विनय/मुजफ्फरपुर. इस साल एइएस से पीड़ित होने वाले बच्चों में अधिकतर वैसे परिवार के बच्चे हैं, जो एस्बेस्टस या टाट के घर में रह रहे थे. करीब 75 फीसदी बच्चों के घरों की छत एस्बेस्टस या टाट से बनी थी. ये बच्चे गर्मी से परेशान रहते थे और पानी भी कम पी रहे थे. 28 मेंे 21 बच्चों के परिजनों ने बताया कि उनका एस्बेस्टस या टाट का घर है.यह खुलासा प्रभात खबर के सर्वे से हुआ है. गर्मी का सीजन शुरू होने के बाद इस बार मुजफ्फरपुर सहित बेतिया, सीतामढ़ी, हाजीपुर के 29 बच्चों को एसकेएमसीएच में भर्ती किया गया, जिसमें दो बच्चों की मौत हो गयी. अन्य बच्चों को स्वस्थ होने पर छुट्टी दी गयी.
सरकार ने एइएस पीड़ित बच्चों के परिवार का सामाजिक-आर्थिक सर्वे का आदेश जारी किया है और इसके लिए प्रश्नावली तैयार की जा रही है. हालांकि इससे पूर्व प्रभात खबर ने एइएस से पीड़ित होने वाले सभी बच्चों के परिवार से बात कर उनके सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी लेने की कोशिश की. एसकेएमसीएच से मिले भर्ती बच्चों के पिता का मोबाइल नंबर लेकर फोन से बात की गयी. जिसमें चार बच्चों के परिवार को मोबाइल नंबर नहीं था और एक का मोबाइल बंद मिला.
सर्वे में 24 परिवार से बात कर उनके परिवार की आर्थिक स्थिति, बीमार होने वाले बच्चों के रहन-सहन, उनके परिवार की मासिक आय और सरकारी योजनाओं से मिले लाभ की जानकारी ली गयी. इससे पता चला कि जिन परिवारों के बच्चे बीमार हुए थे. उनमें से 21 परिवार के मुखिया मेहनत-मजदूरी करते हैं. तीन परिवार ऐसे मिले, जिसमें एक परिवार का का मुखिया ठेले पर सब्जी बेचता है. दूसरे परिवार में बांस की टोकरी बनायी जाती है और तीसरे परिवार का मुखिया एक वित्त रहित कॉलेज में शिक्षक हैं. इन परिवारों ने बताया कि उनकी मासिक आमदनी 10 से 15 हजार के बीच है.
एइएस से पीड़ित होने वाले बच्चों के कई परिवार नल-जल योजना और राशन कार्ड से वंचित है. कई परिवारों के पास इंदिरा आवास नहीं है. सर्वे से पता चला कि 28 परिवारों में 11 को राशनकार्ड, छह परिवारों को इंदिरा आवास, 21 परिवारों को एस्बेस्टस और टाट का घर और 13 परिवारों के घर तक शुद्ध पानी पहुंच रहा है. इन परिवारों का कहना था कि इसके लिए वे कई बार जनप्रतिनिधि से लेकर बीडीओ को आवेदन दे चुके हैं, लेकिन अभी तक उन्हें सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है.
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एस्बेस्टस वाला छत पक्के मकान की अपेक्षा अधिक गर्म होता है. जिससे पसीना अधिक आता है. बच्चे दिन भर इस घर में रहते हैं. जितनी मात्रा में पसीना निकला है, उस हिसाब से शरीर को पानी और नमक नहीं मिले तो डिहाइड्रेशन हो जाता है. यदि बच्चे का खाना-पीना सही तरीके से नहीं हो रहा हो या बच्चा कुपोषित हो तो यह गर्मी एइएस का कारण बन सकती है. ऐसे परिवार जो एस्बेस्टस के घर में रहते हों वे बच्चों को पानी नियमित अंतराल में जरूर दें. बच्चे को पानी में नमक और चीनी का घोल मिला कर दें. इससे डिहाइड्रेशन नहीं होगा – डॉ अरुण साह, एइएस रिसर्च कमेटी के विशेषज्ञ
मुजफ्फरपुर. एसकेएमसीएच के पीआइसीयू वार्ड में चमकी-बुखार के लक्षण वाले दो बच्चे को भर्ती किया गया. ये बच्चे मुशहरी व मीनापुर के हैं. वहीं एइएस पुष्टि हाेने के बाद एक बच्चे का इलाज चल रहा है. वहीं अन्य को इलाज के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया है. उपाधीक्षक सह शिशु विभागाध्यक्ष डॉ गोपाल शंकर सहनी ने बताया कि पीड़ित बच्चे की रिपोर्ट मुख्यालय भेजी गयी है. अलग-अलग जगह से बच्चे चमकी-बुखार के पीड़ित होकर आ रहे हैं. इन सबों का सैंपल जांच के लिए लैब भेजा गया है.
जांच के बाद ही पुष्टि हो पायेगी कि एइएस है या नहीं है. अभी सबकी हालत में सुधार है. उन्होंने कहा कि अगर समय पर बच्चा अस्पताल आ जाए तो उसकी जान बच जाती है. जानकारी के अनुसार इस साल जो बच्चे एइएस पीड़ित मिले, उसकी संख्या अभी तक 29 हैं. इनमें दो की मौत हुई है. पीड़ितों में 16 केस मुजफ्फरपुर के, तीन मोतिहारी और पांच सीतामढ़ी, अररिया, वैशाली और बेतिया के एक-एक हैं. सीतामढ़ी व वैशाली के बच्चे की मौत इलाज के दौरान मौत हुई थी.