फ़िल्म-आईबी 71
निर्माता – विद्युत जामवाल
निर्देशक – संकल्प रेड्डी
कलाकार – विद्युत जामवाल, अनुपम खेर, विशाल जेठवा, फ़ैजान खान, नरेश मलिक और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – ढाई
राजी, गाजी अटैक, 1971 जैसे प्रोजेक्टस् के बाद अभिनेता विद्युत जामवाल ने भी बतौर निर्माता अपनी शुरुआत के लिए उसी कालखंड को चुना है. उनकी फिल्म आईबी 71 उसी दौर की है. यह गुमनाम नायकों के उस मिशन की कहानी है, जिसमे एक गोली चले बिना भारत ने पाकिस्तान को शिकस्त दे दी थी. फिल्म का कांसेप्ट जितना दिलचस्प है, फिल्म का स्क्रीनप्ले पर्दे पर वह रोमांच नहीं ला पाया है, जिससे यह एक औसत फिल्म बनकर रह गयी है.
सन 48 और 65 की हार के बावजूद पाकिस्तान एक बार फिर भारत के खिलाफ युद्ध की तैयारी में है. सन 71 की बात है. उस वक्त के पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में हिंसा भड़की हुई है. पाकिस्तान, चीन की मदद से इस भड़की हुई हिंसा का फायदा उठाकर भारत पर एयर स्ट्राइक करना चाहता है. भारत के ख़ुफ़िया विभाग को इस बात की जानकारी मिल जाती है, लेकिन यह बात भी सामने आ जाती है कि भारत इस एयर स्ट्राइक का जवाब नहीं दे पाएगा, क्योंकि उसके पास संसाधनों की कमी है. इस हमले से बचने का एक ही तरीका है, अगर भारतीय हवाई क्षेत्र बंद कर दिए जाए, लेकिन वह तभी हो सकता है जब युद्ध शुरू हो या फिर हाइजैक जैसी कोई घटना हो, जिसे एक्ट ऑफ़ वॉर माना जाएगा. इंटेलीजेंट ब्यूरो के एजेंट देव ( विद्युत जामवाल ) भारतीय विमान के हाइजैक की योजना बनाते हैं, जिसके लिए उनका मकसद पाकिस्तानी सरकार को इस हाइजैक का जिम्मेदार बताना है. एयर स्ट्राइक को दस दिन ही बचे हैं. किस तरह से विमान का हाइजैक होता है और उसे जम्मू से लाहौर ले लाया जाता है, जिसमे 30 भारतीय लोग भी है. क्या ये वापस भारत पहुंच पाएंगे, लेकिन कैसे यही आगे की कहानी है.
यह फिल्म गुमनाम नायकों और देशभक्ति के जज्बे पर आधारित यह फिल्म असल घटना पर आधारित है. फिल्म का प्लॉट हीरो है, लेकिन स्क्रीनप्ले विलेन साबित हुआ है. यह फिल्म जितना दिखाती नहीं है, उतना बताती है. विजुअल माध्यम में अगर कहानी को बताने की जरूरत ज्यादा है, इसका साफ मतलब है कि स्क्रीनप्ले आपका कमजोर रह गया है. फिल्म का फर्स्ट हाफ में कहानी बहुत स्लो रफ़्तार से आगे बढ़ती है, सेकेंड हाफ में रफ़्तार पकड़ती है, लेकिन ट्विस्ट एंड टर्न गायब है. आगे ये सब कैसे होगा. यह सवाल आपके जेहन में आता ही नहीं बल्कि सबकुछ आसानी से होता चला जाता है. पाकिस्तान में जिस तरह से आराम से सबकुछ हो जाता है, एक बार को मन में यह सवाल भी आता है कि ख़ुफ़िया मिशन क्या इतनी आसानी से अंजाम में लाए जाते हैं. विशाल जेठवा के किरदार की बैक स्टोरी पर भी ज्यादा फोकस नहीं हुआ है.
विद्युत जामवाल की यह बतौर निर्माता पहली फिल्म है. विद्युत अपनी एक्शन इमेज के लिए जाने जाते हैं, फिल्म की जब घोषणा हुई थी, उस वक्त लगा था कि विद्युत की इस फिल्म में जमकर एक्शन होगा, लेकिन एक दो सीक्वेन्स को छोड़ दें, तो फिल्म में एक्शन मुश्किल से है. विद्युत ने एक्शन के बजाय अभिनय पर ज्यादा फोकस किया है और वह अपने अभिनय में जमें हैं. अनुपम खेर को ऐसी भूमिकाएं करने में महारत हासिल है. वे इस अंदाज में कई फिल्मों में नजर आ चुके हैं. विशाल जेठवा जैसे समर्थ अभिनेता के साथ यह फिल्म न्याय नहीं कर पायी है, हालांकि किरदार की भाषा पर की गयी उनकी मेहनत दिखती हैं. नरेश मलिक सहित बाकी के किरदारों भी अपनी भूमिकाओं में जमें हैं, हालांकि कहानी में उनके करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था.
फिल्म के दूसरे पहलुओं पर गौर करें, तो यह फिल्म 70 के दशक पर आधारित है, फिल्म के लुक से लेकर किरदारों के लुक तक में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है. फिल्म की अधिकतर शूटिंग कश्मीर में हुई है, जो परदे पर खूबसूरत दिखने के साथ – साथ कहानी के साथ न्याय भी करता है. फिल्म का ट्रीटमेंट संजीदगी से किया गया है. बेवजह के गानों को नहीं भरा गया है. फिल्म में एक ही गाना है, जो आखिर में आता है. वो भी बैकग्राउंड में बजता है. फिल्म के डायलॉग पर काम करने की जरूरत थी. देशभक्ति की फिल्मों में डायलॉग की अहमियत बहुत होती है.