इस तमाशे से क्या मिलेगा बनारस को

-पुष्यमित्र- 23 मार्च को जब यह अंक आपके हाथों में होगा आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल बनारस में अपनी रैली के लिए तैयार होते हुए लगभग यह मन बना चुके होंगे कि उन्हें वहां से चुनाव लड़ते हुए मोदी को चुनौती देना है या नहीं. वैसे उन्होंने जिस तरह के बयान जारी किये […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 24, 2014 4:46 PM

-पुष्यमित्र-

23 मार्च को जब यह अंक आपके हाथों में होगा आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल बनारस में अपनी रैली के लिए तैयार होते हुए लगभग यह मन बना चुके होंगे कि उन्हें वहां से चुनाव लड़ते हुए मोदी को चुनौती देना है या नहीं. वैसे उन्होंने जिस तरह के बयान जारी किये हैं उससे यह लगभग तय लग रहा है कि वे बनारस से चुनाव लड़कर रहेंगे.

यह अरविंद का प्रिय राजनीतिक शगल है, पहले ही वे दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आमने-सामने के चुनाव में पराजित कर चुके हैं. मगर वे दिल्ली के विधानसभा चुनाव थे और कांग्रेस पार्टी दिल्ली में भ्रष्टाचार के आरोप में उलझकर अपनी लोकप्रियता खो बैठी थी. इस बार बनारस में उनका सामना एक ऐसे राजनेता से है, जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक देश में जिसकी लोकप्रियता की लहर चल रही है और उसने खुद की छवि विकास पुरुष के तौर पर गढ़ रखी है.

आज यह तय कर पाना आसान नहीं है कि केजरीवाल बनारस में मोदी को कितनी चुनौती दे पायेंगे. हालांकि लगभग ऐसा ही कारनामा 2009 में भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने बेल्लारी में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर दिखाया था. इस कोशिश का उन्हें या उनकी पार्टी को कितना लाभ हुआ यह जगजाहिर है.

मगर यहां बड़ा सवाल यह है कि इस लोकसभा चुनाव में जिस तरह बनारस को जंग का मैदान बनाया जा रहा है उससे इस लोकसभा के वोटरों को खालिस मनोरंजन के सिवा और क्या हासिल हो सकता है. लोकसभा चुनाव का मकसद किसी इलाके के लिए आवाज उठाने वाले प्रत्याशी का चयन है, मगर क्या बनारस की जंग में उतरे दोनों राष्ट्रीय योद्धा पांच साल तक बनारस की आवाज बने रहने की गारंटी लेंगे. या यह चुनाव किसी के लिए पीएम की कुरसी तो किसी के लिए खुद को हीरो के तौर पर स्थापित करने वाला ही साबित होकर रह जायेगा?

जिस तरह यह तय है कि केजरीवाल मोदी को चुनौती देकर रहेंगे तकरीबन उसी तरह यह भी तय है कि मोदी बनारस के अलावा गुजरात की वडोदरा सीट से भी चुनाव मैदान में खड़े होंगे. अब सवाल यह भी उठने लगा है कि दोनों सीटों पर चुनाव जीतने पर, जैसा मुमकिन है, मोदी क्या करेंगे? वे गुजरात को तरजीह देंगे या बनारस को? इसका सवाल इस बात में छुपा है कि मोदी ने बनारस को क्यों चुना. यह लगभग तय है कि मोदी को 272 सीटों के करीब पहुंचाने का काम यूपी और बिहार के वोटर ही कर सकते हैं और बनारस रणनीतिक तौर पर वैसा चुनाव क्षेत्र है जो यूपी और बिहार दोनों के मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है.

इन दोनों राज्यों में लोकसभा की 120 सीटें हैं. इसके अलावा हिंदू सभ्यता के आदि स्थल के रूप में काशी की प्रतिष्ठा और यहां की गंगा-जमुनी तहजीब की परंपरा में वह अपनी सुविधानुसार सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता दोनों तरह के कार्ड खेल सकते हैं. यानी यह लगभग तय है कि बनारस मोदी की राजधानी नहीं युद्धक्षेत्र का वह कूटनीतिक कैंप हैं जहां से वह लंबी दूरी तक मार कर सकते हैं. जबकि उनका दिल गुजरात में बसता है, जहां लड़ने की जरूरत नहीं होने के बावजूद वे लड़ रहे हैं. बहुत संभव है कि बनारस में जीत के प्रति वे आश्वस्त नहीं हों इसलिए वे सेफ सीट अपने गुजरात में तलाश रहे हों. मगर वे यह भी जानते हैं दोनों में से एक सीट पर भी उनकी प्रधानमंत्री पद पर उनके दावे की हवा निकाल देगी. ऐसे में यह लगता है कि मोदी अगर दो में से एक सीट को चुनेंगे तो वे बनारस के ऊपर गुजरात की सीट को तरजीह न दें. इसके उलट भी मुमकिन है, मगर एक विकल्प तो यह है ही कि वे दोनों सीटों पर चुने जाने के बाद बनारस की सीट छोड़ दें.

अब जरा अरविंद केजरीवाल की बनारस की सीट के प्रति गंभीरता को समझें. ऐसा लगता है कि उन्होंने पहले से ही तय कर लिया था कि मोदी के खिलाफ तो लड़ना ही लड़ना है, चाहे वे बनारस से लड़ें या बाराबंकी से. उन्हें लोक सभा क्षेत्र से कोई फर्क नहीं पड़ता. इस जंग में उनकी नजर में लोक सभा सीट की कोई अहमियत नहीं है. उनका निशाना मोदी हैं, वे जानते हैं कि मोदी और भाजपा के खिलाफ वे जितने मुखर नजर आयेंगे, वे इन दोनों को जितना परेशान कर पायेंगे, उतनी ही उनकी पार्टी इस चुनाव में मजबूत होगी. वे यह जानते हैं कि यहां से उनकी जीत आसान नहीं है, मगर साथ ही यह भी जानते हैं कि यहां मोदी के खिलाफ हार कर वे कुछ खोयेंगे नहीं हां अगर जीत गये उनकी नायक की छवि बुलंद ही होगी.

इसी तरह उन्होंने नई दिल्ली विधानसभा सीट पर शीला दीक्षित को पराजित किया था. हालांकि आज उनके दिमाग में भी नहीं होगा कि नई दिल्ली विधानसभा के वे विधायक हैं. वहां की जनता ने बड़ी उम्मीदों से उन्हें वोट दिया है कि वे उनकी आकांक्षाओं को दिल्ली विधानसभा में उठाते रहें और उनके हालात में बदलाव करने की कोशिश करते रहें. वे अगर बनारस जीत जाते हैं तो यह तय है कि वे नई दिल्ली की विधायकी कुरबान कर देंगे. मगर यह भी तय नहीं है कि वे बनारस की रहनुमाई कितने दिनों तक करेंगे.

जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है, बनारस में उसकी इकाई तो है मगर कहा जा रहा है कि बनारस हिंदू विवि और आइआइटी के छात्रों के बीच उसकी ज्यादा पकड़ नहीं है. आम पुरबइया नौजवानों की तरह बनारस के युवा भी देसी दबंग की छवि वाले नरेंद्र मोदी के पक्ष में ही नजर आते हैं. इसके अलावा मुख्तार की मौजूदी और आजमगढ़ से मुलायम का खड़ा होना इन चीजों को आसानी से होने नहीं देगा. वैसे इतना तो यह है कि बनारस की जंग में साम्प्रदायिकता के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण होगा और काशी की गंगा-जमुनी तहजीब का कबाड़ा होकर रहेगा. आजमगढ़ से मुलायम के जंग-ए-मैदान में उतरने का अर्थ सीधा है कि वह अपने सामाजिक समीकरणों को मजबूत करना चाहते हैं.

देखा जाये तो इस जंग में बनारस के मतदाता ही दावं पर लगे हैं. वे एक ऐसे चुनाव के सामने खड़े हैं जिसकी जीत और हार से उनका सांसद तय होगा या नहीं यह कहना मुश्किल है. बहुत संभव है कि उन्हें इस चुनाव के बाद फिर से वोट डालना पड़े अपने असली संसद प्रतिनिधि को चुनने के लिए. इस जंग में उन्हें देश की किस्मत का फैसला करना है और जंग के पहले जुटने वाले देश भर के नमूनों का या तो मजा लेना है या उन्हें झेलना है.

इन दिनों बनारस का माहौल उबाल पर है. भाजपा कार्यकर्ता जगह-जगह पटाखे चलाकर और मिठाइयां बांटकर खुशियां मना रहे हैं. उन्होंने जैसे देश का पीएम ही हासिल कर लिया है. तकरीबन उसी तर्ज में लेखक काशीनाथ सिंह भी कह बैठते हैं कि मोदी के बनारस से लड़ने से यह फिर से अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर आ जायेगा.लोगों में भी एक अजीब किस्म की बेचैनी सी छायी है. केजरीवाल की चुनौती के बाद जैसे तमाशा और मजेदार हो गया है.

इकॉनामिक टाइम्स के मुताबिक यह चुनाव बनारस के पर्यटन उद्योग के लिए बोनस के रूप में आया है. आम तौर फरवरी के बाद वहां का पर्यटन का मौसम समाप्त हो जाता है. दोनों तरफ के कार्यकर्ता, समर्थक और पत्रकार बड़ी संख्या में या तो बनारस पहुंच गये हैं या पहुंचने वाले हैं. होटल लंबे समय तक के लिए फुल हो गये हैं. अभी से लोग आसपास के कस्बों के होटल में भी बुकिंग कराने लगे हैं. घरों में भी पेइंग गेस्ट ठहराने के लिए लोग तैयारी कर रहे हैं.

Next Article

Exit mobile version