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फादर्स डे स्पेशल : तुम्हारे पैरों के नीचे जमीं हूं मैं

!!रश्मि रविजा, लेखिका, मुंबई!! rashmeeravija26@gmail.com पिता एक ऐसा रिश्ता है जो धर्म, जाति, भाषा, देश, काल से परे सबके लिए एक समान है. संसार के किसी भी पिता की एकमात्र कोशिश होती है कि वह अपनी संतान को सुरक्षा, अच्छी शिक्षा, जीवन निर्माण के अवसर प्रदान करे. हर पिता अपनी संतान को खुद से ज्यादा […]

!!रश्मि रविजा, लेखिका, मुंबई!!

पिता एक ऐसा रिश्ता है जो धर्म, जाति, भाषा, देश, काल से परे सबके लिए एक समान है. संसार के किसी भी पिता की एकमात्र कोशिश होती है कि वह अपनी संतान को सुरक्षा, अच्छी शिक्षा, जीवन निर्माण के अवसर प्रदान करे. हर पिता अपनी संतान को खुद से ज्यादा सफल, ज्यादा ऊंचाई प्राप्त करते देखना चाहता है. आज उस पिता की भूमिका अपने समाज के लिए ‘बायोलॉजिकल पिता’ से कहीं ज्यादा व्यापक रूप में है.

बच्चे बारीकी से देखते हैं कि उनके पिता कितने कर्मनिष्ठ हैं, कितनी कड़ी मेहनत कर वे अपने परिवार की देखभाल कर रहे हैं. किस तरह परिवार के चारों तरफ, उन्होंने एक सुरक्षा घेरा बनाया हुआ है और ये सारे गुण बच्चे अपने भीतर आत्मसात करते जाते. स्कूल, कॉलेज, किताबें बच्चों को वह शिक्षा नहीं दे पातीं, जो वे अपने पिता के आचरण को देखकर सीखते हैं. इसीलिए पिताओं की जिम्मेवारी बहुत बढ़ जाती है कि वे बच्चों के समक्ष एक अच्छा उदाहरण पेश करें.
‘पिता रोटी हैं, कपड़ा है, मकान हैं
पिता छोटे-से परिंदे का बड़ा आसमान है’
पंडित ओम व्यास की ये पंक्तियां बहुत कुछ समेट लेती हैं. पिता एक घनी छांव की तरह हैं, जिनके तले नन्हे बिरवे पनपते हैं, लहराते हैं, पोषित होते हैं और फिर शक्ति संजो कर, सर उठा जमाने की धूप का सामना करने निकल पड़ते हैं. पिता एक आस है, एक उम्मीद है कि पिता हैं, तो सबकुछ ठीक हो जायेगा, कदम लडखड़ाये, तो कोई मजबूती से थामने के लिए पीछे खड़ा है.पिता एक ऐसा रिश्ता है जो धर्म,जाति, भाषा, देश, काल से परे सबके लिए एक समान है. संसार के किसी भी पिता की एकमात्र कोशिश होती है कि वह अपनी संतान को सुरक्षा, अच्छी शिक्षा, जीवन निर्माण के अवसर प्रदान करे. हर पिता अपनी संतान को खुद से ज्यादा सफल, ज्यादा ऊंचाई प्राप्त करते देखना चाहता है.
कुछ समय पहले तक सामान्यतः पिता का अपने बच्चों से दोस्ताना व्यवहार नहीं होता था. वे एक सुरक्षा कवच की तरह कठोर और खुरदरे बने रहते थे, ताकि जमाने के थपेड़े तो वे सहते रहें, पर उनके बच्चे भीतर महफूज़ रहें. बच्चों का अपने पिता से ज्यादा संवाद नहीं होता, पर वे बारीकी से देखते कि उनके पिता कितने कर्मनिष्ठ हैं, कितनी कड़ी मेहनत कर वे अपने परिवार की देखभाल कर रहे हैं. किस तरह परिवार के चारों तरफ, उन्होंने एक सुरक्षा घेरा बनाया हुआ है और ये सारे गुण बच्चे अपने भीतर आत्मसात करते जाते. स्कूल, कॉलेज, किताबें बच्चों को वह शिक्षा नहीं दे पातीं, जो वे अपने पिता के आचरण को देखकर सीखते हैं. इसीलिए पिताओं की जिम्मेवारी बहुत बढ़ जाती है कि वे बच्चों के समक्ष एक अच्छा उदाहरण पेश करें.
मनोविश्लेषक कहते हैं- ‘आरंभिक पांच वर्ष बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में बहुत सहायक होते हैं, जो जीवनपर्यंत उनके साथ रहता है.’ अगर पिता, उनकी मां की इज्जत करते हैं, अपना कार्य मेहनत और ईमानदारी से करते हैं, तो बच्चे के मन में भी स्त्री के प्रति आदर की भावना उपजती है और वह अपने जीवन में परिश्रम और ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ता.
युवावस्था में कोई व्यक्ति कितना भी लापरवाह हो, बुरी आदतों का शिकार हो, अर्थ उपार्जन के प्रति गंभीर न हो, पर पिता बनते ही उसके व्यक्तित्व में आमूल-चूल परिवर्तन आ जाता है. वह सिगरेट, शराब, जुए जैसी बुरी आदतों से किनारा करने लगता है और ज्यादा से ज्यादा परिश्रम कर धन कमाने की कोशिश करता है, ताकि वह अपनी संतान को जीवन की सारी खुशियां दे सके. अपने बच्चों की इच्छा, उनके सपने पूरे करने के लिए पिता कहां से लोन लेता है, अपनी कौन-सी प्यारी चीज गिरवी रखता है, कैसे ओवरटाइम करता है, बच्चों को पता भी नहीं चलता. पर पिता का एकमात्र उद्देश्य रहता है, उसके बच्चे जीवन में आगे बढ़ें.
बेटी के प्यार में मोम बन जाता है पिता
पिताओं का बेटियों से एक अलग ही कोमल-सा रिश्ता होता है. एक सख्तजान पिता भी बेटी के प्यार में मोम बन जाता है. एक बेटी का जन्म पिता के भीतर छुपी सारी कोमलताएं सतह पर ला देता है. बेटियां बड़ी होने लगती हैं और अपने पिताओं की मां बन जाती हैं. किसी की भी नहीं सुननेवाले वह पिता बेटी की इच्छा के आगे सिर झुका देता है. कोई व्यक्ति कितने भी रसूखवाला हो, अहंकारी हो, शक्तिशाली हो, पर अपनी बेटी को एक अच्छा घर-वर दिलाने के लिए लड़केवालों के समक्ष विनीत हो जाता है. अपमान के कड़वे घूंट पी लेता है, सिर्फ इसलिए कि उसकी बेटी का जीवन सुखमय रहे.
समय के बदलाव के साथ पिता के रोल में भी परिवर्तन आ रहा है. अब पिता बच्चों के लालन-पालन में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं. बच्चों के साथ खेलते हैं, उनसे संवाद करते हैं, उनके साथ ज्यादा समय बिताते हैं, अतः ज्यादा करीब भी हैं. लेकिन परंपरागत जिम्मेवारियां वे वैसे ही निभा रहे हैं. बेटियों की शादी से पहले उनकी शिक्षा को लेकर भी ज्यादा जागरूक हैं. उन्हें अपना कैरियर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, उनकी सहायता करते हैं. उन्हें दूर पढ़ने और नौकरी करने की इजाजत दे रहे हैं, साथ ही यह आश्वासन भी कि
‘जीवन की हर ऊंच-नीच में मैं तुम्हारे साथ खड़ा हूं. अपने पंख फैलाओ, अपने नभ को विस्तार दो, तुम्हारे पैरों के नीचे सुदृढ़ जमीन का वादा मेरा है.’
व्यापक है पिता की भूमिका
पर कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने बच्चों का ही पिता नहीं होता, बल्कि अपने संपर्क में आनेवाले कई किशोरों, युवाओं के लिए पिता तुल्य होता है. किसी की शादी भी नहीं हुई होती, पर वह कइयों के लिए पितास्वरूप हो सकता है. शिक्षक, कोच, पड़ोसी के रूप में वह किशोरों और युवाओं के जीवन को प्रभावित करता है, उन्हें सही राह दिखा सकता है. स्कूल-कॉलेज में कितने ही शिक्षक होते हैं, जो सैकड़ों छात्रों के लिए पिता का रोल निभा कर उनके व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं. इस तरह समाज के लिए जिम्मेदार नागरिकों का समूह तैयार करते हैं. क्यूबा के लेखक जोस मार्टि का कहना है- ‘हमारी शिक्षा व्यवस्था का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए कि वह लड़कों को अच्छे पिता और लड़कियों को अच्छी माता के रूप में तैयार कर सके, बाकी सारी चीजें गौण हैं.’
इस कथन के बहुत गहरे अर्थ हैं. यहां बायोलॉजिकल माता-पिता बनने की बात नहीं हो रही, बल्कि यह कहा जा रहा है कि हर व्यक्ति में सच्चाई, परिश्रम, लगन, ईमानदारी जैसे गुण विकसित हों. वह खुद को माता और पिता के रूप में ढाल कर अच्छे आचरण और सद्विचार को पोषित करे, तो उस से छोटे भी यही सीखेंगे. किसी भी क्षेत्र में परिश्रम से कार्य करने पर समाज की प्रगति होगी और सबके अच्छे आचरण से एक खुशहाल समाज का निर्माण हो पायेगा. सबकी चाहत होती है कि उसे प्यार और आदर मिले, पर यह तभी संभव है जब वह स्वयं भी सबका आदर और सम्मान करे. एक पिता यही भावना अपने बच्चों में प्रतिरोपित करता है और इस तरह एक शृंखला-सी बन जाती है. रमेश प्रजापति की कविता की पंक्तियां हैं-
‘पिता के आदर्शों की मिट्टी
पेड़ की जड़-सी
अब इसकी शाखाओं पर
फूट रही हैं नयी कोंपलें’

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