मुजफ्फरपुर के गरीबनाथ मंदिर में दूसरी सोमवारी पर जलाभिषेक के लिए कांवरियों का सैलाब उमड़ पड़ा. पहलेजा से जल लेकर आए कांवरिये पूरे उत्साह के साथ अरघा में जल अर्पित कर बाबा का जयकारा लगा रहे थे. हरिसभा से पानी टंकी, जिला स्कूल, छोटी कल्याणी, प्रभात सिनेमा रोड होते हुए बाबा गरीबनाथ मंदिर तक पंक्तिबद्ध कांवरिये बाबा के नाम का उद्घोष करते आगे बढ़ रहे थे. पूरा इलाका भक्तिमय रहा.
बाबा को जलाभिषेक अर्पित करने वाले कांवरिये हों या उनकी सहायता करने वाले स्वयंसेवक सभी बाबा के प्रति समर्पित भाव से जुटे थे. गरीबनाथ मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर स्थित माखन साह चौक से कांवरियों को नियंत्रित कर आगे बढ़ाया जा रहा था. डाक बम लेकर आने वाले कांवरियों को हरिसभा चौक से सीधे साहू रोड होते हुए मंदिर मार्ग में प्रवेश कराया जा रहा था. उन्हें रास्ते में किसी तरह की बाधा नहीं हो, इसका ख्याल रखा जा रहा था. आधी रात के बाद से जलाभिषेक के लिए कांवरियों की भीड़ और बढ़ी. हालाकि पुलिस बल और स्वयंसेवकों ने सुरक्षित तरीके से सभी को जलाभिषेक कराया.
रास्ते में कोई कांवरिया चलने में असमर्थ हो जाता तो उसे सहारा देने के लिए एक-दूसरे कांवरियों में होड़ लग जाती. चलने में असमर्थ कांवरियो की बांह अपने गले में डाल दूसरे कांवरिये उसे लेकर आगे बढ़ रहे थे. हर कोई एक-दूसरे की मदद के लिए तत्पर था. रास्ते में स्वयंसेवक भी कांवरियों की मदद कर रहे थे. चलने में असमर्थ कांवरियों को शिविर में बिठा कर उनके पैर को गर्म पानी से धोया जा रहा था फिर मलहम-पट्टी की जा रही थी. साथ ही उन्हें चाय-पानी और दूध दिया जा रहा था. कई स्वयंसेवक कांवरियों को सहारा देकर उन्हें लेकर चल रहे थे. रास्ते में कांवरियों के पैर पर पानी पटाने के लिए भी लोगों में होड़ लगी थी. लोग घरों से बाल्टी में पानी लेकर आते और कांवरियों का पैर धोते. आस्था और समरसता का ऐसा नजारा देख अन्य लोग भी सेवा करने के लिए तत्पर थे.
अरघा में बाबा को जल अर्पित करने की व्यवस्था के कारण हजारों कांवरियों ने बाबा को दो बार जलाभिषेक किया. बता दें कि बीते रविवार की दोपहर में बाबा नगरी आने वाले कांवरिये ने एक लोटा जल पहले गर्भ गृह में जाकर बाबा को चढ़ाया और दूसरा लोटा जल रविवार की रात्रि 12 बजे के बाद चढ़ाने के लिए रखा. कांवरियों का कहना था कि रात्रि में जलाभिषेक करते समय बाबा का दर्शन नहीं हो पाता है, इसलिए एक लोट जल पहले चढ़ा लिया. बाबा पर सोमवार को ही जल चढ़ाने की परंपरा है, इसलिए एक लोटा बचा कर रखा है, उसे रात में बाबा पर चढ़ायेंगे.
पैरों में छाले हैं, पर हम नहीं रुकने वाले हैं. जितनी परीक्षा ले लो बाबा, हम तो जलाभिषेक करके ही रहेंगे. इसी आस्था और विश्वास के साथ कांवरियों के कदम बढ़ते रहे. शरीर थक कर चूर भले ही हो गया, लेकिन आस्था की हिम्मत कांवरियों को ऊर्जा दे रही थी. रामदयालु से बाबा नगरी में प्रवेश करते कांवरियों का सैलाब भक्ति की एक नयी परिभाषा गढ़ रहा था. कांवरियों की भीड़ से बाबा नगरी की ओर आने वाले रास्ते नारंगीमय हो गया. ऐसा लग रहा था सड़कों पर नारंगी रंग की चादर बिछ गयी हो. बोलबम के उद्घोष के साथ कांवरिया लगातार आगे बढ़ रहे थे. इस दौरान पूरा इलाका भक्तिमय रहा.