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Mother””s Day‬: मां की आंखों से शुरू होती है दुनिया

मुजफ्फरपुर : मां यानी सृष्टि. जिसके सांसों से होकर शुरू होता हो जीवन. मां यानी ईश्वर का प्रतिरूप. मां की आंखों से ही शुरू होती है दुनिया. जिसने मां के आंचल में ममत्व का अमृत पाया हो, उससे ज्यादा खुशनसीब इंसान और कोई नहीं. भावनाओं में डूबी कलम ने शब्दों व बिंबों में मां के […]

मुजफ्फरपुर : मां यानी सृष्टि. जिसके सांसों से होकर शुरू होता हो जीवन. मां यानी ईश्वर का प्रतिरूप. मां की आंखों से ही शुरू होती है दुनिया. जिसने मां के आंचल में ममत्व का अमृत पाया हो, उससे ज्यादा खुशनसीब इंसान और कोई नहीं. भावनाओं में डूबी कलम ने शब्दों व बिंबों में मां के हजारों चित्र खींचे हैं. आज मदर्स डे पर हम ऐसे ही कुछ बिंबों को प्रस्तुत कर रहे हैं. मां पर केंद्रित कई पुस्तकों का सृजन कर चुके डॉ संजय पंकज ने मां को कई आयामों में देखा है. प्रस्तुत हैं
उनके कुछ दोहे
घर-घर में हिम बंट गया
मां के हिस्से आग
जल-जल कर है बांटती
मां केवल अनुराग
सूरज तो सोया अभी
पंक्षी अपने नीर
सोकर भी हैं जागना
मां की यह तकदीर
थोड़े में सब थक गए
थका सकल परिवार
कभी नहीं थकती मगर
मां की गंगा धार
शब्दों में ब्रह्मांड बंधा
बंधे गीत-संगीत
अपना अर्थ जगाइए
मां है शब्दातीत
दुनिया भागम भाग है
दुनिया एक तनाव
दुनिया में ही मां मिली
दुनिया भर की छांव
मां में देवी-देवता
मां में झेलम व्यास
मां में गंगा सरस्वती
सागर भरे मिठास
मंदिर की हो घंटियां
कि मसजिद की अजान
पहले जगती मां तभी
जगे सभी भगवान
चाहे गगन पर कूंथते
जितने भी श्रीमंत
मां के तप के पुण्य ही
सारे संत महंत
ईश्वर अल्लाह गॉड मां
मंदिर-मसजिद-चर्च
औरों के हिस्से रही
मां होती नित्य खर्च
हुए भयावह काल से
मां करती मुठभेड़
मारु ध्वनि के बीच भी
मां वंशी की ढेर
गिरि-जंगल-सागर-सड़क
सबका है सीमांत
मां तो जैसे जल-पवन
भीड़ लिए एकांत
मां बेटी-बीबी-बहन
मां के कितने रूप
सुबह-दोपहर-शाम की
चढ़ती-ढलती धूप

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