फ़िल्म -सलाम वेंकी
निर्माता -सूरज सिंह
निर्देशक -रेवती
कलाकार-काजोल, विशाल जेठवा, राजीव खंडेलवाल, प्रकाश राज,राहुल बोस, प्रियामणि, आहना कुमरा, आमिर खान और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग तीन
फिल्मेमकर क़े तौर पर रेवती एक बार फिर गहरी और दिल को छू लेने वाली कहानी क़े साथ आयी हैं. सलाम वेंकी,युवा शतरंज खिलाड़ी कोलावेंन्नू वेंकटेश की सच्ची कहानी से प्रेरित है.जिसकी कहानी अभी भी लोगों क़े जेहन में है. इसके बावजूद यह फ़िल्म आपको शुरुआत से अंत तक ना सिर्फ जोड़े रखती है बल्कि इमोशनल भी कर जाती है. जो निर्देशक क़े तौर पर रेवती की सफलता है. निर्देशन क़े साथ काजोल और विशाल जेठवा क़ा दिल जीतने वाला परफॉरमेंस भी इस फ़िल्म की खासियत है.ज़िन्दगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए का फलसफा सीखाने वाली यह फ़िल्म इमोशनल करने क़े साथ -साथ आपके जेहन में यह सवाल भी छोड़ जाती है कि हमारे देश क़े क़ानून को अब इच्छा मृत्यु की अनुमति दे देनी चाहिए या नहीं.
फ़िल्म की. कहानी सुजाता (काजोल )और उसके बेटे वेंकी (विशाल जेठवा )की है.. वेंकी मसक्युलर डिस्ट्रॉफी से जंग लड़ रहा है. जिसमें उसक़े शरीर का एक क़े बाद एक अंग काम करना बंद कर रहे हैं. वह एक -एक सांस को पाने क़े लिए मौत से लड़ रहा है. वेंकी मरना नहीं चाहता है, जीना चाहता है,लेकिन दूसरे किसी क़े शरीर में उसका दिल बनकर इसके लिए उसे अपनी मौत से पहले मरना होगा. वह सरकार से इच्छामृत्यु की मांग करता है ताकि वह अपने अंगों का दान कर, दूसरों की ज़िन्दगी बचा सके, लेकिन यह आसान नहीं है, क्योंकि हमारे देश का क़ानून ऐसी इज़ाज़त देता है . वेंकी की मां भी कहाँ कमज़ोर है. वह अपने बेटे क़े इस आखिरी सपने को पूरा करने क़े लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है. क्या वह अपने बेटे क़े सपने को पूरा कर पाएगी.
एक बेटे के दर्द और उससे एक मां क़े जुड़ाव को रेवती ने बहुत ही खूबसूरती से सेल्यूलाइड पर उतारा है. फिल्म शुरू होते ही आप सुजाता और वेंकी की दुनिया से जुड़ जाते हैं. उनके दर्द और असहाय स्थिति महसूस करने लगते हैं. जब वेंकी बताता है कि वह मौत क़े बाद दूसरी दुनिया में जाकर अपने पैरों को धरती पर रखकर महसूस करना चाहेगा. अपने पूरे शरीर का भार वह खुद पर लेकर चलना चाहता है.
उसकी बातें सुनकर यह महसूस होता है कि अपने पैरों पर चलना भर ही कितनी बड़ी और खास बात है. हाल क़े वर्षों में एक क़े बाद एक कई फिल्मों में मीडिया क़े कामकाज क़े तरीकों का जमकर मजाक बनाया गया था. इस फ़िल्म में एक अरसे बाद मीडिया की सामाजिक सरोकार और जिम्मेदार वाली छवि को कहानी से जोड़ा गया है.
फ़िल्म की कहानी सच्ची है.श्रीकांत क़े नॉवेल लास्ट हुर्रे पर यह फ़िल्म आधारित है. फ़िल्म की कहानी में सुजाता क़े संघर्ष को थोड़ा डिटेल में दिखाने की ज़रूरत थी. हमारे देश में मेडिकल का खर्च बहुत है, ऐसे में सिंगल पेरेंट् क़े तौर पर उन्होंने कैसे अपने बेटे का इलाज करवाना जारी रखा था. कोर्ट रूम की बहस को और दिलचस्प बनाया जा सकता है. फ़िल्म आज क़े समय में बनी हैं, तो जिन देशों में इच्छामृत्यु कानूनन अपराध नहीं है. उसका जिक्र बहस में किया जा सकता था.
फ़िल्म की कहानी क़े साथ सिनेमाटोग्राफी पूरी तरह से न्याय करती है. फ़िल्म क़े संवाद अच्छे बन पड़े हैं. कई बार वह फ़िल्म क़े मूड को हल्का कर जाते हैं. फ़िल्म का गीत -संगीत कहानी क़े अनुरूप हैं.
अभिनय की बात करें तो इस फ़िल्म में अभिनय से जुड़े कई खास नाम हैं. फ़िल्म क़े लगभग हर फ्रेम में एक मंझा हुआ कलाकर नज़र आ रहा है फिर चाहे वह आमिर खान,राहुल बोस, अनंत महादेवन, राजीव खंडेलवाल,आहना कुमरा और प्रियामणि हो. सभी ने अपने -अपने किरदारों क़े साथ न्याय किया है, लेकिन यह फ़िल्म मूल रूप से काजोल और विशाल जेठवा की कहानी है. दोनों ने अपने दमदार अभिनय से फ़िल्म को मजबूती दी है.दोनों ने अपने किरदारों से जुड़े दर्द, हौंसले हर पहलू को बखूबी जिया है. विशाल जेठवा की विशेष तारीफ करनी होगी, क्योंकि उन्हें अपने चेहरे से अभिनय करना था. एक ही एक्सप्रेशन में उन्होने ख़ुशी और दर्द दोनों को बयां किया है.वह एक उम्दा कलाकार हैं. एक बार फिर उन्होने साबित किया है.
यह इमोशनल सच्ची कहानी दिल को छू और आँखों को नम कर जाती है.जिसे देखा जाना चाहिए.