यही राजनीति है! खासकर आज की राजनीति के बारे में कहते हैं कि इसमें कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. बदलते समीकरण के साथ दुश्मन कब दोस्त बन जाये और दोस्त दुश्मन बन जाये, यह कहना मुश्किल है. इसी की बानगी देखने को मिली है महाराष्ट्र में. यहां दशकों से एक-दूसरे की धुर विरोधी पार्टियां कांग्रेस और शिवसेना ने कुर्सी के मोह में पहली बार एक-दूसरे से हाथ मिला लिया है.
दरअसल, शिवसेना और कांग्रेस का जो एक-दूजे के लिए प्यार उमड़ा है, उसकी वजह है महाराष्ट्रमें मालेगांव महानगरपालिका के चुनाव. दोनों पार्टियों के बीच हुए समझौते के अनुसार कांग्रेस को महापौर का पद दिया गया जबकि शिवसेना के हाथ आयी डिप्टी मेयर कीकुर्सी. जाहिर है, दोनों पार्टियां अपनी-अपनी राजनीति ही कर रही हैं.
ऐसे बना समीकरण
जहां कांग्रेस के पूर्व विधायक शेख रशीद ने मेयर पद के लिए दावेदारी पेश की, वहीं शिवसेना के सखाराम घोडके ने डिप्टी मेयर पद के लिए नामांकन दाखिल किया. इस चुनाव में शिवसेना ने कांग्रेस का मेयर बनाने में उनका साथ दिया वहीं बदले में कांग्रेस ने डिप्टी मेयर पद के लिए शिवसेना का साथ दिया. 84 सदस्यों की सीटों वाले मालेगांव में महापौर पद के लिए बुधवार, 14 जून, 2017 को चुनाव हुए.
किसे क्या मिला
मालेगांव चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. यहां पार्टी ने 28 सीटों पर जीत हासिल की. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 20 सीटों पर जीत हासिल की. जनता दल को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई और शिवसेना ने 13 सीटों पर जीत हासिल की. इस दौरान यहां भाजपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा. यहां पार्टी को महज 9 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई.
मिले बराबर वोट
इस चुनाव में कांग्रेस के शेख रशीद को जहां 41 वोट मिले वहीं एनसीपी-जनता दल गठबंधन के उम्मीदवार नबी अहमद को 34 वोट मिले. शिवसेना के सखाराम घोडके को भी 41 वोट हासिल हुए. इसमें कांग्रेस के 28 पार्षदों ने घोडके के ही पक्ष में मतदान किया. दूसरी तरफ, चुनाव से ठीक पहले भाजपा के सुनील गायकवाड़ ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी. इस दौरान ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के 7 पार्षद तटस्थ रहे जबकि भाजपा के दो पार्षद उपस्थित नहीं रहे.
गौरतलबहै कि…
महाराष्ट्र में भाजपा का शासन है और शिवसेना का उसे समर्थन प्राप्त है. वहींदूसरीओर, शिवसेना समय-समय पर अपनी राजनीति जमीन बचाये रखने के लिए राज्य सरकार का विरोध करती है. हाल ही में किसान आंदोलन को लेकर शिवसेना ने राज्य की सरकार पर हमला किया था. यह पहली बार नहीं है जब शिवसेना ने देवेंद्र फडणवीस सरकार पर हमला किया हो. इससे पहले भी कई मौकों पर शिवसेना प्रदेश सरकार पर हमला कर चुकी है.