Bhediya Movie Review: फिल्म भेड़िया
निर्माता -दिनेश विजन
निर्देशक -अमर कौशिक
कलाकार -वरुण धवन, कृति शेनॉन, अभिषेक बनर्जी, दीपक, पालीन कबाक और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -ढाई
हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी जॉनर की सबसे कामयाब फिल्मों में से एक स्त्री की अगली किस्त भेड़िया है.यह फिल्म स्त्री यूनिवर्स का ही हिस्सा है. निर्देशक अमर कौशिक की स्त्री की तरह यह फिल्म भी हॉरर कॉमेडी जॉनर की ही है. इसमें भी कॉमेडी ज़्यादा है और हॉरर कम. मतलब हॉरर वाले दृश्यों में भी हंसी ही आती है. यहां भी हॉरर कॉमेडी जॉनर के जरिए सिर्फ दर्शकों मनोरंजन करना भर नहीं है, बल्कि अनोखा मैसेज भी देना है .तीन दोस्त यहां भी हैं और एक रहस्मयी महिला किरदार भी. फिल्म में बहुत कुछ स्त्री जैसा ही है, लेकिन वह जादू मिसिंग है, क्योंकि पटकथा कमजोर है. कहानी बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है, लेकिन हास्य से भरपूर दृश्य, जबरदस्त वन लाइनर, उम्दा वीएफएक्स और कलाकारों का सधा अभिनय फिल्म को एक बार देखने की कई वजहें ज़रूर दे जाते हैं.
फिल्म की कहानी की शुरुआत जंगल से होती है और फिर कहानी दिल्ली पहुंच जाती है. भास्कर (वरुण धवन )एक छोटा कांट्रेक्टर है,लेकिन उसने अरुणाचल के जीरो में रोड बनाने का एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट ले लिया है. उसे किसी भी हद को पार कर अपना यह कॉन्ट्रैक्ट पूरा करना है. उसके इस कॉन्ट्रैक्ट से जंगल में तबाही मच सकती है. वह वहां के लोगों को लालच देकर अपना कॉन्ट्रैक्ट पूरा करने में जुट जाता है. जब लोग जंगल को नहीं बचाते, तो जंगल खुद अपनी रक्षा करता है. एक दिन भास्कर पर भेड़िया हमला कर देता है और वह इच्छाधारी भेड़िया बन जाता है. अब वह उनलोगों का शिकार रात में करता है, जिनसे जंगल को खतरा है. क्या भास्कर जंगल को बचा पायेगा. क्या वह खुद यह समझ पायेगा कि जंगल को काटकर हम विकास की तरफ नहीं बल्कि विनाश की ओर जा रहे हैं. फिल्म की कहानी में एक ट्विस्ट भी है, वो ट्विस्ट क्या है उसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
अमर कौशिक की स्त्री और बाला के बाद यह तीसरी फिल्म है. जिससे उम्मीदें बढ़ गयी थी. उनकी पिछली दोनों फिल्मों के मुकाबले इस बार कहानी कमज़ोर रह गयी है. शुरुआत से ही लड़खड़ा जाती है.क्लाइमैक्स भी कमज़ोर रह गया है. फ़िल्म महेश भट्ट की फिल्म जूनून की याद भी दिलाती है. फ़िल्म में राहुल रॉय की फ़िल्म का नाम भी लिया गया है. फिल्म बहुत सारे सवालों को अधूरा छोड़ देती है. कृति सेनन के किरदार की बैक स्टोरी पर थोड़ा फोकस करने की ज़रूरत थी. कहानी की शुरुआत वाली वो बच्ची कृति का किरदार था, बस बैक स्टोरी के नाम पर फिल्म में वही है. फिल्म की पटकथा में यह बात भी प्रभावी ढंग से नहीं आ पाती है कि आखिर कैसे वरुण का ह्रदय परिवर्तन हो गया. कल तक सिर्फ नोटों की हरियाली को समझने वाला वरुण का किरदार जंगल को क्यों बचाना चाहता है. कृति का किरदार क्यों वरुण के किरदार को अचानक से पसंद करने लगती है. चूंकि वह फिल्म का हीरो है.
फिल्म कई सवालों के जवाब नहीं दे पाती है, इसके अलावा कई फिल्मों की याद भी दिलाती रही है, जूनून के अलावा कंतारा और हुग जैकमैन की हॉलीवुड फ़िल्म वॉल्वरीन से भी इस फ़िल्म का जुड़ाव महसूस होता है.गौरतलब है कि कमज़ोर कहानी के बावजूद मामला बोझिल नहीं हुआ है. इसकी वजह कॉमेडी से भरपूर वन लाइनर है. फिल्म शुरुआत से आखिर तक हंसाती रहती है. फिल्म के संवाद बेहतरीन है. स्त्री की तरह इस फिल्म में भी गाढ़ी हिंदी के शब्दों का उपयोग कर जबरदस्त हंसी पैदा ही गयी है. फिल्म के संवाद में मैसेज की भी भरमार है. फिल्म की कहानी का अहम हिस्सा नार्थ ईस्ट है, पर्यावरण की रक्षा के अहम मैसेज के साथ -साथ फिल्म नार्थ ईस्ट के साथ हो रहे भेदभाव के मुद्दे को भी उठाती है.
अभिनेता के तौर पर वरुण धवन शुरू से अंत तक अपने किरदार के साथ न्याय करते हैं. अपने किरदार के लिए उनकी बॉडी पर मेहनत दिखती है. कृति सेनन भी अपनी भूमिका में छाप छोड़ती है, लेकिन फिल्म मिमी के बाद उनसे उम्मीदें बढ़ गयी हैं और यह फिल्म उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है . अभिषेक बनर्जी स्त्री की तरह यहां भी जबरदस्त रहे हैं. वह अपनी मौजूदगी से फ़िल्म को खास बनाते हैं. यह कहना गलत ना होगा. पालीन कबाक ने उनका बहुत ही अच्छा साथ दिया है. उनके बीच की केमिस्ट्री अच्छी है. दीपक भी अपनी छाप छोड़ते हैं, उनके किरदार को थोड़ा और स्पेस दिया जाना था .
फिल्म तकनीकी तौर पर काफी मजबूत है. फिल्म की सिनेमाटोग्राफी उम्दा है. अरुणाचल के जंगलों की खूबसूरती का बेहतरीन तरीके से परदे पर इस्तेमाल हुआ है. जो कहानी के प्रभाव को बढ़ाती है. फिल्म का वीएफएक्स भी शानदार है. जिस तरह से वरुण के भेड़िया बनने को दिखाया गया है. वह दिलचस्प है.
फिल्म के गीत- संगीत की बात करें तो संगीतकार सचिन -जिगर और अमिताभ भट्टाचार्य के कंधे पर जिम्मेदारी थी. फिल्म में दो गाने हैं बाकी सब ठीक ठाक और जंगल में काण्ड हो गया, लेकिन दोनों गानों ने परदे पर ठुमकेश्वरी गीत नजर नहीं आया है.
पटकथा की खामियों के बावजूद शानदार संवाद, बेहतरीन अभिनय, खूबसूरत लोकेशन और जानदार वीएफएक्स की वजह से यह फिल्म देखी जा सकती है.