मुजफ्फरपुर. मिर्च की खेती से प्रति एकड़ औसतन एक से 1.5 लाख का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है. वैसे तो मिर्च की खेती वर्ष में तीन बार की जाती है, लेकिन अभी की खेती में खर्च कम व लाभ अधिक होगा. इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. वैसी मिट्टी जिसमें जीवांश की प्रचुरता हो एवं जल निकास वाली हो इसकी खेती के लिये उपयुक्त होती है.
उन्नत प्रभेद: काशी विश्वनाथ, जवाहर मिर्च -283, जवाहर मिर्च- 218, अर्का सुफल, काशी अनमोल तथा संकर किस्म काशी सुर्ख, काशी हरिता, एनपी 46 ए, काशी अर्ली , एचपीएच 1900, 2640, उजाला, यूएस0- 611 एवं 720 इत्यादि.
बीज दर: एक एकड़ खेत की रोपाई के लिये 500 ग्राम ओपी किस्म या 200 से 225 ग्राम संकर किस्म के बीज की आवश्यकता होती है.
एक एकड़ भूमि में मिर्च लगाने के लिये तीन मीटर लंबा एवं एक मीटर चौड़ा तीन क्यारी की आवश्यकता होती है. यह क्यारी जमीन की सतह से 20 सेंटीमीटर ऊंची उठी होनी चाहिए. पौधशाला के निर्माण के समय दो से तीन टोकड़ी गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कंपोस्ट के साथ 25 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरीडी मिलाकर जमीन में मिट्टी के साथ मिला देनी चाहिए. बुआई के 40 से 45 दिन बाद पौधा रोपाई योग्य हो जाता है.
इसकी खेती के लिये वर्षा ऋतु में जून-जुलाई, रबी में सितंबर से अक्टूबर एवं गर्मी में फरवरी से मार्च के महीने में बीज की बुवाई कर देनी चाहिए. रोपाई बीज की बुआई के 40 से 45 दिन बाद कर देनी चाहिए. वर्षा ऋतु में इसकी रोपाई 15 जुलाई से अगस्त के अंत तक की जा सकती है.
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वर्षा कालीन मिर्च की खेती के लिये ऊंची एवं मध्यम भूमि की आवश्यकता होती है. मुख्य खेत को तीन से चार बार कल्टीवेटर से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना दिया जाता है. अंतिम जुताई के समय 8 से 10 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की सड़ी खाद या 4 से 5 टन वर्मी कम्पोस्ट मिला दिया जाता है.
मिर्च का पौधा प्रायः 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है. अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए कतार से कतार की दूरी 30 या 20 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर निर्धारित करनी चाहिए.
मिर्च की अच्छी पैदावार के लिये मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक का उपयोग करना चाहिए. रोपाई के दो सप्ताह बाद 40 किलोग्राम नेत्रजन, 24 किलोग्राम फॉस्फेट एवं 20 किलोग्राम पोटास प्रति एकड़ की दर से उपयोग करनी चाहिए. 40 किलोग्राम नेत्रजन का उपयोग प्रथम उपयोग के एक महीने बाद करनी चाहिए.
वर्षाकालीन मिर्च की खेती में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है. पौधा रोपाई से लेकर लगने तक आवश्यकतानुसार पौधों के जड़ के आसपास सिंचाई करनी चाहिए. बाद में आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई करनी चाहिए.