नयी दिल्ली : मॉनसून के सीजन में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले बादल ही अमूमन बारिश कराने का काम करते हैं. ये बादल 6500 फीट की ऊंचाई तक नजर आते हैं. पिछले कुछ सालों में इन लो क्लाउड्स की न केवल मोटाई में कमी आयी है, बल्कि ये नजर भी कम आ रहे हैं.
गरमी ने झुलसाया बारिश का पता नहीं
भारतीय मौसम विभाग ने बीते 50 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया है जिसके बाद यह रिपोर्ट सामने आयी है. इसका अर्थ यह है कि आने वाले समय में गर्मी वाले दिनों की संख्या में बढोत्तरी होगी और बरसात के दिनों में कमी आएगी. मतलब साफ है कि हम बारिश का मजा ज्यादा दिनों तक नहीं ले पायेंगे. यही नहीं, रात और दिन के तापमान में बड़े अंतर वाले दिन बढ़ेंगे.
खरीफ फसलों के लिए फायदेमंद है बारिश
मॉनसून के मौसम की भारत में होने वाली बारिश में कुल हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी है. स्टडी की मानें तो, पंजाब से बिहार तक फैले उत्तरी हिस्सों में कम ऊंचाई वाले बादलों में हर दशक में 4 से 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी नजर आयी जबकि, पश्चिमी तटीय इलाकों और मध्य भारत में इन बादलों के मामले में हर दशक में 4 से 6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है.
इसका मतलब साफ है कि, इन इलाकों में न केवल कम बारिश होगी, बल्कि यहां तापमान भी ज्यादा होगा. हालांकि, इस स्टडी में वजह साफ नहीं बतायी गयी है कि आखिर इन बादलों की कमी के पीछे कारण क्या है? आशंका व्यक्त की गयी है कि वातावरण में बढ़ रहे धूल और धुएं के कण इसकी वजह है.
जानकारों की माने तो भारतीय मौसम विभाग की यह स्टडी चिंताजनक है क्योंकि भारत की आधी से ज्यादा खेती बारिश पर निर्भर है. कम या ज्यादा बारिश खेती की पैदावार पर असर डालने का काम करती है. इससे न केवल खाद्य सुरक्षा, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर पड़ सकता है.