सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत, जस्टिस कर्णन को जाना ही होगा जेल, जानें क्या कहा कोर्ट ने

नयी दिल्ली : न्यायालय की अवमानना के अपराध में नौ मई से गिरफ्तारी से बच रहे कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी एस कर्णनबुधवार को एक बार फिर उच्चतम न्यायालय से किसी प्रकार की राहत पाने में विफल रहे. न्यायालय ने उन्हें अवमानना के अपराध में छह महीने की सजा के आदेश पर रोक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 7, 2017 5:53 PM

नयी दिल्ली : न्यायालय की अवमानना के अपराध में नौ मई से गिरफ्तारी से बच रहे कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी एस कर्णनबुधवार को एक बार फिर उच्चतम न्यायालय से किसी प्रकार की राहत पाने में विफल रहे.

न्यायालय ने उन्हें अवमानना के अपराध में छह महीने की सजा के आदेश पर रोक लगाने के अनुरोध पर सुनवाई से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति कर्णन के वकील ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अवकाश कालीन पीठ के समक्ष इस याचिका का उल्लेख किया जिसने पश्चिम बंगाल पुलिस को उन्हें हिरासत में लेने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

न्यायमूर्ति कर्णन का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने पीठ से कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को यह जानने का अधिकार है कि प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने उन्हें न्यायालय की अवमानना के लिए क्यों दोषी ठहराया.

न्यायमूर्ति कर्णन ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के निलंबन के लिए राष्ट्रपति से किया अनुरोध

उन्होंने कहा, मैं तो सिर्फ रोक लगाने का अनुरोध कर रहा हूं. मैंने प्रधान न्यायाधीश से इस मामले की सुनवाई का अनुरोध किया था. किसी भी दूसरे वादियों की तरह ही न्यायमूर्ति कर्णन को न्यायालय से कम से कम आदेश प्राप्त करने का हक है. उन्होंने कहा कि नौ मई का विस्तृत आदेश आज तक उन्हें उपलब्ध नहीं कराया गया है.

इस पर पीठ ने कहा कि वह इसकी सुनवाई नहीं कर सकती है यह आदेश सात न्यायाधीशों की विशेष पीठ ने पारित किया था. पीठ ने कहा, पिछले एक महीने में कुछ नहीं हुआ और आप तीन चार सप्ताह और इंतजार कर लीजिये और फिर विशेष पीठ के समक्ष जाइये.

हम आपकी मदद नहीं कर सकते. इस मामले में जो कुछ भी होना है वह विशेष पीठ ही करेगी. शीर्ष अदालत ने इससे पहले नौ मई का आदेश वापस लेने के लिए न्यायमूर्ति कर्णन की याचिका सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया था.

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