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फ़िल्म: सम्राट पृथ्वीराज
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निर्माता: यशराज फिल्म्स
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निर्देशक: डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी
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कलाकार: अक्षय कुमार,मानुषी छिल्लर, संजय दत्त,आशुतोष राणा,साक्षी तंवर, मानव और अन्य
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प्लेटफार्म: सिनेमाघर
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रेटिंग: दो
Samrat Prithviraj Review: भारतीय राजा पृथ्वीराज के अदम्य साहस और शौर्य की कहानियां हम हमेशा बचपन से सुनते आये है, छोटे पर्दे पर उनकी कहानी कई साल पहले नज़र आ चुकी है. यह पहला मौक़ा था. जब रुपहले पर्दे पर इस महान राजा की कहानी बयां होने वाली थी. फिल्म से अक्षय कुमार , यशराज बैनर और निर्देशक डॉक्टर चंद्र प्रकाश द्विवेदी की १८ सालों की मेहनत जुड़ी थी , जिससे उम्मीदें बहुत बढ़ी हुई थी लेकिन फिल्म अपने कमज़ोर लेखन की वजह से सम्राट पृथ्वीराज के शौर्य और पराक्रम के साथ न्याय नहीं कर पाती है.
फिल्म की कहानी की बात करें तो जो कहानी हम सुनते आये हैं वह इस फिल्म में भी दिखी है. पृथ्वीराज (अक्षय कुमार ) के दिल्ली के राजा बनाये जाने के बाद रिश्तेदार जयचंद्र (आशुतोष राणा ) खफा हैं. वह पृथ्वीराज से आधी दिल्ली की मांग करता है क्योंकि वह भी दिल्ली का उत्तराधिकारी है लेकिन पृथ्वीराज इस मांग को अस्वीकार कर देते हैं और इस बीच जयचंद्र की बेटी संयोगिता को भरे स्वयंवर से भी भगा ले जाते हैं. जयचंद्र क्रोध में इस कदर अंधा हो जाता है कि अफगानिस्तान के बादशाह मोहम्मद गोरी की मदद लेता है. मोहम्मद गोरी को एक बार युद्ध में मात दे,जीवनदान दे चुके पृथ्वीराज इस बार मोहम्मद गोरी के धोखे की वजह से युद्ध हार जाते हैं लेकिन शब्दभेदी बाण का इस्तेमाल कर वह मोहम्मद गोरी को भी उसके अंजाम तक पहुंचा देते हैं. यही इस फिल्म की कहानी है.
पृथ्वीराज को एक ऐसी पटकथा की ज़रूरत थी, जो उनके शौर्य के साथ साथ वीरता का उत्सव मनाएं. उनकी छवि को लार्जर देन लाइफ तरीके से पर्दे पर रख सकें लेकिन फिल्म की पटकथा बेहद कमज़ोर है. फिल्म के शुरुआत सीक्वेंस और क्लाइमेक्स को छोड़कर कोई भी दृश्य प्रभावी नहीं बन पाया है. फिल्म के स्क्रीनप्ले में बहुत बिखराव है।फिल्म में नायक और खलनायक के किरदार को ठीक से स्थापित ही नहीं किया गया है. जिस वजह से यह किरदार उस तरह से प्रभावी नहीं बन पाए हैं और ना ही उनके बीच का युद्ध. जिस तरह से एक के बाद एक घटनाक्रम घटते हैं. उनमें ड्रामा और इमोशन की कमी खलती है. जो किसी भी फिल्म की सांसे बड़ी ज़रूरत होती है. फिल्म में जौहर सीक्वेंस के बहुत ही भव्यता के साथ फिल्माया गया है लेकिन उसमें ऐसा कुछ अलग या खास नहीं था. जो संजय लीला भंसाली की पद्मावत के जौहर दृश्य से अलग हो. फिल्म में महिला सशक्तिकरण को रखा गया है जो इस कमज़ोर स्क्रीनप्ले का एकमात्र अच्छा पहलू है.
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी यह अक्षय कुमार की पहली फिल्म है लेकिन वह अपनी दूसरी कमर्शियल फिल्मों की तरह ही नज़र आएं हैं. यही इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी रह गयी है. मानुषी छिल्लर की कोशिश पहली फिल्म के मुकाबले अच्छी है लेकिन उन्हें अभी और खुद पर मेहनत करने की ज़रूरत है. सोनू सूद एकमात्र ऐसे एक्टर रहे हैं जिन्होंने इस पीरियड फिल्म के साथ न्याय किया है. उन्होंने संवाद हो या बॉडी लैंग्वेज या फिर लुक के साथ पूरी तरह से न्याय किया है. मानव का काम अच्छा है लेकिन कमज़ोर लेखनी ने उनके किरदार को उस तरह से परिभाषित नहीं करने दिया है, जो इस फिल्म की सबसे बड़ी ज़रूरत थी. संजय दत्त को तो फिल्म में पूरी तरह से वेस्ट किया गया है आशुतोष राणा,साक्षी तंवर सहित बाकी के किरदार औसत रहे हैं.
दूसरे पक्षों की बात करें तो फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. जो कहानी में भव्यता को जोड़ते हैं, लेकिन उस लिहाज में भी अगर भंसाली या आशुतोष गोवारिकर की फिल्म से तुलना होती है तो यह फिल्म १९ ही साबित होती है. फिल्म के संवाद औसत हैं. गीत संगीत की बात करें तो हरि हरि गाने को छोड़कर कोई भी गीत याद नहीं रह जाता है. कुलमिलाकर सम्राट पृथ्वीराज एक कमज़ोर फिल्म साबित हुई है.