चीन भारत का ”एक अच्छा दोस्त ” क्यों नहीं हो सकता है?
नयी दिल्ली : चीनखुद के नाम के साथ जनवादी गणराज्य लिखता है. पर, उसकी नीतियां जनवादी होने के बजाय उसके विस्तारवादी होने का ही संकेत देती हैं. चीन के साथ भारत का संबंध कभी भी बहुत सामान्य नहीं रहा है. रिश्तों में कई ऐतिहासिक खटास होने के बावजूद नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के […]
नयी दिल्ली : चीनखुद के नाम के साथ जनवादी गणराज्य लिखता है. पर, उसकी नीतियां जनवादी होने के बजाय उसके विस्तारवादी होने का ही संकेत देती हैं. चीन के साथ भारत का संबंध कभी भी बहुत सामान्य नहीं रहा है. रिश्तों में कई ऐतिहासिक खटास होने के बावजूद नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद भारत-चीन संबंध को अनुकूल बनाने की दिशा में अबतक का सबसे गभीर प्रयास किया. उन्होंने सत्ता संभालने के कुछ ही महीने बाद सितंबर 2014 मेंमोदी ने शी चिनफिंग की अपने गृहनगर अहमदाबाद में भव्य स्वागत किया था और उन्हें झूले पर झुलाया था. शांति दूत बापू के साबरमती आश्रम भी मोदी शी को लेकर गये थे और चरखा कतवाया था. बाद में मोदी भी चीन के दौरे पर गये. लेकिन, चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारणयह गर्मजोशी जल्द ही हवा हो गयी.
बाद के दिनों में कड़वाहट अलग-अलग रूप में दिखने लगी. वहएनएसजी में भारत की सदस्यताका विरोध करने की काेशिश हो या सुरक्षापरिषद में स्थायी सदस्यता का विरोध. चीन ने भारत पर हमला करने वाले पाकिस्तान के आतंकवादियों का भी हमेशा संयुक्त राष्ट्र संघ में बचाव किया. ऐसे में यह सवाल उठता है कि चीन आखिर क्यों भारत का एक अच्छा व स्वाभाविक मित्र नहीं हो सकता है?
सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव सोसाइटी के प्रमुखमोहन गुरुस्वामीलिखते हैं – कुछ चीनी विशेषज्ञों ने दावा किया है कि1962के युद्धमें हुई शर्मनाक हारसे भारत को अभी बाहर आना है. बढ़ते आर्थिक और व्यापार संबंधों के बावजूद दोनों देशोंएक-दूसरे पर गहरा अविश्वास करते हैं. बीजिंग के नजरिये से देखें तो बीजिंग के राजनयिक, आर्थिक अौर सैन्य दृढ़ता का सामना करने के लिए अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और वियतनाम के साथ मिल कर चीन विरोधी गठबंधन बनाने में भारत सक्रिय भूमिका निभा रहा है.
ध्यान रहे कि पिछले महीने बीजिंग में वन बेल्ट वन रोड सम्मेलन हुआ था तो उसमें भारत को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भारतने उसमेंशामिल होने से इनकार कर दिया था.चीन पाक अधिकृत कश्मीर होकर बनाये जा रहे इकोनॉमिक कॉरिडोर में भारत को शामिल होने का बारंबार न्यौता देता रहा है, लेकिन भारत न सिर्फ इसमें शामिल होने से इनकार करतारहा है, बल्कि उसका मुखर विरोधभी करता रहा है. जनवादी होने का लबादा ओढ़े चीन की साम्राज्यवादी सोच में उसे भारत के ऐसे स्टैंड अड़चन नजर आते हैं. जिन देशों से चीन के रिश्तेअच्छे नहीं हैं, भारत के उसने बेहद अच्छे रिश्ते हैं. ये बातें भी उसे चुभती हैं. चीनके बौद्धिक वर्ग में यह धारणा है कि भारत 1962 के युद्ध की हार को भूला नहीं है. भारत का आर्थिक, सामरिक विकास चीन वर्तमाननहीं तो भविष्य के लिएजरूरचुनौतियां नजर आती हैं.
इंस्टीट्यूटफॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस से जुड़े सुशांत सरीन चीन की नीतियों को चीनी विशेषताओं के साथ नवउपनिवेशावाद मानते हैं. वे मानते हैं चीन इस कोशिश में हैं कि वह भारत को ओबीओआर में नाथ सके.
रिटायर्ड मेजर जनरल अशोक मेहता ने एक अखबार से कहा है किहम चीन को वैसे ही रोक सकते हैं, जैसे वर्ष 1986 में तवांग जिले के सोमदोरुंग चू में रोका था. हम हटे नहीं, डटे रहे. अंतत: करीब डेढ़ साल बाद मामला बातचीत से सुलझा. उनके अनुसार, युद्ध से दोनों देशों को नुकसान होगा, इसलिए हमें अपनी ओरसे युद्ध के बारे में नहीं सोचना चाहिए और न ही सीमा पर 1967 जैसीझड़प होनी चाहिए.
डोकलाम क्षेत्रमें जारी गतिरोध को लेकर चीन ने बातचीत से किया इनकार
चीन ने आज कहा कि जर्मनी के हैम्बर्ग में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनिफंग की द्विपक्षीय वार्ता के लिए ‘ ‘माहौल सही नहीं है. ‘ ‘ गौरतलब है कि दोनों देशों की सेना के बीच सिक्किम सेक्टर में गतिरोध चल रहा है.
हैम्बर्ग में कल सेशुरू हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले चीनी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘ ‘राष्ट्रपति शी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच द्विपक्षीय वार्ता के लिए माहौल सही नहीं है. ‘ पीएलए की निर्माण शाखा द्वारा सड़क बनाने का प्रयास किये जाने के बाद चीन और भारत के बीच पिछले 19 दिनों से भूटान-चीन-भारत सीमा पर डोकलाम क्षेत्र में गतिरोध चल रहा है. इस क्षेत्र का भारतीय नाम डोक ला है जबिक भूटान इसे डोकलाम और चीन इसको डोंगलांग कहता है. खबरें थीं कि गतिरोध को खत्म करने के लिए दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के बीच हैम्बर्ग में बैठक हो सकती है.