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जीएसटी पर विशेष सत्र से दूर रहकर कांग्रेस आैर मनमोहन सिंह ने गंवाया बड़ा मौका

विश्वत सेन आर्थिक सुधारों के लिए उठाये गये क्रांतिकारी कदम के रूप में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को शुक्रवार की आधी रात से लागू कर दिया गया. इसके लिए 14 अगस्त, 1947 की ‘आधी रात को नियति से किये गये वादे’ की तर्ज पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक भव्य समारोह में […]

विश्वत सेन

आर्थिक सुधारों के लिए उठाये गये क्रांतिकारी कदम के रूप में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को शुक्रवार की आधी रात से लागू कर दिया गया. इसके लिए 14 अगस्त, 1947 की ‘आधी रात को नियति से किये गये वादे’ की तर्ज पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक भव्य समारोह में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घंटा बजा कर अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए लागू किये गये सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधारों को लागू करने का एलान किया.

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इस भव्य समारोह में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, भूतपूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सरकार के तमाम मंत्री आैर देश के करीब एक हजार गणमान्य लोग उपस्थित थे. लेकिन, जीएसटी की प्रबल समर्थक कांग्रेस आैर भूतपूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने इसे लागू करने के लिए आयोजित ऐतिहासिक समारोह से खुद को अलग कर लिया. और इस तरह उन्होंने एक बहुत बड़ा एेतिहासिक आैर राजनीतिक मौका गंवा दिया.

कांग्रेस की रणनीति समझ से परे

राजनीतिक आैर आर्थिक हलकों में चर्चा आम है कि जिस जीएसटी के प्राथमिक प्रस्ताव को कांग्रेस ने सबसे पहले सदन के पटल पर रखा, उसी कांग्रेस ने इसके अमल में आने के लिए आयोजित समारोह का बहिष्कार किया. चर्चा यह भी है कि अगर कांग्रेस नियति से किये गये वादे को धूमिल नहीं होने देने के लिए इस कार्यक्रम से दूर रही, तो कोई बात नहीं. लेकिन, उसकी यह रणनीति समझ से परे है कि डाॅ मनमोहन सिंह कांग्रेस के नेता से पहले देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री आैर एक अर्थशास्त्री हैं. देश में आर्थिक सुधारों की शुरुअात का श्रेय उन्हें ही जाता है. फिर देश के सबसे बड़े टैक्स सुधार से उन्होंने दूरी क्यों बनायी. क्या वह दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर इस समारोह में शामिल नहीं हो सकते थे? क्या डॉ मनमोहन सिंह को भी कांग्रेस के टुटपुंजिया नेताअों की तरह पार्टी से निकाले जाने का डर सताता है?

एेतिहासिक भूल करने में वामदलों भी पीछे नहीं

जीएसटी से खुद को अलग करके कांग्रेस ने तो ऐतिहासिक भूल की ही है, वामदल भी उसी के साथ चल पड़े. जीएसटी का जो स्वरूप तैयार हुआ है, नींव पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वाम फ्रंट सरकार के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता ने ही रखी थी. जीएसटी को लागू करने के लिए आधी रात को आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री ने खुद इसका श्रेय कांग्रेस और असीम दासगुप्ता को दिया. ज्ञात हो कि वर्ष 2000 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में जब जीएसटी का माॅडल तैयार हुआ था, असीम दासगुप्ता की अध्यक्षता में एक समिति बनी थी. उसी समिति ने जीएसटी की रूपरेखा तैयार की थी.

जीएसटी के लिए यूपीए को दिया श्रेय

कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस नीत यूपीए के शासनकाल में जीएसटी को लेकर किये गये प्रयासों का भी जिक्र किया. उन्होंने यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी द्वारा उठाये गये कदमों की भी सराहना की. इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने दासगुप्ता समिति द्वारा तैयार जीएसटी के मूल ढांचे की घोषणा की तथा इसे लागू करने की वर्ष 2010 की समय सीमा बनाये रखी. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वित्त मंत्रालय ने जीएसटी को लागू करने के लिए राज्यों में वाणिज्यिक करों का मिशन मोड पर कंप्यूटरीकरण शुरू किया. इतना ही नहीं, संप्रग के दूसरे कार्यकाल में जीएसटी लाने के लिए लोकसभा में 115वां संविधान संशोधन विधेयक भी प्रणब मुखर्जी ने पेश किया.

पीएम मोदी ने किया सरदार पटेल का भी जिक्र

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि कोई भी दल हो, कोई भी सरकार हो, जीएसटी में सभी ने समान रूप से उसकी चिंता की है. उन्होंने कहा कि जिस प्रकार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करीब 500 रियासतों को मिला कर भारत का एकीकरण किया, उसी प्रकार जीएसटी के कारण देश का आर्थिक एकीकरण होगा. उन्होंने कहा कि इसमें शुरुआत में थोड़ी दिक्कत आ सकती है. लेकिन, इस कारण सभी वर्गों के लोगों को लाभ मिलेगा. मोदी ने कहा कि ये जो दिशा हम सब ने निर्धारित की है, जो रास्ता हमने चुना है. यह किसी एक दल की सिद्धी नहीं है, यह किसी एक सरकार की सिद्धी नहीं है. यह हम सब की साझी विरासत है, हम सब के साझा प्रयासों का परिणाम है.

एेतिहासिक आैर पावन घटनाआें का गवाह बने ये लोग

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह एक ऐसा स्थान है, जहां विभिन्न महापुरुषों ने इस स्थान को पावन किया. 9 दिसंबर, 1947 को संविधान सभा की पहली बैठक का साक्षी रहा. इसी स्थान पर तब डाॅ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, आर्चाय कृपलानी , भीम राव अंबेडकर आदि मौजूद थे. यह स्थल देश की आजादी की महान घटना का भी साक्षी रहा. जब 26 नवंबर, 1949 को देश ने संविधान को स्वीकार किया, तब भी यह स्थान उस घटना का गवाह रहा. आज वर्षों बाद एक नयी अर्थव्यवस्था के लिए, संघीय ढांचे को नयी ताकत प्रदान करने के लिए जीएसटी पेश करने के लिए इस स्थान से बेहतर और कोई स्थल नहीं हो सकता था.

कांग्रेस-मनमोहन ने की एेतिहासिक भूल

यह बात सौ फीसदी सही है कि शुक्रवार आधी रात की घटना एेतिहासिक है आैर उसमें जो कोर्इ भी शामिल हुए वे उसके साक्षी बने, लेकिन अगर कांग्रेस, पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह, वामदल, तृणमूल कांग्रेस, राजद के लोग शामिल नहीं हुए, तो उन्होंने खुद को इस एेतिहासिक घटना का साक्षी तो नहीं ही बनाया, खुद के राजनीतिक गरिमा को भी खोने का काम किया है.

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