फ़िल्म- कुत्ते
निर्माता -लव रंजन और विशाल भारद्वाज
निर्देशक -आसमान भारद्वाज
कलाकार -अर्जुन कपूर, तब्बू, कुमुद मिश्रा, कोंकोना सेनशर्मा, राधिका मदान, नसीरुद्दीन शाह और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -तीन
बीते कुछ दशक में निर्माता, निर्देशक, लेखक, गीतकार और संगीतकार विशाल भारद्वाज ने अपनी बेहतरीन फिल्मों से इंडस्ट्री में खास पहचान बनायी हैं. आज रिलीज हुई फिल्म कुत्ते से विशाल के बेटे आसमान भारद्वाज इंडस्ट्री में अपनी शुरूआत कर रहे हैं. इस फिल्म के अतरंगी शीर्षक से लेकर इसकी दुनिया विशाल की ही फिल्मों से प्रेरित लगती है, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता हैं कि पहली ही फिल्म में आसमान ने निर्देशन की जिम्मेदारी मजबूती के साथ संभाला है. कुलमिलाकर आसमान भारद्वाज ने अपनी पहली फिल्म से यह बात साबित कर दी हैं कि भारद्वाज लिगेसी आनेवाले समय में मजबूत हाथों में रहने वाली हैं.
कहानी की बात करें तो फिल्म की कहानी गोपाल (अर्जुन कपूर ) और पाजी (कुमुद मिश्रा) की हैं, जो पुलिस की वर्दी में तो हैं, लेकिन काम ड्रग डीलर्स और गैंगस्टर्स के लिए करते हैं. एक बड़ा गैंगस्टर भाऊ (नसीरुद्दीन शाह) अपने प्रतिद्वंदी गैंगस्टर्स के खात्मे के लिए इन्हे सुपारी देता हैं और वे कर भी देते हैं, लेकिन पुलिस के बड़े अधिकारी के हत्थे चढ़ जाते हैं. जिससे पुलिस से निलंबन की तलवार दोनो पर लटक जाती हैं. जुगाड़ ढूंढने पर मालूम पड़ता हैं कि पुलिस की एक अधिकारी है पम्मी (तब्बू) वो उनकी बहाली करवा सकती है, लेकिन एक करोड़ की मांग रखती है. गोपाल इस परेशानी से निकलने के लिए कैश से भरी एक एटीएम वैन को लूटने का प्लान बनता है, लेकिन इसी कैश वैन पर पम्मी और पाजी के साथ-साथ गैंगस्टर भाऊ की बेटी और उसके प्रेमी की भी लूटने की प्लानिंग हैं. इसमें नक्सलियों का एक ग्रुप भी जुड़ जाता हैं. बाजी किसकी होगी. यही फिल्म की आगे की कहानी हैं. लालच, महत्वकांक्षा और विश्वासघात की कहानी फिल्म को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया हैं. जिस वजह से कहानी शुरूआती से आखिर तक एंगेजिंग हैं. कुत्ते एक डार्क थ्रिलर फिल्म हैं. जिसमें सारे किरदार भी डार्क हैं, लेकिन फिल्म को डार्क ह्यूमर के साथ सशक्त ढंग से पेश किया गया है. समय-समय पर यह फिल्म आपको हंसाती रहती हैं. खास बात ये हैं कि कहीं भी मामला गैर जरुरत वाला नहीं हुआ है.
खामियों की बात करें तो फर्स्ट हाफ में फिल्म में थोड़ा बिखराव हैं, सेकेंड हाफ में कहानी रफ्तार पकड़ती हैं. इस फिल्म में कई दिग्गज कलाकार शामिल किए गए हैं, लेकिन उनके साथ फिल्म न्याय नहीं करती हैं. जो बात अखरती भी हैं. फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और कोंकोंणा सेनशर्मा के किरदार को जिस तरह से फिल्म में दिखाया गया हैं. वैसा उनके साथ न्याय नहीं हो पाया हैं. अनुराग कश्यप भी चांद सेकेंड ही नजर आए हैं.
अभिनय की बात करें तो इस फिल्म में दिग्गज कलाकारों की एक बड़ी सी फौज हैं. सभी अभिनय के धुरंधर हैं इसलिए छोटे-बड़े हर किरदार में सभी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं, लेकिन यहां तब्बू बाजी मार ले जाती हैं. जिस कम्फर्ट के साथ उन्होंने अपने किरदार को बारीकी से जिया हैं. वह खास हैं. अर्जुन कपूर और कुमुद मिश्रा भी अपनी खास छाप फिल्म में छोड़ गए हैं.
तकनीकी पक्ष की बात करें तो फिल्म की सिनेमाटोग्राफी भी किरदारों के स्याह पक्ष को फिल्म के लुक के साथ बखूबी जोड़ा गया हैं. गीत संगीत फिल्म के सिचुएशन के साथ न्याय करते हैं. फैज अहमद का गीत हो या गुलजार का फिल्म में अलग रंग भरता है. कमीने का हिट सांग का भी फिल्म में बखूबी इस्तेमाल हुआ हैं. विशाल भारद्वाज द्वारा लिखे गए संवाद भी बेहतरीन हैं, जो हर किरदार के चरित्र को बखूबी सामने ले आया है. संवाद हंसाते हैं, तो कई बार सोचने को भी मजबूर कर गए हैं. सिर्फ तुम और तुम्हारा मालिक देश नहीं है, हम भी देश हैं.
डार्क कॉमेडी और थ्रिलर वाली इस फिल्म को इसके कलाकारों के उम्दा परफॉरमेंस के लिए देखा जाना चाहिए.