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पीएसी के रडार पर सोनियाः एक बार फिर पिटारे से बाहर निकल सकता है बोफोर्स का जिन्न

नयी दिल्ली: देश में विपक्ष को धूल चटाने की मुहिम के दौरान एक बार फिर बोफोर्स घोटाले का जिन्न पिटारे से बाहर निकल सकता है. इसके लिए रीब-करीब तैयारी पूरी कर ली गयी है. इस मामले को लेकर इस समय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी पूरी तरह लोकलेखा समिति (पीएसी) से संबद्ध रक्षा मामलों की […]

नयी दिल्ली: देश में विपक्ष को धूल चटाने की मुहिम के दौरान एक बार फिर बोफोर्स घोटाले का जिन्न पिटारे से बाहर निकल सकता है. इसके लिए रीब-करीब तैयारी पूरी कर ली गयी है. इस मामले को लेकर इस समय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी पूरी तरह लोकलेखा समिति (पीएसी) से संबद्ध रक्षा मामलों की उपसमिति के रडार पर चढ़ी हुर्इ हैं. बताया जा रहा है कि एक संसदीय समिति के ज्यादातर सदस्यों ने सीबीआई से दिल्ली हार्इकोर्ट के 2005 के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने को कहा है, जिसमें बोफोर्स मामले में कार्यवाही निरस्त कर दी गयी थी.

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सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को लोक लेखा समिति से संबद्ध रक्षा मामलों की उपसमिति के सदस्यों के सवालों का सामना करना पड़ा कि सीबीआई ने उस समय सुप्रीम कोर्ट में गुहार क्यों नहीं लगायी, जब दिल्ली हार्इकोर्ट ने 2005 में मामले की कार्यवाही निरस्त कर दी थी. छह सदस्यीय पीएसी की रक्षा मामलों पर उपसमिति बोफोर्स तोप सौदे पर 1986 की कैग रिपेार्ट के कुछ खास पहलुओं का अनुपालन नहीं किये जाने को लेकर गौर कर रही है.

समिति के प्रमुख और बीजू जनता दल के सांसद भतृहरि माहताब के समक्ष अन्य अधिकारियों के अलावा वर्मा और रक्षा सचिव संजय मित्रा भी उपस्थित हुए थे. बैठक के दौरान माहताब और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे समेत कई सदस्यों ने कहा कि सीबीआई को यह मामला ‘फिर से खोलना’ चाहिए और शीर्ष अदालत में नयी दलील पेश करनी चाहिए.

गाैरतलब है कि बोफोर्स तोपों की खरीद के लिए दी गयी दलाली को लेकर 1980 के दशक में जबरदस्त राजनीतिक भूचाल आया था और इस कांड के चलते 1989 में राजीव गांधी की सरकार भी गिर गयी थी. गोड्डा से भाजपा के सांसद दुबे के मुताबिक, सीबीआई ने 2005 में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का भी मन बना लिया था, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी थी.

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