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Goodbye Film Review: अमिताभ बच्चन और रश्मिका की गुडबाय…आंखों को नम कर जाएगी

Goodbye Film Review: अमिताभ बच्चन और रश्मिका मंदाना स्टारर फिल्म गुडबाय आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. फिल्म आपको एक इमोशनल राइड पर लेकर जाती है, जहां बाप-बेटी की जर्नी देखकर आप रो पड़ेंगे.

फ़िल्म- गुडबाय

निर्देशक- विकास बहल

कलाकार- अमिताभ बच्चन, रश्मिका मंदाना, नीना गुप्ता, एली अबराम, पॉवेल गुलाटी, सुनील ग्रोवर, आशीष विद्यार्थी और अन्य

रेटिंग- तीन

प्लेटफार्म- थिएटर

Goodbye Film Review: हिंदी सिनेमा ने पिछले दो वर्षों में रामप्रसाद की तेरहवीं, पग्लैट जैसी फिल्मों से अपनों के खोने के दर्द के साथ-साथ यह दिखाने की भी कोशिश करता आ रहा है कि अपने किसी करीबी के निधन के बाद परम्पराओं और रीति रिवाज के नाम पर एक अलग ही ड्रामा शुरू हो जाता है. क्या वो ड्रामा जरूरी है. विकास बहल की फिल्म गुडबाय एक कदम आगे बढ़ती है. किसी इंसान को गुडबाय कहने के लिए क्या ये पुराने रीति रिवाज जरूरी है. क्या आस्था और साइंस के बीच कुछ कनेक्शन है. इसके साथ गुडबाय इस सवाल को भी सामने ले आती है कि क्या हम अपने अपनों को बता पाते हैं कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं, जो उनके जाने के बाद अक्सर रिग्रेट की तरह हमारी जिन्दगी में हमेशा के लिए रह जाता है. विकास बहल की यह फिल्म इसी भावनात्मक जर्नी की कहानी है. भावनात्मक स्तर पर यह फिल्म शुरू से आखिर तक आपको जोड़े रखती है. यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है. जो इस फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले की खामियों को भी नजरअंदाज कर जाती है.

गुडबाय ये है कहानी

कहानी की शुरुआत तारा (रश्मिका) से होती है. वह अपने जीत का जश्न अपने दोस्तों के साथ मना रही होती है, तभी उसके पिता हरीश (अमिताभ बच्चन) का फोन आता है, लेकिन वह अपने पिता का फोन नहीं लेती है, सुबह उसे मालूम पड़ता है कि उसकी मां गायत्री (नीना गुप्ता) की मौत हो गयी है. मां को अंतिम विदाई देने के लिए पूरा परिवार एक छत के नीचे आते हैं. जिसमें तारा के तीन भाई भी हैं. हरीश और उनके बच्चों के बीच मतभेद शुरू हो जाते हैं. वैचारिक से लेकर निजी मतभेद तक सबकुछ सामने आने लगते हैं. क्या ये मतभेद इनके बीच की दूरी को बढ़ाएंगे या ये परिवार तमाम गिले-शिकवे भूल एकजुट हो जाएगा. यह आगे की कहानी है.

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यहां मामला जमा है खूब

यह फिल्म एक इमोशनल जर्नी है. जिस वजह से जिन्होंने भी अपनों को खोया है. वह इस फिल्म को देखते हुए पूरी तरह से जुड़ाव महसूस कर सकेंगे. परिवार और उसके महत्व को भी समझाने में यह फिल्म खरी उतरी है. फिल्म अपने को खोने के दर्द के साथ-साथ ह्यूमर लिए भी है. फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं, जो चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं. खासकर बिल्डिंग की महिलाओं वाला पूरा सीक्वेंस. गीत संगीत की बात करें तो वह कहानी के साथ न्याय करते हैं. महाकाल और चन्न् परदेशी गीत जरूर याद रह जाता है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी की भी तारीफ जरूरी है. यह कहानी को गहराई देते हैं.

यहां हो गयी है चूक

फिल्म की कहानी के साथ-साथ फिल्म की रफ्तार भी धीमी रह गयी है. इसके अलावा किरदार कुछ अधपके से भी हैं. उनका बैकग्राउंड ठीक से स्थापित नहीं किया गया है.

कलाकारों ने रुलाया और हंसाया है

अभिनय की बात करें तो यह इस फिल्म का अहम पहलू साबित हुआ हैं. महानायक अमिताभ बच्चन एक बार फिर अपने अभिनय से छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं. अस्थि विसर्जन वाले दृश्य में तो वह रुला ही देते हैं. रश्मिका अपने अभिनय से प्रभावित करती हैं, लेकिन उन्हें अपनी भाषा पर थोड़ा काम करने की जरुरत थी. नीना गुप्ता जब भी स्क्रीन पर नजर आती हैं, वह कहानी में एक अलग रंग भरती हैं. सुनील ग्रोवर कैमियो भूमिका में इम्प्रेस करने में सफल रहे हैं. बाकी के किरदारों में आशीष विद्यार्थी, पॉवेल गुलाटी, एली अबराम भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करते हैं.

गुडबाय देखें या ना देखें

गुडबाय एक इमोशनल फिल्म है, लेकिन फिल्म के कहानी और स्क्रीनप्ले पर थोड़ा और काम किया जाता था, तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. इसके बावजूद यह फिल्म सभी को एक बार जरूर देखनी चाहिए.

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