नीमच/नयी दिल्ली : चौबीस वर्ष की एक लड़की सात साल से वायुसेना की नीली वर्दी पहनकर बादलों के पार नीले आकाश में उड़ने का जो ख्वाब देख रही थी, वह आखिरकार सच हुआ. आंचल गंगवाल ने आखिरकार यह साबित कर दिया कि अगर तबीयत से पत्थर उछाला जाये, तो आसमां में सुराख करना मुमकिन है.
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 400 किलोमीटर के फासले पर स्थित एक छोटे से जिले नीमच के बस अड्डे पर ‘नामदेव टी स्टॉल’ के नाम से चाय की दुकान चलाने वाले सुरेश गंगवाल की जिंदगी अचानक बदल गयी है. बार-बार फोन घनघनाने लगता है और लोग उनकी लाडली के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते हैं.
वह कभी मीडिया के कैमरों और माइक से घिर जाते हैं तथा हर बार अपनी बच्ची की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए उनके चेहरे का मान और मन का अभिमान दुगुना होता जाता है. यह सब यूं ही नहीं हुआ. उनकी बेटी आंचल गंगवाल अब भारतीय वायुसेना में फ्लाइंग ऑफिसर हैं और उन्हें हाल ही में डिंडिगुल में इंडियन एयरफोर्स एकेडमी में राष्ट्रपति पट्टिका के साथ वायुसेना में अधिकारी के तौर पर शामिल करते हुए देश सेवा के दायित्व से अलंकृत किया गया है.
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वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने आंचल गंगवाल सहित कुल 123 अधिकारियों को भारतीय वायुसेना में शामिल किया. अपनी इस उपलब्धि का पूरा श्रेय अपने पिता को देते हुए आंचल बताती हैं और उनके पिता ने अपने तीनों बच्चों की तमाम जरूरतें पूरी करने के लिए सारी जिंदगी मेहनत की. आंचल ने जब अपने पिता को बताया कि वह वायुसेना में जाना चाहती हैं, तो उन्होंने उनकी क्षमताओं पर कोई संदेह नहीं किया और उन्हें हमेशा अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा दी.
नीमच के ही सीताराम जाजू सरकारी महिला कॉलेज से कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने के दौरान भी वह अपने सपने को पूरा करने की कोशिश करती रहीं. आखिर पांच बरस तक असफलता का कड़वा घूंट पीने के बाद छठे प्रयास में वह भारतीय वायुसेना में चुनी गयीं.
हैदराबाद में इंडियन एयरफोर्स एकेडमी में प्रशिक्षण में आंचल ने टॉप किया और पासिंग आउट परेड में वह अपने समूह का नेतृत्व करने वाली अकेली महिला थीं. यह सिर्फ एक लड़की की सफलता नहीं है, आंचल की यह उपलब्धि देश की अन्य लाखों बेटियों को उनके सपनों को हासिल करने का हौसला देगी.
Posted By : Mithilesh Jha