. अगर हो सके तो मेडिकल एक्सपर्ट की सलाह लें. अपने ट्रीटमेंट शेड्यूल को फॉलो करें.
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दोस्तों, परिवार, थेरेपिस्ट और डॉक्टर का नंबर अपने साथ रखें. जब भी बुरे ख्याल मन पर हावी होने लगें इन्हें कॉल करें और इनसे बात करें.
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अपना रोज का रूटीन बनाएं. फिल्में देखें या गाने सुनें जिससे मन बुरे ख्यालों पर ना टिका रहे.
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शराब जैसी चीजों से दूर रहें जो आपके इंपल्स को बढ़ाती हैं या फिर नकारात्मक ख्यालों को ट्रिगर करती हों.
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जो कुछ आपको अच्छा लगता है, जिन चीजों को आप फील करते हैं उनके बारे में लिखें.
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वॉर्निंग साइंस और ट्रिगर्स को पहचानें और उनसे दूर रहें.
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खुद को स्वस्थ रखें. अच्छा खाएं. वर्कआउट करें और आराम करें.
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सकारात्मक होने की कोशिश करें. उन लोगों के साथ रहें जिनके साथ आपको सकारात्मक महसूस होता है.
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नई हॉबी बनाएं, जिदंगी को नया मकसद दें. अपनी खुशी को प्राथमिकता दें.
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तनाव कम करने के लिए एक्सरसाइज या मेडिटेशन आदि करें.
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खुद को मॉटिवेट करें. अगर आपको कोई जानवर पालने का मन करे तो उसे घर लेकर आएं. दोस्तों से मिलें.
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ध्यान रखें कि जिंदगी में कठिनाइयां टेम्पोरेरी होती हैं और आप इनसे पार पा सकते हैं.
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खुद को समझाएं कि सुसाइडल थोट्स बस नेगेटिव ख्याल हैं जिन्हें आप दूर कर सकते हैं. इन ख्यालों को दूर करने की हिम्मत आप में है, खुद को समझाएं कि आप इनसे उभर सकते हैं.