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Gehraiyaan Movie Review: सतही रह गयी उलझे रिश्तों की यह ‘गहराइयां’

एक मैं एक तू ,कपूर एंड संस के बाद निर्देशक शकुन बत्रा एक बार फिर उलझे रिश्तों की कहानी कह रहे हैं. कपूर एंड संस में जिस तरह से उन्होंने चार दीवारी के भीतर बिखरे हुए परिवार और रिश्तों की कहानी को दिखाया था

Gehraiyaan Film Review

फ़िल्म -गहराइयां

निर्माता- धर्मा प्रोडक्शन

निर्देशक-शकुन बत्रा

कलाकार-दीपिका पादुकोण, सिद्धांत चतुर्वेदी,अनन्या पांडे, धैर्य करवा,नसीरुद्दीन शाह और अन्य

प्लेटफार्म-अमेज़न प्राइम वीडियो

रेटिंग-ढाई

एक मैं एक तू ,कपूर एंड संस के बाद निर्देशक शकुन बत्रा एक बार फिर उलझे रिश्तों की कहानी कह रहे हैं. कपूर एंड संस में जिस तरह से उन्होंने चार दीवारी के भीतर बिखरे हुए परिवार और रिश्तों की कहानी को दिखाया था गहराइयां से उम्मीदें बढ़ गयी थी लेकिन फ़िल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है. मानवीय संबंधों की जटिल दुनिया के साथ फ़िल्म की कमज़ोर पटकथा न्याय नहीं कर पायी है.

फ़िल्म की कहानी में दो कपल्स है. एक अलीशा (दीपिका पादुकोण) और करण(धैर्य करवा) दूसरे हैं टिया (अनन्या पांडे) और जेन (सिद्धांत कपूर).अलीशा और टिया दोनों कजिन्स हैं लेकिन दोनों के बीच फाइनेंशियल गैप है. टिया अपने मंगेतर जेन के साथ अमेरिका से मुंबई आती है. जहां अलीशा से उनकी मुलाकात होती है.दो दिन के ट्रिप पर ये कहकर निकलते हैं कि क्या दुनिया बदल जाएगी और वाकई दुनिया बदल जाती है.

अलीशा और जेन का फ्लर्ट बाज़ी से शुरू हुआ रिश्ता जल्द ही इंटेंस रिश्ते में बदल जाता है. जेन टिया को छोड़ अलीशा से शादी का फैसला करता है लेकिन उसे टिया के परिवार के पैसे लौटाने हैं.जो उन्होंने जेन के एक बिजनेस प्रोजेक्ट में लगाया है. उसके बाद रिश्तों की यह कहानी एक थ्रिलर का रूप ले लेती है. जेन को बिजनेस में जबरदस्त नुकसान हो जाता है. जिसमें टिया ही उसकी मदद कर सकती है. अब जेन अलीशा को चुनेगा या टिया को. वैसे यह फ़िल्म इस लव ट्राइएंगल भर की कहानी नहीं है.

अलीशा का एक अतीत है. जो उसके वर्तमान पर भी हावी है.असल में कहानी इसी की है.क्या है इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. फ़िल्म शुरुआत में उम्मीद जगाती है लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है.उसमें बिखराव दिखने लगता है. कहानी थ्रिलर का रूप ले लेती है लेकिन रोचक फिर भी फ़िल्म नहीं बन पाती है. हां फ़िल्म का बेहतरीन क्लाइमेक्स इसे बचा लेता है और मामला बोझिल बनते बनते औसत वाला रह जाता है. ढाई घंटे की इस फ़िल्म की एडिटिंग पर भी काम करने की ज़रूरत थी.

अभिनय की बात करें तो दीपिका पादुकोण ने एक बार फिर यादगार परफॉर्मेंस दी है.फ़िल्म में हर इमोशन्स में उन्होंने अपने एक्सप्रेशन्स से जान डाल दी है. सिद्धांत चतुर्वेदी की कोशिश अच्छी रही है. वे अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं लेकिन उनकी और दीपिका पादुकोण की केमिस्ट्री परदे पर प्रभावित नहीं करती है.

अनन्या पांडे और धैर्य करवा अपनी भूमिकाओं के साथ भी न्याय करते हैं लेकिन लेखन में उनका किरदार बहुत कमजोर रह गया है.अधपका सा. जिससे परफॉरमेंस उनके किरदारों को उस तरह से निखार नहीं पाता है. जैसी फ़िल्म की ज़रूरत थी.हमेशा की तरह यहां भी नसीरुद्दीन शाह और रजत कपूर अपनी सीमित भूमिकाओं में भी प्रभावशाली रहे हैं.

फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी शानदार है. समुद्र, लहरे,लो लाइट वाली फोटोग्राफी फ़िल्म को बहुत खूबसूरत बनाते हैं. फ़िल्म का म्यूजिक भी अच्छा बन पड़ा है.गाने फ़िल्म की रिलीज से पहले ही लोगों की पसंद बन चुके हैं. फ़िल्म के दूसरे अच्छे पहलुओं में संवाद भी है.जो ज़िन्दगी की सच्चाई से रूबरू करवाते हैं.

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